News18 : Apr 23, 2020, 03:40 PM
दिल्ली: कोरोना के बारे में जानकारी जुटाने में लगे कई एक्सपर्ट अब ये तथ्य लेकर आए हैं कि खून में ऑक्सीजन का स्तर बनाते वाले यंत्र से भी कोरोना के स्तर का पता लग सकता है। एक माचिस के आकार की इस क्लिप को बस ऊंगली या फिर कान के ऊपर क्लिप करना है और ये न सिर्फ हार्ट, बल्कि फेफड़ों की हालत के बारे में भी बताएगा।
डेली मेल में छपी एक रिपोर्ट में National Institute for Health and Care Excellence (Nice) के पूर्व एडवाडजर डॉ निक सर्मटन कहते हैं कि अगर ऑक्सीजन सैच्युरेशन एक निश्चित स्तर से 2 से 3 प्रतिशत गिरता है तो हालात गंभीर हैं, ऐसे में तुरंत डॉक्टर या एंबुलेंस को कॉल करना चाहिए। बता दें कि शरीर में सामान्य अवस्था में ऑक्सजीन सैच्युरेशन 95–100 होता है।
घर पर हो सकेगी गंभीरता की जांच
कई दूसरे विशेषज्ञों का भी मानना है कि अगर लोग घर पर ही अपने कोरोना का स्तर जांच सकें तो कई फायदे होंगे। जैसे एक अमेरिकन डॉक्टर रिचर्ड लेविटन के मुताबिक अगर लोग pulse oximeter की ही मदद से ये समझ सकें कि कब उन्हें अस्पताल आना है तो अस्पतालों पर दबाव कम होगा, साथ ही इससे वो मरीज भी पहचाने जा सकेंगे जिन्हें असल में और तुरंत वेटिंलेटर की जरूरत होती है। न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में डॉक्टर लेविटन या तो लोग घर पर इससे जांच करें या फिर क्लिनिक जाकर लेकिन इससे शुरुआती वॉर्निंग मिल जाएगी कि कोरोना में फेफड़े कैसे काम कर रहे हैं।क्या है खतरे के शुरुआती संकेतकोरोना गंभीर हो रहा है, इसे समझने के लिए कोई खास गणित नहीं लगाना, बल्कि कुछ सामान्य संकेतों पर ध्यान देना होता है। जैसे यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को कोरोना होने पर वे घर पर ही इलाज करवा रहे थे। इस दौरान वे सरकारी कामकाज भी कर रहे थे। बाद में हालात बिगड़ने का पता तब चला, जब रोजाना हो रही जांचों में शरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट गया। पल्स ऑक्सीमीटर की मदद से ही ये दिख जाता है। इसे ऊंगली में क्लिप की तरह फंसाया जाता है। इसके बाद इसमें लगे सेंसर ये पता लगा पाते हैं कि खून में ऑक्सीजन का प्रवाह कैसा है। इसकी रीडिंग ऑक्सीमीटर की डिजिटल स्क्रीन पर दिखती है। स्क्रीन पर 95 से 100 के आसपास डिजिट दिखे तो ये सामान्य है। वहीं सांस से जुड़ी समस्या वाले मरीजों में ये संख्या काफी कम हो सकती है।प्रेस्क्रिप्शन पर मिले
इसकी मदद से घर पर ही समझा जा सकता है कि क्या मरीज को दवाओं में बदलाव की जरूरत है या फिर अस्पताल जाने की जरूरत है। बहुत ही कम कीमत पर मिलने वाला ये उपकरण पहले अस्पतालों में ही होता था लेकिन अब लोग इसे खरीदकर घर पर ही रखने लगे हैं ताकि सेहत मॉनिटर की जा सके। हालांकि डॉक्टरों का मानना है कि ये भी प्रेस्क्रिप्शन पर ही मिलना चाहिए ताकि जरूरत के समय दूसरे उपकरणों की तरह इसकी भी कमी न हो जाए।पहले ही दे देता है संकेत
पल्स ऑक्सीमीटर इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इसकी मदद से कोई लक्षण दिखने से पहले भी पता चल जाता है कि कोरोना मरीज के फेफड़ों पर क्या असर डाल रहा है। सांस फूलना या होंठों-ऊंगलियों में नीलापन आना काफी बाद में शुरू होता है। इससे पहले ये उपकरण हालात बता देगा और मरीज पहले ही अस्पताल पहुंच सकेगा। इससे कोरोना के कारण होने वाली मौतों की दर कम की जा सकती है।दोष भी हैं डिवाइस में
