News18 : Aug 18, 2020, 03:28 PM
सिंगापुर। कोरोना वायरस (Coronavirus) के कहर से जूझ रहे मलेशिया (Malasiya) में कोविड-19 के एक बेहद खतरनाक किस्म D614G का पता चला है। मलेशिया के विशेषज्ञों का दावा है कि यह किस्म आम कोरोना वायरस से 10 गुना ज्यादा खतरनाक है। हालांकि मलेशियाई विशेषज्ञों के इस दावे पर अब वैज्ञानिकों ने गंभीर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। संक्रामक रोगों के एक प्रमुख विशेषज्ञ का कहना है कि यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों में कोरोना वायरस में जो म्यूटेशन (वायरस के जीन में बदलाव) देखा जा रहा है, वो अधिक संक्रामक हो सकते हैं, लेकिन वो कम जानलेवा मालूम पड़ते हैं।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (National University of Singapore) के वरिष्ठ चिकित्सक और इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ के नव-निर्वाचित अध्यक्ष पॉल टैम्बिया (Paul Tambyah) ने कहा, 'सबूत बताते हैं कि दुनिया के कुछ इलाक़ों में कोरोना के D614G म्यूटेशन (वायरस के जीन में बदलाव) के फैलाव के बाद वहां मौत की दर में कमी देखी गई, इससे पता चलता है कि वो कम घातक हैं।' डॉक्टर टैम्बिया ने रॉयटर्स से कहा कि वायरस का ज़्यादा संक्रामक लेकिन कम घातक होना अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि ज़्यादातर वायरस जैसे-जैसे म्यूटेट करते हैं यानी कि उनके जीन में बदलाव आता है, वैसे-वैसे वो कम घातक होते जाते हैं। ये वायरस के हित में होता है कि वो अधिक से अधिक लोगों को संक्रमित करे लेकिन उन्हें मारे नहीं क्योंकि वायरस भोजन और आसरे के लिए लोगों पर ही निर्भर करता है।कुछ ने ख़ारिज किया दावाड्यूक-एनयूएस स्कूल के संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ वांग लिंफा ने द स्ट्रेट टाइम्स से कहा कि ऐसा कोई वास्तविक वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोरोना की D614G किस्म 10 गुना ज्यादा संक्रामक है। वहीं उनके सहयोगी प्रोफेसर ओई इंग इओंग ने कहा, 'इस किस्म का वैक्सीन की प्रभावशीलता पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वैक्सीन से पैदा एंटीबॉडी कोरोना के स्पाइक प्रोटीन के कई हिस्सों को बांध देगी।' संक्रामक रोगों के एक अन्य विशेषज्ञ हसू लियांग ने कहा कि वायरस की यह नई किस्म फरवरी से ही दुनियाभर में मौजूद है। अकेले सिंगापुर में ही फरवरी से लेकर जुलाई तक के बीच में कोरोना वायरस की इस किस्म के शिकार 100 लोग सामने आए चुके हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि बहुत कम लोगों के वायरस के क्रम का पता लगाया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि यहां पर हजारों लोग D614G से संक्रमित हुए हैं।
WHO ने क्या कहा?उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वैज्ञानिकों ने फ़रवरी में ही इस बात की खोज कर ली थी कि कोरोना वायरस में म्यूटेशन हो रहा है और वो यूरोप और अमेरिका में फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये भी कहना था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि वायरस में बदलाव के बाद वो और घातक हो गया है। मलेशिया के स्वास्थ्य विभाग के डीजी नूर हिशाम अब्दुल्लाह ने हाल के दो हॉट-स्पॉट में कोरोना वायरस के D614G म्यूटेशन पाए जाने के बाद लोगों से और अधिक सतर्क रहने का आग्रह किया। सिंगापुर के विज्ञान, टेक्नोलॉजी और शोध संस्थान के सेबास्टियन मॉरर-स्ट्रोह ने कहा कि कोरोना वायरस का ये रूप सिंगापुर में पाया गया है लेकिन वायरस की रोक-थाम के लिए उठाए गए क़दमों के कारण वो बड़े पैमाने पर फैलने में नाकाम रहा है।मलेशिया के नूर हिशाम ने कहा कि कोरोना का D614G वर्जन जो वहां पाया गया था वो 10 गुना ज़्यादा संक्रामक था और अभी जो वैक्सीन विकसित की जा रही है हो सकता है वो कोरोना वायरस के इस वर्जन(D614G) के लिए उतनी प्रभावी ना हो। लेकिन टैम्बिया और मॉरर-स्ट्रोह ने कहा कि म्यूटेशन के कारण कोरोना वायरस में इतना बदलाव नहीं होगा कि उसकी जो वैक्सीन बनाई जा रही है उसका असर कम हो जाएगा। मॉरर-स्ट्रोह ने कहा, "वायरस में बदलाव तक़रीबन एक जैसे हैं और उन्होंने वो जगह नहीं बदली है जो कि आम तौर पर हमारा इम्युन सिस्टम पहचानता है, इसलिए कोरोना की जो वैक्सीन विकसित की जा रही है, उसमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।"
जून में ही मिल गया था ये वायरस!
