कॅटगरी | एक्शन |
निर्देशक | एस. एस. राजामौली |
कलाकार | अजय देवगन,आलिया भट्ट,एलिसन डूडी,ओलिविया मॉरिस,नंदमुर्ति तारक रामा राव,राम चरन,रे स्टीवेन्सन,श्रिया सरन,समुथिरकानी |
रेटिंग | 4/5 |
निर्माता | डी०वी०वी० दनय्या |
संगीतकार | एम. एम. कीरावणी |
प्रोडक्शन कंपनी | डीवीवी एंटरटेनमेंट |
करीब साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये में बनी निर्देशक एस एस राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ की प्रतियोगिता उनकी अपनी ही फिल्मों ‘बाहुबली’ और ‘बाहुबली 2’ से है। भारतीय सिनेमा का दुनिया में मजबूत स्थान बनाने वाले राजामौली की इस फिल्म का परिणाम देश में मनोरंजन उद्योग की अगली दिशा भी तय करेगा।
विस्तार
निर्देशक एस एस राजामौली के 21 साल के करियर की ‘आरआरआर’ 12वीं फिल्म है। राजामौली की अब तक की सारी फिल्में कामयाब रही हैं जो फिल्मे हिट नहीं भी रहीं, उन्होंने भी बॉक्स ऑफिस पर अपने निर्माता का पैसा डुबोया नहीं। उनकी पिछली दो फिल्में ‘बाहुबली’ और ‘बाहुबली 2’ विश्व सिनेमा के परिदृश्य पर भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी धमक रही हैं। इन फिल्मों की कामयाबी ने दिखाया कि सितारे नहीं बल्कि अब फिल्मों की कहानियों, इनके फिल्मांकन और इनकी तकनीकी सुरुचि और समृद्धि ही बॉक्स ऑफिस पर कमाल करेगी। और, फिर ‘द कश्मीर फाइल्स’ आ गई जिसने इन सारे मिथकों को मिटाकर ब्लैक बोर्ड पर बॉक्स ऑफिस के आंकड़े नए सिरे से लिखने शुरू कर दिए। सिनेमा और सियासत के ये दो अलग अलग चेहरे हैं। अब बारी उस फिल्म की है जिसमें इन दोनों का समावेश है। अंग्रेजों के खिलाफ छिड़ी जंग में दक्षिण को दो रण बांकुरों की कहानी है, ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ यानी फिल्म ‘आरआरआर’।
‘क्रांति’ की एक और कहानी
फिल्म ‘आरआरआर’ की कहानी 1920 के दौर की कहानी है। उत्तर से छिड़ी आजादी की लड़ाई दक्षिण में आग लगा चुकी है। अंग्रेजों का अत्याचार चरम पर है। दो मतवाले हैं। दोनों के अपने अपने इरादे हैं। एक बिल्कुल देसी, दांवपेंचों से अनजान और अपने ही दम पर दुनिया को मुट्ठी में कर लेने का इरादा रखने वाला कोमारम भीम। और, दूसरा थोड़ा सयाना है। उसने दुनिया को जाना है। वह तूफान को भी काबू में कर लेने का इरादा रखता है यानी अल्लूरी सीताराम राजू। राम और भीम की इस कहानी में और भी तमाम किरदार हैं, लेकिन फिल्म ‘आरआरआर’ के रथ के ये ही दो मुख्य पहिये हैं और इंटरवल के पहले अगर मामला भीम ने संभाला है तो इंटरवल के बाद आई सुस्ती को क्लाइमेक्स के लंकाकांड में राम ने दूर करने में कामयाबी हासिल की है।
नयाभिराम दृश्यावलियों में बिंधे किरदार
एस एस राजमौली का सिनेमा बनाने का अपना एक स्वप्न लोक है। हालांकि, इस बार उनकी कहानी महिष्मती से किसी कल्पनालोक की नहीं है लेकिन धरती पर भी जो कुछ उन्होंने कोई सौ साल पहले का रचा है, वह अतुलनीय है। राजामौली का सिनेमा विश्वसिनेमा की उस पटरी पर आ चुका है जिसमें कथानक का विस्तार किरदारों से ज्यादा इसकी कायनात करती है। यहां उन्हें वी विजयेंद्र प्रसाद से मदद मिलती है। विजयेंद्र प्रसाद को जिन लोगों ने भी फिल्म की पटकथा सुनाते देखा है, उन्हें आंखें मूंदते ही फिल्म का विस्तार दिखने लगता है। किरदार वह सबसे आखिर में सुनाते हैं। राजामौली की पिछली दोनों फिल्मों में ये विस्तार हिंदीभाषी दर्शकों ने देखा है। वैसा ही एक सपना उन्होंने फिल्म ‘आरआरआर’ में बुना है। पहली नजर में वह ‘बाहुबली’ सीरीज का सिनेमा ही आगे बढ़ाते दिखते हैं, लेकिन इस बार उनकी राह इतनी आसान भी नहीं है।
