Mohan Bhagwat-RSS / देश में जितना खराब हो रहा उससे 40 गुना ज्यादा अच्छा हो रहा है- मोहन भागवत

महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी बात कही। भागवत ने दावा किया कि भारत में अभी जितना खराब हो रहा है उससे 40 गुना ज्यादा अच्छा हो रहा है। उन्होंने कार्यक्रम में आए मेहमानों से कहा कि आप लोगों के काम से ये बातें प्रमाणित हो रही हैं कि देश में काफी कुछ अच्छा हो रहा है। आप के काम इस सब का सबूत हैं।

Vikrant Shekhawat : Sep 07, 2023, 02:31 PM
Mohan Bhagwat-RSS: महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी बात कही। भागवत ने दावा किया कि भारत में अभी जितना खराब हो रहा है उससे 40 गुना ज्यादा अच्छा हो रहा है। उन्होंने कार्यक्रम में आए मेहमानों से कहा कि आप लोगों के काम से ये बातें प्रमाणित हो रही हैं कि देश में काफी कुछ अच्छा हो रहा है। आप के काम इस सब का सबूत हैं। 

हम सेवा करते हैं

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कार्यक्रम में सेवा का भी महत्व बताया। उन्होंने कहा कि सेवा करने का मौका भगवान सेवको के रूप में हमें देता है। उन्होंने कहा कि ऐसी सेवा करने से सेवा में अहंकार नहीं रहता और अहंकार आ गया तो सेवा-सेवा नहीं रहती, वो दया हो जाती है, हम यहां दया नहीं करते सेवा करते है।

आरक्षण पर भी बोले थे भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बीते दिन आरक्षण पर भी बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि हमने अपने ही समाज के लोगों को सामाजिक व्यवस्था के उपरांत पीछे रखा। जब तक यह भेदभाव है, तब तक उसको (आरक्षण) चालू रहना चाहिए। संविधान सम्मत जितना आरक्षण है उसको हम संघ के लोग पूरा समर्थन देते हैं, यह सम्मान की बात है। जिनको आरक्षण मिलता है, उन्होंने धीरे-धीरे यह आवाज उठाई है कि आरक्षण पाकर हम समर्थ हो गए। 

अखंड भारत पर भी बयान

संघ प्रमुख मोहन भागवत से जब अखंड भारत को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि आपके बूढ़े होने से पहले अखंड भारत होगा। उन्होंने कहा था कि परिस्थितियां ऐसी करवट ले रही हैं, क्योंकि जो भारत से अलग हुए हैं उनको लगता है कि गलती हो गई। हमको फिर से भारत होना चाहिए, लेकिन वह मानते हैं कि भारत होना यानी कि नक्शे की रेखाएं पोंछ डालना। ऐसा नहीं है, केवल उससे नहीं होगा। भारत होना यानी कि भारत के स्वभाव को स्वीकार करना।