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (National University of Singapore) के वरिष्ठ चिकित्सक और इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ़ इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ के नव-निर्वाचित अध्यक्ष पॉल टैम्बिया (Paul Tambyah) ने कहा, 'सबूत बताते हैं कि दुनिया के कुछ इलाक़ों में कोरोना के D614G म्यूटेशन (वायरस के जीन में बदलाव) के फैलाव के बाद वहां मौत की दर में कमी देखी गई, इससे पता चलता है कि वो कम घातक हैं।' डॉक्टर टैम्बिया ने रॉयटर्स से कहा कि वायरस का ज़्यादा संक्रामक लेकिन कम घातक होना अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि ज़्यादातर वायरस जैसे-जैसे म्यूटेट करते हैं यानी कि उनके जीन में बदलाव आता है, वैसे-वैसे वो कम घातक होते जाते हैं। ये वायरस के हित में होता है कि वो अधिक से अधिक लोगों को संक्रमित करे लेकिन उन्हें मारे नहीं क्योंकि वायरस भोजन और आसरे के लिए लोगों पर ही निर्भर करता है।कुछ ने ख़ारिज किया दावाड्यूक-एनयूएस स्कूल के संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ वांग लिंफा ने द स्ट्रेट टाइम्स से कहा कि ऐसा कोई वास्तविक वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है कि जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोरोना की D614G किस्म 10 गुना ज्यादा संक्रामक है। वहीं उनके सहयोगी प्रोफेसर ओई इंग इओंग ने कहा, 'इस किस्म का वैक्सीन की प्रभावशीलता पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वैक्सीन से पैदा एंटीबॉडी कोरोना के स्पाइक प्रोटीन के कई हिस्सों को बांध देगी।' संक्रामक रोगों के एक अन्य विशेषज्ञ हसू लियांग ने कहा कि वायरस की यह नई किस्म फरवरी से ही दुनियाभर में मौजूद है। अकेले सिंगापुर में ही फरवरी से लेकर जुलाई तक के बीच में कोरोना वायरस की इस किस्म के शिकार 100 लोग सामने आए चुके हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि बहुत कम लोगों के वायरस के क्रम का पता लगाया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि यहां पर हजारों लोग D614G से संक्रमित हुए हैं।
WHO ने क्या कहा?उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वैज्ञानिकों ने फ़रवरी में ही इस बात की खोज कर ली थी कि कोरोना वायरस में म्यूटेशन हो रहा है और वो यूरोप और अमेरिका में फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का ये भी कहना था कि इस बात के कोई सुबूत नहीं हैं कि वायरस में बदलाव के बाद वो और घातक हो गया है। मलेशिया के स्वास्थ्य विभाग के डीजी नूर हिशाम अब्दुल्लाह ने हाल के दो हॉट-स्पॉट में कोरोना वायरस के D614G म्यूटेशन पाए जाने के बाद लोगों से और अधिक सतर्क रहने का आग्रह किया। सिंगापुर के विज्ञान, टेक्नोलॉजी और शोध संस्थान के सेबास्टियन मॉरर-स्ट्रोह ने कहा कि कोरोना वायरस का ये रूप सिंगापुर में पाया गया है लेकिन वायरस की रोक-थाम के लिए उठाए गए क़दमों के कारण वो बड़े पैमाने पर फैलने में नाकाम रहा है।मलेशिया के नूर हिशाम ने कहा कि कोरोना का D614G वर्जन जो वहां पाया गया था वो 10 गुना ज़्यादा संक्रामक था और अभी जो वैक्सीन विकसित की जा रही है हो सकता है वो कोरोना वायरस के इस वर्जन(D614G) के लिए उतनी प्रभावी ना हो। लेकिन टैम्बिया और मॉरर-स्ट्रोह ने कहा कि म्यूटेशन के कारण कोरोना वायरस में इतना बदलाव नहीं होगा कि उसकी जो वैक्सीन बनाई जा रही है उसका असर कम हो जाएगा। मॉरर-स्ट्रोह ने कहा, "वायरस में बदलाव तक़रीबन एक जैसे हैं और उन्होंने वो जगह नहीं बदली है जो कि आम तौर पर हमारा इम्युन सिस्टम पहचानता है, इसलिए कोरोना की जो वैक्सीन विकसित की जा रही है, उसमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।"
जून में ही मिल गया था ये वायरस!
इससे पहले बेहद प्रतिष्ठित जर्नल सेल में जून में छपे आर्टिकल में कहा गया था कि कोरोना की D614G नस्ल दुनियाभर में बहुत तेजी से फैल रही है। इसमें यह भी कहा गया था कि इस म्युटेशन का शायद ही दुनियाभर में बनाई जा रही कोरोना वायरस वैक्सीन पर कोई असर पड़े। प्रोफ़ेसर वांग ने कहा कि यह किस्म जेनेटकली ज्यादा फिट है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह आसानी से फैल जाती है। यही नहीं फिलीपीन्स के जीनोम सेंटर ने खुलासा किया है कि क्यूजेन शहर से इकट्ठा किया गए नौ नमूनों में G614 किस्म मिली है। उन्होंने बताया कि वायरस की नस्ल D614 से D614G नस्ल बनी है। फिलीपीन्स के वैज्ञानिकों ने भी कहा है कि ऐसा कोई अभी तक अध्ययन नहीं हुआ है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि D614G ज्यादा संक्रामक है।More infectious coronavirus mutation may be 'a good thing', says disease expert https://t.co/DppBAxzAiy pic.twitter.com/S2mTgWgbZs
— Reuters (@Reuters) August 18, 2020