Banking / लोन लेने वाले की हो गई मौत तो कौन चुकाएगा बकाया, क्या घर वालों की है जिम्मेदारी?

कोरोना महामारी के भयावह प्रसार ने देश में लाखों लोगों की जान ले ली है। बहुत से परिवार अपने मुखिया खो चुके हैं। ऐसे लोग अगर अपने साथ कुछ एसेट छोड़कर जाते हैं, तो तमाम तरह की लायबिलिटी भी। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन लोगों का आकस्मिक निधन हो जाता है, उनके होम लोन, क्रेडिट कार्ड जैसी लायबिलिटी का क्या होगा? क्या यह परिजनों को चुकाना होगा या और कोई रास्ता है।

Delhi: कोरोना महामारी के भयावह प्रसार ने देश में लाखों लोगों की जान ले ली है। बहुत से परिवार अपने मुखिया खो चुके हैं। ऐसे लोग अगर अपने साथ कुछ एसेट छोड़कर जाते हैं, तो तमाम तरह की लायबिलिटी भी। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन लोगों का आकस्मिक निधन हो जाता है, उनके होम लोन, क्रेडिट कार्ड जैसी लायबिलिटी का क्या होगा? क्या यह परिजनों को चुकाना होगा या और कोई रास्ता है।

जानकारों का यह कहना है कि लोन की बात करें तो सभी तरह के लोन इस मामले में एक जैसे नहीं होते। होम लोन, Auto लोन के मामले में बैंक, फाइनेंस कंपनियों के लिए लोन की रिकवरी आसान होती है, क्योंकि इस मामले में एसेट जुड़े होते हैं, लेकिन पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड लोन आदि के मामले में थोड़ा अंतर होता है।

होम लोन: होम लोन काफी लंबी अवधि के लोन होते हैं। इसलिए बैंक इस तरह की व्यवस्था रखते हैं, लोन का ढांचा इस तरह का रखते हैं कि कर्जधारक की मौत होने पर लोन की रिकवरी प्रभावित न हो। बैंक ऐसे लोन में पति या पत्नी या किसी और परिजन को को-अप्लीकेंट बनवाकर रखते हैं। यही नहीं कई बार यह भी देखा जाता है कि कर्ज लेने वाले के पास पर्याप्त बीमा पॉलिसी है या नहीं। 

तो किसी भी को-बारोवर की यदि मौत हो जाती है तो लोन के भुगतान की जिम्मेदारी दूसरे को-बारोवर की हो जाती है। ऐसे में अगर किसी के परिजन की मौत हो जाती है और वह उसके साथ किसी लोन में को-बॉरोअर है, तो उसे बैंक या कर्ज देने वाली संस्था को अपने साथी बारोअर की मौत की जानकारी देनी चाहिए। यदि होम लोन या अन्य लोन की ईएमआई निधन होने वाले व्यक्ति के खाते से हो रही थी तो सबसे पहले इसमें बदलाव करना चाहिए और मृत व्यक्ति का नाम हटवाना चाहिए। को-बॉरोवर को अपने खाते से भुगतान कराना चाहिए।

लोन के बोझ से कैसे मुक्त हों: अगर होम लेने वाले व्यक्ति की अचानक मौत हो जाती है तो बकाया लोन को चुकाना परिवार के लिए भारी बोझ हो सकता है। लेकिन लोन लेने वाले ज्यादातर लोगों ने अपने लिए अच्छी टर्म पॉलिसी ली होती है या लोन का बीमा कराया होता है। तो परिजनों को इसकी जानकारी अगर न हो तो दस्तावेज आदि देखकर पता करनी चाहिए। ऐसे लोग बीमा की राशि हासिल कर आसानी से बकाया लोन का भुगतान कर सकते हैं और पूरी तरह कर्जमुक्त हो सकते हैं।

सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर (CFP) पंकज मठपाल बताते हैं बैंक या अन्य कर्जदाता को-बारोअर को इसके लिए समय देता है कि वह बीमा आदि की रकम हासिल कर लोन चुकाए या ईएमआई का भुगतान खुद करे। मान लिया कि किसी के जीवनसाथी जैसे पति या पत्नी लोन चुकाने की स्थिति में नहीं हैं तो उसके बेटे-बेटी भी यह चुका सकते हैं। बैंक बेटे या बेटी की क्रेडिट रेटिंग देखकर उसके लिए ईएमआई तय कर सकते हैं और उसके लोन के लिए को-अप्लीकेंट बना सकते हैं। अगर कोई भी लोन चुकाने की स्थिति में नहीं है तो बैंक प्रॉपर्टी या मकान को अपने कब्जे में ले सकता है। Sarfaesi एक्ट के तहत बैंक को यह अधिकार है। वह इस मकान की नीलामी कर अपनी बकाया रकम को वसूल सकता है। 

पर्सनल लोन/क्रेडिट कार्ड: पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड की उधारी को अनसेक्योर्ड लोन की श्रेणी में रखा जाता है, यदि किसी कर्जधारक की मौत हो जाती है तो बैंक या अन्य क्रेडिट कार्ड कंपनियां लोन को राइट ऑफ कर देती हैं यानी उसे बट्टा खाते में डाल देती हैं। कानूनी वारिस को यह लोन चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। पर्सनल लोन के मामले में भी कंपनियां अक्सर यह देखती हैं कि लोन लेने वाले की बीमा पॉलिसी हो। कर्जधारक की मौत पर बीमा कंपनियां इस बीमा कंपनी से अपनी रकम वसूलने की कोशिश करती हैं। परिजन अगर अपनी इच्छा से पर्सनल लोन वापस करने को तैयार हैं, फिर तो कोई बात नहीं, लेकिन बैंक या कंपनी इसके लिए उसे बाध्य नहीं कर सकतीं।

वाहन लोन: वाहन लोन के मामले में लोन लेने वाले की मौत होने पर कर्जदाता पहले तो परिजनों से संपर्क कर इस लोन को चुकाने को कहता है, लेकिन अगर परिवार इसके लिए तैयार नहीं है तो कंपनी गाड़ी को अपने कब्जे में ले लेती है और उसकी नीलामी कर अपनी बकाया राशि को वसूल लेती है।

एजुकेशन लोन: एजुकेशन लोन बिना किसी गारंटी के नहीं दिया जाता। यही नहीं, यदि लोन राशि ज्यादा है तो कई बार पेरेंट्स को भी जमानत देनी होती है। इसलिए यदि किसी दुर्भाग्यवश लोन लेने वाले स्टूडेंट की मौत हो जाती है तो बैंक इस लोन के गारंटर यानी उसके अभिभावक से बकाया राशि का भुगतान करने को कहता है। लोन का भुगतान न करने पर जमानत पर रखी प्रॉपर्टी को नीलाम किया जा सकता है।