विज्ञान / खगोलविदों ने 'मिल्की वे' के केंद्र से आ रहे असामान्य संकेतों का लगाया पता

सिडनी विश्वविद्यालय के मुताबिक, खगोलविदों ने 'मिल्की वे' के केंद्र की दिशा की तरफ से आ रहे असामान्य संकेतों का पता लगाया है। ये रेडियो तरंगें वर्तमान में समझे गए परिवर्तनशील रेडियो स्रोत के पैटर्न में फिट नहीं बैठती हैं और यह स्टेलर-ऑब्जेक्ट के नए वर्ग की तरफ इशारा कर रही हैं। बकौल शोधकर्ता, "इन सिग्नल में...बहुत अधिक पोलराइज़ेशन है।"

Vikrant Shekhawat : Oct 14, 2021, 07:43 AM
कैनबरा: क्या ब्रह्मांड में हम अकेले हैं या अंतरिक्ष के किसी कोने में दूसरी दुनिया के लोग भी मौजूद हैं? अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए इससे बड़ा सवाल दूसरा नहीं है। कई बार ऐसे संकेत मिले हैं जो इस सवाल के जवाब की ओर इशारा करते हैं। हाल ही में खगोलविदों ने आकाशगंगा के केंद्र से आने वाले असामान्य रेडियो सिग्नल का पता लगाया है। हालांकि अभी तक तरंगों के स्रोत के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है।

शोधकर्ताओं के अनुसार रेडियो सिग्नल्स किसी भी रेडियो स्रोत के पैटर्न में फिट नहीं होते हैं और किसी अज्ञात खगोलीय वस्तु की ओर इशारा करते हैं। खगोलविदों ने द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में अपने नतीजे साझा किए हैं। सिडनी यूनिवर्सिटी की प्रेस रिलीज में प्रमुख लेखक ज़िटेंग वांग ने कहा कि नई तरंगों की सबसे अजीब बात यह है कि इसमें बहुत ज्यादा ध्रुवीकरण मौजूद है।

ASKAP रेडियो टेलीस्कोप से की खोज

उन्होंने कहा कि हमने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा। वांग ने कहा कि पहले उन्हें लगा कि ये सिग्नल किसी तारे से आ रहे हैं। लेकिन ये तरंगे उस पैटर्न से बिल्कुल अलग हैं। वांग और विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में CSIRO के ASKAP रेडियो टेलीस्कोप का इस्तेमाल करके इसके स्रोत की खोज की है। शोधकर्ताओं ने ऑब्जेक्ट को ASKAP J173608.2-321635 नाम दिया है।

स्रोत का व्यवहार बेहद असाधारण

स्कूल ऑफ फिजिक्स और सिडनी इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोनॉमी के प्रफेसर ताला मर्फी ने कहा कि तरंगों का स्रोत अद्भुत था क्योंकि पहले यह अदृश्य था, फिर चमकदार हुआ, धुंधला पड़ने के बाद फिर दिखाई देने लगा। उन्होंने कहा कि यह व्यवहार बेहद असाधारण था। 2020 में नौ महीनों में स्रोत से छह रेडियो संकेतों का पता लगाने के बाद खगोलविदों ने ऑब्जेक्ट को खोजने की कोशिश की। सिग्नल के स्रोत की खोज करने के बाद भी इसकी उत्पत्ति और प्रकृति को लेकर कई सवाल अभी भी अधूरे हैं।