Artificial Rain / कैसे काम करती है कृत्रिम बारिश, कितनी असरदार, समझे आसान भाषा में

दिल्ली-एनसीआर ही जहरीली होती हवा को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने यहां कृत्रिम बारिश कराने का फैसला लिया है. यहां 20 और 21 नवंबर को कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है. इसके लिए IIT कानपुर ने ट्रायल किया. ट्रायल के बाद इसकी रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंपी गई है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसकी पुष्टि है. दावा किया गया है कि कृत्रिम बारिश की मदद से प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सकेगा और प्रदूषण का स्तर कम होगा.

Vikrant Shekhawat : Nov 09, 2023, 11:00 PM
Artificial Rain: दिल्ली-एनसीआर ही जहरीली होती हवा को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने यहां कृत्रिम बारिश कराने का फैसला लिया है. यहां 20 और 21 नवंबर को कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है. इसके लिए IIT कानपुर ने ट्रायल किया. ट्रायल के बाद इसकी रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंपी गई है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसकी पुष्टि है. दावा किया गया है कि कृत्रिम बारिश की मदद से प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सकेगा और प्रदूषण का स्तर कम होगा.

ऐसे में सवाल है कि कृत्रिम बारिश क्या होती है, इससे किस हद तक प्रदूषण कम होगा, इसे कैसे कराया जाएगा और दुनिया के कितने देशों में इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है.

क्या है कृत्रिम बारिश?

केमिकल की मदद से बादलों को बारिश कराने के लिए तैयार किया जाता है. इसके जरिए होने वाली बारिश को कृत्रिम बारिश कहते हैं. हालांकि, यह कोई आसान प्रक्रिया नहीं होती. इसके लिए कई तरह की अनुमति की जरूरत होती है. दुनिया के कई देशों में जरूरत पड़ने पर कृत्रिम बारिश कराने का चलन रहा है, जैसे- चीन.

कैसे कराई जाती है कृत्रिम बारिश?

कृत्रिम बारिश कैसे कराई जाती है, अब इसे समझ लेते हैं. विज्ञान कहता है, ऐसी बारिश कराने के लिए आसमान में थोड़े बहुत प्राकृतिक बादलों का होना जरूरी होता है.

कृत्रिम बारिश के लिए विमानों का इस्तेमाल किया जाता है. इनके जरिए सिल्वर आइयोडइड, साल्ट और ड्राई आइस को आसमान में पहले से मौजूद बादलों में छोड़ा जाता है. इसे क्लाउड सीडिंग (Cloud) कहते हैं.जहां पर इसे गिराया जाता है, वहां जहाज को उल्टी दिशा में ले जाते हुए केमिकल को छोड़ा जाता है. नमक के कण बादलों में मौजूद वाष्प को खींचते हैं. इसके साथ नमी भी खिंची चली जाती है. यह इकट्ठा होकर बारिश की बूंद का रूप ले लेती है. और दबाव बढ़ने पर यह बारिश बनकर बरस जाती है.

इसके कारण दबाव बनता है और बारिश होती है. इसके लिए सरकारी एजेंसियों के साथ DGCA से भी परमिशन लेनी होगी.

क्या कृत्रिम बारिश से साफ हो जाएगी दिल्ली की हवा?

दिल्ली-NCR में कराई जाने वाली कृत्रिम बारिश के प्रोजेक्ट लीड आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर महिंद्रा अग्रवाल का कहना है कि जो वर्तमान हालात हैं, कृत्रिम बारिश उससे निपटने टेम्प्रेरी मदद कर सकती है. इससे कुछ दिन से लेकर कुछ हफ्तों तक की राहत मिल सकती है.कई अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके जरिए जहरीली हवा में कुछ हद तक राहत मिलती है, लेकिन यह बहुत लम्बे समय के लिए नहीं होती.

कब बारिश कराना सबसे अच्छा?

मानसून से पहले और बाद में कृत्रिम बारिश कराना आसान होता है क्योंकि बादलों में नमी ज्यादा होती है. लेकिन सर्दियों में इनमें नमी कम होने के कारण क्लाउड सीडिंग उतनी सफल नहीं हो पाती. कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल सिर्फ हवा को साफ करने के लिए ही नहीं, आग बुझाने और सूखे से बचाने के लिए भी किया जा रहा है. कई देशों में प्रयोग जारी है.

कब तैयार हुआ कृत्रिम बारिश का कॉन्सेप्ट?

दुनिया में सबसे पहले कृत्रिम बारिश कराने वाले क्लाउड सीडिंग का कॉन्सेप्ट 1945 में विकसित किया गया था. आज दुनिया के 50 देशों में इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पहली बार 1951 में क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश कराई गई थी. इसके बाद 1973 में आंध्र प्रदेश में पड़े सूखे का समाधान निकलाने के लिए इसका सहारा लिया गया. फिर तमिलनाडु और कर्नाटक में यह प्रयोग हुआ. इतना ही नहीं, 2008 में चीन में बीजिंग ओलंपिक्स में 21 विमानों के जरिए क्लाउड सीडिंग की मदद से कृत्रिम बारिश कराई गई.