- भारत,
- 16-Apr-2025 10:53 AM IST
Russia-Ukraine War: रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। यह संघर्ष न केवल पूर्वी यूरोप में एक बड़ा मानवीय संकट बन चुका है, बल्कि वैश्विक राजनीति के लिए भी चुनौती बन गया है। अमेरिका, विशेषकर उसके पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, इस युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों में सक्रिय रहे हैं। हालांकि, हालिया घटनाक्रम और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अभी भी इस संकट के समाधान की दिशा में कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है।
अमेरिका और रूस के बीच बातचीत – पर नतीजा शून्य
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने एक साक्षात्कार में बताया कि अमेरिका के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद कोई निर्णायक समझौता नहीं हो सका है। कोमर्सेंट समाचार पत्र को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि रूस अमेरिका के साथ संवाद जारी रखने को तैयार है। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप और उनके पूर्ववर्ती जो बाइडेन के दृष्टिकोण में अंतर की ओर इशारा करते हुए कहा कि ट्रंप प्रशासन यूक्रेन संकट की जड़ों को समझने की कोशिश कर रहा है, जो इसे सुलझाने की दिशा में एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।
ट्रंप की प्रतिक्रिया – जेलेंस्की पर आरोप
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की पर आरोप लगाया है कि उन्होंने ही इस युद्ध की शुरुआत की। ट्रंप ने कहा, "आप 20 गुना बड़े देश के खिलाफ जंग शुरू नहीं कर सकते और फिर मिसाइलों की उम्मीद करें।" उनका यह बयान उस समय आया है जब रूस ने सूमी शहर पर मिसाइल हमला किया, जिसमें 35 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए।
नाटो को रूसी चेतावनी
इस युद्ध के बढ़ते विस्तार ने नाटो को भी सीधे तौर पर निशाने पर ला खड़ा किया है। रूसी खुफिया प्रमुख सर्गेई नारिश्किन ने नाटो देशों को खुलेआम चेतावनी दी है। उन्होंने विशेष रूप से पोलैंड और बाल्टिक देशों – लातविया, लिथुआनिया और एस्तोनिया – का नाम लेते हुए कहा कि अगर इन देशों ने रूस और बेलारूस के खिलाफ उकसावे की कार्रवाई की, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। नारिश्किन ने यह भी आरोप लगाया कि पोलैंड, रूस के कलिनिनग्राद और बेलारूस की सीमाओं पर दो मिलियन एंटी-टैंक माइंस लगाने की योजना बना रहा है।
युद्ध का भविष्य – बातचीत या बढ़ती तबाही?
इन बयानों से यह साफ हो गया है कि यूक्रेन युद्ध एक नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका है। जहां एक ओर अमेरिका के कुछ हिस्से शांति वार्ता के पक्षधर हैं, वहीं दूसरी ओर रूस के हमले और उसकी धमकियां जमीनी हालात को और भी भयावह बना रही हैं। लावरोव का यह बयान कि रूस बातचीत के लिए तैयार है, उम्मीद की एक किरण जरूर है, लेकिन जब तक दोनों पक्ष एक-दूसरे की चिंताओं को गंभीरता से नहीं समझते, तब तक शांति की दिशा में ठोस प्रगति मुश्किल दिखती है।