Vikrant Shekhawat : Jul 03, 2021, 10:39 AM
उत्तराखंड | बीत कुछ दिनों से जारी सियासी अटकलों को विराम देते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। देहरादून में शुक्रवार देर रात सवा ग्यारह बजे राजभवन पहुंच कर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया। आज उत्तराखंड को फिर नया मुख्यमंत्री मिल सकता है, जिसके लिए विधायक दलों की आज बैठक होगी। तीरथ रावत ने बीती 10 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी और इस तरह से रावत चार महीने का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए और राह के रोड़े को हटाने में असफल रहे। बहरहाल, आज तीन बजे देहरादून में भाजपा विधायक दल की बैठक में नया नेता चुना जाएगा।तेज तर्रार मुख्यमंत्री बनाने पर चल रहा मंथन:सूत्रों के अनुसार, उपचुनाव एक वजह रही है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व यह पहले ही तय कर चुका था कि चुनावों में तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री होने के बाद भी चेहरा नहीं होंगे। बाद में यह बात भी सामने आई कि तीरथ सिंह रावत के रहते और दिक्कतें बढ़ सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि नेतृत्व ही बदला जाए और किसी प्रभावी और तेजतर्रार विधायक को मुख्यमंत्री बनाया जाए। शनिवार को विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। इसमें राज्य ईकाई के सभी बड़े नेता शामिल होंगे व फैसले को अमली जामा पहनाया जाएगा।उपचुनाव बना बड़ा रोड़ा :उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में एक वर्ष से भी कम का समय बचा है और पद पर बने रहने के लिए रावत का 10 सितम्बर तक विधानसभा सदस्य चुना जाना संवैधानिक बाध्यता है लेकिन उपचुनाव न होने की संभावना देखते हुए यही एक विकल्प बचा था। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे जनप्रतिधि कानून की धारा 191 ए के तहत छह माह की तय अवधि में चुनकर नहीं आ सकते। इसलिए मैंने अपने पद से इस्तीफा दिया। तीरथ ने पार्टी के बड़े नेताओं को इस बात का धन्यवाद किया कि, उन्होंने उन्हें यहां तक पहुंचाया।रावत के सामने क्या थी संवैधानिक समस्यासंविधान के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद तीरथ सिंह रावत को 6 महीने के भीतर विधानसभा उपचुनाव जीतना था। तभी वह मुख्यमंत्री रह पाते। यानी 10 सितंबर से पहले उन्हें विधायकी जीतनी थी। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि तीरथ सिंह गंगोत्री से चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, चुनाव आयोग द्वारा सितंबर से पहले उपचुनाव कराने से इनकार करने के बाद सीएम रावत के सामने विधायक बनने का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया। सूत्रों ने बताया कि उत्तराखंड उपचुनाव को लेकर अभी भी चुनाव आयोग को फैसला करना बाकी है। सूत्र ने कहा कि ये चुनाव कोरोना संक्रमण के हालात पर ही निर्भर करते हैं।सिर्फ 115 दिन का कार्यकाल पूरा कियापूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के इस्तीफे के बाद 10 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस तरह वह केवल 115 दिन मुख्यमंत्री के पद पर रहे। वे ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्हें विधानसभा में बतौर नेता सदन उपस्थित रहने का मौका नहीं मिला।पार्टी के सामने छवि बचाने की चुनौतीराज्य में 56 विधायकों के बावजूद भाजपा में दो दो मुख्यमंत्री बदल देने से पार्टी पर राजनैतिक अस्थिरता का आरोप लग रहा है। अगले साथ होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के सामने राजनैतिक अस्थिरता लाने वाली पार्टी की छवि को दूर करना होगा।नए सीएम के दो दावेदारसूत्रों के अनुसार, भाजपा में भावी नेतृत्व के लिए जो नाम उभरे हैं, उनमें सतपाल महाराज और धन सिंह रावत के नामों की चर्चा है। इसके पहले दिल्ली से देहरादून रवाना होने से पहले तीरथ सिंह रावत ने कहा कि वह शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर काम करेंगे।दिल्ली में जमाया था डेरा :तीन दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को, पिछले चौबीस घंटों के भीतर दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की। नड्डा के आवास पर उनसे लगभग आधे घंटे की यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब रावत के भविष्य को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। पौड़ी से लोकसभा सांसद रावत ने इस वर्ष 10 मार्च को मुख्यमंत्री का पद संभाला था। अपने पद पर बने रहने के लिए 10 सितम्बर तक उनका विधानसभा सदस्य निर्वाचित होना संवैधानिक बाध्यता है। इससे पहले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। तीरथ सिंह रावत के शुक्रवार को दिल्ली से देहरादून पहुंचते ही यह खबर बाहर आ गई कि मुख्यमंत्री ने उपचुनाव की संभावना न होने पर नड्डा के सामने इस्तीफा देने की पेशकश की है। इसी बीच रात 10 बजे उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी उपलब्धियां गिनाईं। राज्य विधानसभा चुनावों के पहले भाजपा का भरोसा डगमगाने लगा है। चार महीने में दो मुख्यमंत्री बदलने के फैसले से जाहिर है कि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव को लेकर कितना परेशान है। बीते 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने चुनाव की रणनीति पर अमल शुरू किया ही था कि तीरथ सिंह अपने बयानों से विवादों में आ गए। कुंभ व कोरोना में उनके पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था। लेकिन वह बेहतर काम करते हुए भी नहीं दिखे। बंगाल के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा ने सभी सरकारों के कामकाज का आकलन किया तो उत्तराखंड उसमें भी पीछे रहा।