हालांकि इस उपकरण की कई खामियां भी हैं। जैसे अगर मरीज आराम कर रहा हो तो ये वॉर्निंग नहीं देता है और मरीज को लगता है कि वो ठीक है। इस बारे में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी अस्पताल के Professor Babak Javid बताते हैं कि कई मरीज अगर हल्की-फुल्की एक्सरसाइज कर लें या चल-फिर लें तो भी उनके शरीर में ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है और फेफड़े मदद नहीं कर पाते हैं। ऐसे में खून में ऑक्सीजन का स्तर काफी गिरा हुआ दिख पाता है। हो सकता है कि ये मरीज कुछ ही घंटों के भीतर बुरी तरह से बीमार पड़ जाएं लेकिन ये तब तक पता नहीं चलेगा, जब तक कि मरीज एक्सरसाइज के बाद सैच्युरेशन टेस्ट न करे। ये स्थिति खतरनाक है।तब क्या करना चाहिएकोरोना के जिन मरीजों का इलाज घर पर ही हो रहा हो, वे यह कर सकते हैं कि पहली बार पल्स ऑक्सीमीटर लेने पर प्रारंभिक रीडिंग लेकर जांच लें कि उनका सामान्य स्तर क्या है। इसके बाद हर कुछ घंटों पर पल्स चेक की जानी चाहिए ताकि पैटर्न समझ आ सके।बता दें कि इस बीच दुनिया के कई देशों में कोरोना के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चीन के वुहान से शुरू हुए इस वायरस की वजह से 26 लाख 40 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 1 लाख 80 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। अमेरिका, स्पेन, इटली, फ्रांस और यूके जैसे देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जहां कोरोना के कारण मौत की दर भी काफी ज्यादा है। अस्पतालों में बेड कम पड़ने की वजह से माइल्ड लक्षणों वाले मरीजों को दवा देकर घर पर ही आइसोलेट किया जा रहा है। ऐसे में पल्स ऑक्सीमीटर काम की डिवाइस हो सकती है।
डेली मेल में छपी एक रिपोर्ट में National Institute for Health and Care Excellence (Nice) के पूर्व एडवाडजर डॉ निक सर्मटन कहते हैं कि अगर ऑक्सीजन सैच्युरेशन एक निश्चित स्तर से 2 से 3 प्रतिशत गिरता है तो हालात गंभीर हैं, ऐसे में तुरंत डॉक्टर या एंबुलेंस को कॉल करना चाहिए। बता दें कि शरीर में सामान्य अवस्था में ऑक्सजीन सैच्युरेशन 95–100 होता है।
घर पर हो सकेगी गंभीरता की जांच
कई दूसरे विशेषज्ञों का भी मानना है कि अगर लोग घर पर ही अपने कोरोना का स्तर जांच सकें तो कई फायदे होंगे। जैसे एक अमेरिकन डॉक्टर रिचर्ड लेविटन के मुताबिक अगर लोग pulse oximeter की ही मदद से ये समझ सकें कि कब उन्हें अस्पताल आना है तो अस्पतालों पर दबाव कम होगा, साथ ही इससे वो मरीज भी पहचाने जा सकेंगे जिन्हें असल में और तुरंत वेटिंलेटर की जरूरत होती है। न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में डॉक्टर लेविटन या तो लोग घर पर इससे जांच करें या फिर क्लिनिक जाकर लेकिन इससे शुरुआती वॉर्निंग मिल जाएगी कि कोरोना में फेफड़े कैसे काम कर रहे हैं।