कोमारम भीम की धमक
फिल्म ‘आरआरआर’ अपने प्रवाह में कहां कहां अटकती है और कहां कहां भटकती है, उस पर चर्चा से पहले बात फिल्म के सितारों की। इस फिल्म के दोनों सितारों में से राम चरण को हिंदी पट्टी में लोग जूनियर एनटीआर से बेहतर पहचानते हैं, जानते हैं और उनकी डब फिल्मों का बाजार भी बेहतर रहा है। लेकिन, फिल्म ‘आरआरआर’ में राजामौली का फोकस जूनियर एनटीआर पर ज्यादा दिखता है। कम से कम इंटरवल से पहले तो फिल्म उन्हीं की है। जिस अंदाज में कोमारम भीम परदे पर आता है और जिन तेवरों के साथ राजामौली ने कहानी में उसका प्रवेश दिखाया है, वह नयनाभिराम है।
अल्लूरी का अलहदा अंदाज
फिल्म में राम चरण का आगमन उतना भव्य नहीं बन पाया है। दोनों के संतुलन पर ही फिल्म टिकी है। और, इसीलिए फिल्म इंटरवल के बाद जब बोर करती दिखती है तो इसे अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अल्लूरी को मिलती है और राम चरण ने अपनी शख्सियत का करिश्मा यहां भरपूर छितराया है। आलिया भट्ट और अजय देवगन के लिए करने को कुछ खास फिल्म में है नहीं, पर जब भी दोनों परदे पर आते हैं, अपना असर छोड़ जाते हैं। दूसरे कलाकारों में जेनिफर के किरदार में ओलिविया मॉरिस का अभिनय प्रभावित करता है। समुथीकनी फिल्म का सरप्राइज पैकेज हैं। एलीसन डूडी और रे स्टीवेंसन ने कहानी के उत्प्रेरक के रूप में अच्छा काम किया है। श्रिया सरन की याद भी फिल्म खत्म होने के बाद बनी रहती है।
गानों का गणित कमजोर
तकनीकी तौर पर फिल्म विशाल है। राजामौली ने फिल्म पर शुरू से आखिर तक अंकुश लगाए रखा है। फिल्म की अपनी मतवाली चाल है। वह अपने फिल्मांकन से भव्यता पाती है। राजामौली की टीम के उनके सबसे भरोसेमंद सिपहसालार सिनेमैटोग्राफर के के सेंथिल कुमार ने फिर एक बार दिखाया है कि निर्देशक का दृष्टिकोण स्पष्ट हो तो फिर कहानी में वातावरण की महत्ता कैसे स्थापित होती है। फिल्म का कला निर्देशन, कंप्यूटर ग्राफिक्स और वीडियो इफेक्ट्स भी नोटिस करने लायक हैं। बस फिल्म लड़खड़ाती है अपने संगीत को लेकर। दक्षिण भारतीय फिल्मों में संगीत का अखिल भारतीय स्तर ए आर रहमान ने फिल्म ‘रोजा’ में स्थापित किया था, उसे अब जाकर देवी श्री प्रसाद फिल्म ‘पुष्पा पार्ट वन’ में दोहरा पाए हैं। एम एम कीरावणी हिंदी सिनेमा में एम एम क्रीम के नाम से मशहूर रहे हैं। उनके गाने फिल्म ‘आरआरआर’ की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
इंटरवल के बाद की चुनौती
फिल्म ‘आरआरआर’ जिस दूसरे मोर्चे पर दर्शकों को अखरती है वह है इसकी लंबाई। फिल्म इंटरवल के बाद करीब 40 मिनट तक बोर करती है। फिल्म का संपादन चुस्त करके और इसकी लंबाई करीब ढाई घंटे की रखकर श्रीकर प्रसाद इस धीमी रफ्तार से फिल्म को बचा सकते थे। फिल्म को अगर ‘बाहुबली’ सीरीज की कहानियों के पलड़े पर तौला जाएगा तो फिल्म ‘आरआरआर’ कमजोर निकलेगी क्योंकि यहां पिता, जन्म देने वाली मां, पालने वाली मां, सौतेले भाई का षडयंत्र, अर्धांगिनी की दृढ़ता और प्रेमिका की अधीरता नहीं है। फिल्म ‘आरआरआर’ का एक कमजोर पहलू इसका भावनात्मक रूप से दर्शकों न बांध पाना भी है।