कॅटगरी | एक्शन |
निर्देशक | विष्णुवर्धन |
कलाकार | कियारा आडवाणी,सिद्धार्थ मल्होत्रा |
रेटिंग | 4/5 |
निर्माता | अजय शाह,अपूर्व मेहता,करण जौहर,शब्बीर बॉक्सवाला,हिमांशु गांधी,हिरो यश जौहर |
संगीतकार | जसलीन रॉयल,जानी,जावेद-मोहसिन,जॉन स्टीवर्ट एडुरी,तनिष्क बागची,विक्रम मोंट्रोस |
प्रोडक्शन कंपनी | आमिर खान प्रोडक्शंस |
"एक टीचर का बेटा भी दिलेर आर्मी अफसर बन सकता है सर, फौजी फौजी होता है, कहीं भी पैदा हो सकता है", लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) चेहरे पर मुस्कान और विश्वास के साथ अपने कमांडिंग अफसर (शतफ फिगर) को कहते हैं।
देशभक्ति और युद्ध क्षेत्र की कहानियां देखकर अक्सर सिहरन सी होती है। जब कहानी कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा की हो, तो फिल्म से उम्मीदें बढ़ना भी जाहिर है। 'शेरशाह' की कहानी एक ओर जहां आंखों में आंसू लाती है, वहीं दूसरी ओर विक्रम बत्रा की बहादुरी और जाबांजी प्रेरित करती है। फिल्म में कुछ कमियां हैं, जो कहानी के प्रभाव पर थोड़ा असर डालती है, लेकिन क्लाईमैक्स तक जाते जाते फिल्म संभल जाती है। ये फिल्म उन सभी 527 शहीदों को समर्पित है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमारी ज़मीन वापस हासिल की।
कारगिल युद्ध पर इससे पहले भी फिल्में बनी हैं और कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत से भी लोग अंजान नहीं हैं। ऐसे में दो घंटे पंद्रह मिनट तक फिल्म से जोड़े रखने के लिए दो बातें बेहद महत्वपूर्ण थीं- निर्देशक के कहानी पेश करने का अंदाज और सिद्धार्थ मल्होत्रा के अभिनय में सच्चाई और बेबाकी। अच्छी बात है कि फिल्म इन दोनों ही पक्षों में बढ़िया रही है।
कहानी कहानी शुरु होती है विशाल बत्रा से, जहां वो एक टॉक शो में अपने भाई विक्रम बत्रा की कहानी दुनिया के सामने बयां करते हैं। पालमपुर के विक्रम बत्रा का बचपन से एक ही ख्वाब था, आर्मी ज्वॉइन करने का। अपने सपने का पीछा करते करते विक्रम ने साल 1996 में भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया। प्रशिक्षण के बाद, 23 साल उम्र में विक्रम बत्रा को जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। वो एक खुले दिल वाले बहिर्मुखी व्यक्ति थे, जिस वजह से वो जल्द ही किसी का भी दिल जीत लेते थे। वहीं, अलग अलग मौकों पर विक्रम बत्रा ने अपनी बहादुरी का भी परिचय दिया था। घर से अपने छुट्टियां कैंसिल कर कारगिल युद्ध के लिए वापस आते हुए विक्रम अपने दोस्त से कहते हैं, "या तो मैं तिरंगा लहराकर आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा, पर मैं आऊंगा जरूर.."।
फ्लैशबैक के जरीए हमें कॉलेज लाइफ में एक सिख लड़की डिंपल (कियारा आडवाणी) के साथ विक्रम का रोमांस देखने को मिलता है।वहीं, बाकी की फिल्म इस बात के इर्द-गिर्द घूमती है कि कैसे विक्रम बत्रा ने कारगिल में पाकिस्तान सेना के खिलाफ भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और युद्ध के दौरान एक जख्मी सैनिक की जान बचाते हुए शहीद हो गए। कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा ने जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया था। इस युद्ध के दौरान उन्हें 'शेरशाह' का कोडनेम दिया गया और उन्होंने जीत का कोड रखा- 'ये दिल मांगे मोर'।
अभिनय की बात करें तो विक्रम बत्रा के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अच्छा काम किया है। हर दृश्य में इस किरदार को निभाने के पीछे उनकी मेहनत दिखती है। कियारा के साथ उनके रोमांटिक दृश्य हों या कारगिल युद्ध, सिद्धार्थ ने अपने अभिनय में एक लय बनाकर रखी है। परर्फोमेंस के लिहाज से कोई दो राय नहीं कि ये सिद्धार्थ की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। वहीं, डिंपल चीमा के किरदार में कियारा ने अच्छा काम किया है। उनकी सादगी दिल जीतती है। शरफ फिगर, शिव पंडित, हिंमाशु मल्होत्रा, साहिल वैद अपने किरदारों में सराहनीय हैं।
कारगिल वॉर हीरो विक्रम बत्रा की जिंदगी को समझना चाहते हैं तो 'शेरशाह' देखी जा सकती है। हां, फिल्म में काफी क्रिएटिव लिब्रटी ली गई है, लेकिन उससे प्रभाव में कोई फर्क नहीं पड़ता। 24 वर्षीय एक युवा की वीरता और देशभक्ति की ये कहानी आपको प्रेरित करेगी।