AMAR UJALA : Apr 11, 2020, 01:12 PM
कोरोना के कहर को रोकने के लिए सभी देशों की सरकारें अपने नागरिकों से घरों में रहने की अपील कर रही है। लोगों को सलाह दी जा रही है कि घरों से बाहर बिल्कुल ना निकलें लेकिन इसी बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जिनका काम घरों में रहकर नहीं हो सकता है। ऐसे लोगों को बाहर रहना पड़ता है और लोगों के घरों में जमा हो रहे कूड़े को इकट्ठा करना होता है।
कोरोना के मद्देनजर लोगों को घरों में रहना पड़ रहा है जिस वजह से हर घर में जरूरत से ज्यादा कूड़ा इकट्ठा हो जाता है। जिसमें मास्क, सैनिटाइजर के डिब्बे और एक बार इस्तेमाल में लाए जाने वाले सामान ज्यादा है। ऐसे में सफाई कर्मचारी कोरोना के संक्रमण होने के खतरे के बीच ये काम करते हैं। हॉन्ग कॉन्ग की महिला सफाई कर्मचारी टी घरों में से कूड़े का ढेर उठाती हैं और कहती हैं कि ये पागल करने देने जैसी स्थिति है। टी को लगता है कि कोरोना महामारी के बाद से उनका काम दोगुना हो गया है लेकिन वेतन वही पहले जैसा है। उन्होंने बताया कि ये कूड़ा उठाते समय उन्हें बहुत डर लगता है लेकिन ये उनका काम है, उन्हें करना पड़ता है। घर से काम करने जैसी सुविधा टी जैसे सफाई कर्मचारियों के लिए नहीं है।
हालांकि टी को कूड़े फेंकने या उससे संबंधित कोई भी गाइडलाइन नहीं मिली। ना ही टी को इस बात का इल्म था कि जिस कूड़े के ढेर को वह रोज उठाती हैं, उस पर कोरोना वायरस हो सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे और कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तक रह सकता है।
हॉन्ग कॉन्ग सरकार ने अपने सफाई कर्मचारियों समेत दूसरे लोगों के लिए पैम्फलेट छपवाए। इसमें कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सलाह जारी की गई थी। पैम्फलेट में सफाई को लेकर तमाम तरह की जानकारियां दी गई लेकिन कूड़े को फेंकने पर कोई टिप्पणी नहीं की। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक टी जिस बिल्डिंग में काम करती थी उसमें रहने वाले दो लोगों को होम क्वारंटीन किया गया था।
टी को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में कैसे काम किया जाए। वो अपनी कंपनी में भी बात करने से कतरा रही थी। टी का कहना था कि अगर वो नौकरी छोड़ देगी या छोड़ने की बात कहेगी तो कोई दूसरा उसकी जगह पर काम करने लग जाएगा। टी ईजी लीविंग के तहत सफाई कर्मचारी का काम करती थी, ईजी लीविंग का कहना है कि कंपनी अपने कर्मचारियों को बचाव सामग्री देने के लिए एक मिलियन हॉन्ग कॉन्ग डॉलर से ज्यादा खर्चा कर चुकी है। इस सामग्री में फेस मास्क, दस्ताने और यूनिफॉर्म शामिल है।
अमेरिका समेत कई देशों में सफाई कर्मचारी को मास्क, दस्ताने जैसी मूलभूत सुविधाएं प्रदान की गई हैं। हॉन्ग कॉन्ग के खाद्य और स्वास्थ्य सचिव ने बताया ठेकेदार अपने कर्मचारी को ये सारी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए बाध्य है लेकिन टी का कहना है कि उन्हें इस तरह की कोई सुविधा नहीं मिली है। टी ने बताया कि जब कोरोना फैलना शुरू हुआ था तब कंपनी महीने के 50 मास्क देती थी लेकिन ये मास्क पूरे नहीं पड़ते थे। सर्जिकल मास्क की कमी होने की वजह से टी अपने पैसों से अपना मास्क खरीदती थी।
टी अकेली नहीं थी, हॉन्ग कॉन्ग के चैरिटी ऑक्सफैम के अनुसार सर्वे बताता है कि 80 फीसदी सफाई कर्मचारियों को कोरोना से निपटने के लिए किसी तरह का कोई प्रशिक्षण नहीं मिला है। 30 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्हें मास्क ही नहीं मिला और 40 फीसदी लोगों के मुताबिक कंपनी ने एक पूरे दिन चलने वाले मास्क भी नहीं दिए।
दोगुना काम करने की वजह से टी को कमर दर्द और पैरों में दर्द जैसी शिकायतें मिलने लगी। इस दर्द को कम करने के लिए टी दवाइयां लेने लगी। टी को इस बात की चिंता लगी रहती है कि अगर उन्हें किसी के संपर्क में आने से कोरोना हो जाता है तो उनके परिवार वालों पर इसका गहरा असर पड़ेगा। टी के परिवार में एक बुजुर्ग रहते हैं जिनके लीवर में बीमारी है, एक रिश्तेदार पोलियो से पीड़ित है और ये लोग एक बहुत छोटे से घर में रहते हैं।
टी सफाई कर्मचारियों के यूनियन से जुड़ी हैं और सरकार से पहली पंक्ति में काम कर रहे कर्मचारियों के लिए मुआवजे की बात करती हैं। टी 2003 में भी सफाई कर्मचारी का काम करती थीं, उस वक्त हॉन्ग कॉन्ग में SARS महामारी फैली थी लेकिन टी को कोरोना महामारी ज्यादा डराती है।