क्या है खतरे के शुरुआती संकेतकोरोना गंभीर हो रहा है, इसे समझने के लिए कोई खास गणित नहीं लगाना, बल्कि कुछ सामान्य संकेतों पर ध्यान देना होता है। जैसे यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को कोरोना होने पर वे घर पर ही इलाज करवा रहे थे। इस दौरान वे सरकारी कामकाज भी कर रहे थे। बाद में हालात बिगड़ने का पता तब चला, जब रोजाना हो रही जांचों में शरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट गया। पल्स ऑक्सीमीटर की मदद से ही ये दिख जाता है। इसे ऊंगली में क्लिप की तरह फंसाया जाता है। इसके बाद इसमें लगे सेंसर ये पता लगा पाते हैं कि खून में ऑक्सीजन का प्रवाह कैसा है। इसकी रीडिंग ऑक्सीमीटर की डिजिटल स्क्रीन पर दिखती है। स्क्रीन पर 95 से 100 के आसपास डिजिट दिखे तो ये सामान्य है। वहीं सांस से जुड़ी समस्या वाले मरीजों में ये संख्या काफी कम हो सकती है।प्रेस्क्रिप्शन पर मिले
इसकी मदद से घर पर ही समझा जा सकता है कि क्या मरीज को दवाओं में बदलाव की जरूरत है या फिर अस्पताल जाने की जरूरत है। बहुत ही कम कीमत पर मिलने वाला ये उपकरण पहले अस्पतालों में ही होता था लेकिन अब लोग इसे खरीदकर घर पर ही रखने लगे हैं ताकि सेहत मॉनिटर की जा सके। हालांकि डॉक्टरों का मानना है कि ये भी प्रेस्क्रिप्शन पर ही मिलना चाहिए ताकि जरूरत के समय दूसरे उपकरणों की तरह इसकी भी कमी न हो जाए।पहले ही दे देता है संकेत
पल्स ऑक्सीमीटर इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इसकी मदद से कोई लक्षण दिखने से पहले भी पता चल जाता है कि कोरोना मरीज के फेफड़ों पर क्या असर डाल रहा है। सांस फूलना या होंठों-ऊंगलियों में नीलापन आना काफी बाद में शुरू होता है। इससे पहले ये उपकरण हालात बता देगा और मरीज पहले ही अस्पताल पहुंच सकेगा। इससे कोरोना के कारण होने वाली मौतों की दर कम की जा सकती है।दोष भी हैं डिवाइस में
हालांकि इस उपकरण की कई खामियां भी हैं। जैसे अगर मरीज आराम कर रहा हो तो ये वॉर्निंग नहीं देता है और मरीज को लगता है कि वो ठीक है। इस बारे में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी अस्पताल के Professor Babak Javid बताते हैं कि कई मरीज अगर हल्की-फुल्की एक्सरसाइज कर लें या चल-फिर लें तो भी उनके शरीर में ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है और फेफड़े मदद नहीं कर पाते हैं। ऐसे में खून में ऑक्सीजन का स्तर काफी गिरा हुआ दिख पाता है। हो सकता है कि ये मरीज कुछ ही घंटों के भीतर बुरी तरह से बीमार पड़ जाएं लेकिन ये तब तक पता नहीं चलेगा, जब तक कि मरीज एक्सरसाइज के बाद सैच्युरेशन टेस्ट न करे। ये स्थिति खतरनाक है।तब क्या करना चाहिएकोरोना के जिन मरीजों का इलाज घर पर ही हो रहा हो, वे यह कर सकते हैं कि पहली बार पल्स ऑक्सीमीटर लेने पर प्रारंभिक रीडिंग लेकर जांच लें कि उनका सामान्य स्तर क्या है। इसके बाद हर कुछ घंटों पर पल्स चेक की जानी चाहिए ताकि पैटर्न समझ आ सके।बता दें कि इस बीच दुनिया के कई देशों में कोरोना के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। चीन के वुहान से शुरू हुए इस वायरस की वजह से 26 लाख 40 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 1 लाख 80 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। अमेरिका, स्पेन, इटली, फ्रांस और यूके जैसे देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जहां कोरोना के कारण मौत की दर भी काफी ज्यादा है। अस्पतालों में बेड कम पड़ने की वजह से माइल्ड लक्षणों वाले मरीजों को दवा देकर घर पर ही आइसोलेट किया जा रहा है। ऐसे में पल्स ऑक्सीमीटर काम की डिवाइस हो सकती है।