टी का कहना है कि उन्होंने शुरू से यही काम किया है और यही काम उन्हें आता है लेकिन टी अपने बच्चों को ये काम करते नहीं देखना चाहती। टी ने बताया कि वह ये काम करती रहेंगी ताकि उनके बच्चों को ना करना पड़े।
कोरोना के मद्देनजर लोगों को घरों में रहना पड़ रहा है जिस वजह से हर घर में जरूरत से ज्यादा कूड़ा इकट्ठा हो जाता है। जिसमें मास्क, सैनिटाइजर के डिब्बे और एक बार इस्तेमाल में लाए जाने वाले सामान ज्यादा है। ऐसे में सफाई कर्मचारी कोरोना के संक्रमण होने के खतरे के बीच ये काम करते हैं। हॉन्ग कॉन्ग की महिला सफाई कर्मचारी टी घरों में से कूड़े का ढेर उठाती हैं और कहती हैं कि ये पागल करने देने जैसी स्थिति है। टी को लगता है कि कोरोना महामारी के बाद से उनका काम दोगुना हो गया है लेकिन वेतन वही पहले जैसा है। उन्होंने बताया कि ये कूड़ा उठाते समय उन्हें बहुत डर लगता है लेकिन ये उनका काम है, उन्हें करना पड़ता है। घर से काम करने जैसी सुविधा टी जैसे सफाई कर्मचारियों के लिए नहीं है।
हालांकि टी को कूड़े फेंकने या उससे संबंधित कोई भी गाइडलाइन नहीं मिली। ना ही टी को इस बात का इल्म था कि जिस कूड़े के ढेर को वह रोज उठाती हैं, उस पर कोरोना वायरस हो सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे और कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तक रह सकता है।
हॉन्ग कॉन्ग सरकार ने अपने सफाई कर्मचारियों समेत दूसरे लोगों के लिए पैम्फलेट छपवाए। इसमें कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सलाह जारी की गई थी। पैम्फलेट में सफाई को लेकर तमाम तरह की जानकारियां दी गई लेकिन कूड़े को फेंकने पर कोई टिप्पणी नहीं की। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक टी जिस बिल्डिंग में काम करती थी उसमें रहने वाले दो लोगों को होम क्वारंटीन किया गया था।
टी को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में कैसे काम किया जाए। वो अपनी कंपनी में भी बात करने से कतरा रही थी। टी का कहना था कि अगर वो नौकरी छोड़ देगी या छोड़ने की बात कहेगी तो कोई दूसरा उसकी जगह पर काम करने लग जाएगा। टी ईजी लीविंग के तहत सफाई कर्मचारी का काम करती थी, ईजी लीविंग का कहना है कि कंपनी अपने कर्मचारियों को बचाव सामग्री देने के लिए एक मिलियन हॉन्ग कॉन्ग डॉलर से ज्यादा खर्चा कर चुकी है। इस सामग्री में फेस मास्क, दस्ताने और यूनिफॉर्म शामिल है।
अमेरिका समेत कई देशों में सफाई कर्मचारी को मास्क, दस्ताने जैसी मूलभूत सुविधाएं प्रदान की गई हैं। हॉन्ग कॉन्ग के खाद्य और स्वास्थ्य सचिव ने बताया ठेकेदार अपने कर्मचारी को ये सारी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए बाध्य है लेकिन टी का कहना है कि उन्हें इस तरह की कोई सुविधा नहीं मिली है। टी ने बताया कि जब कोरोना फैलना शुरू हुआ था तब कंपनी महीने के 50 मास्क देती थी लेकिन ये मास्क पूरे नहीं पड़ते थे। सर्जिकल मास्क की कमी होने की वजह से टी अपने पैसों से अपना मास्क खरीदती थी।
टी अकेली नहीं थी, हॉन्ग कॉन्ग के चैरिटी ऑक्सफैम के अनुसार सर्वे बताता है कि 80 फीसदी सफाई कर्मचारियों को कोरोना से निपटने के लिए किसी तरह का कोई प्रशिक्षण नहीं मिला है। 30 फीसदी लोगों का कहना है कि उन्हें मास्क ही नहीं मिला और 40 फीसदी लोगों के मुताबिक कंपनी ने एक पूरे दिन चलने वाले मास्क भी नहीं दिए।
दोगुना काम करने की वजह से टी को कमर दर्द और पैरों में दर्द जैसी शिकायतें मिलने लगी। इस दर्द को कम करने के लिए टी दवाइयां लेने लगी। टी को इस बात की चिंता लगी रहती है कि अगर उन्हें किसी के संपर्क में आने से कोरोना हो जाता है तो उनके परिवार वालों पर इसका गहरा असर पड़ेगा। टी के परिवार में एक बुजुर्ग रहते हैं जिनके लीवर में बीमारी है, एक रिश्तेदार पोलियो से पीड़ित है और ये लोग एक बहुत छोटे से घर में रहते हैं।
टी सफाई कर्मचारियों के यूनियन से जुड़ी हैं और सरकार से पहली पंक्ति में काम कर रहे कर्मचारियों के लिए मुआवजे की बात करती हैं। टी 2003 में भी सफाई कर्मचारी का काम करती थीं, उस वक्त हॉन्ग कॉन्ग में SARS महामारी फैली थी लेकिन टी को कोरोना महामारी ज्यादा डराती है।
टी का कहना है कि उन्होंने शुरू से यही काम किया है और यही काम उन्हें आता है लेकिन टी अपने बच्चों को ये काम करते नहीं देखना चाहती। टी ने बताया कि वह ये काम करती रहेंगी ताकि उनके बच्चों को ना करना पड़े।