देश / कोरोना से जंग में भारत का बढ़ा रुतबा, देख रही है दुनिया?

कोरोना वायरस से दुनिया की लड़ाई में अचानक से भारत की अहमियत बढ़ गई है। कई विश्लेषकों का मानना है कि भारत की यह अहमियत संकट की घड़ी में उसकी उदार छवि को और प्रभावी बना सकती है। भारत में बनने वाली मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की मांग सुपरपावर अमेरिका से लेकर तकनीक की दुनिया में अपनी धाक रखने वाले इजरायल तक कर रहे हैं।

AajTak : Apr 17, 2020, 02:06 PM
कोरोना वायरस से दुनिया की लड़ाई में अचानक से भारत की अहमियत बढ़ गई है। कई विश्लेषकों का मानना है कि भारत की यह अहमियत संकट की घड़ी में उसकी उदार छवि को और प्रभावी बना सकती है। भारत में बनने वाली मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की मांग सुपरपावर अमेरिका से लेकर तकनीक की दुनिया में अपनी धाक रखने वाले इजरायल तक कर रहे हैं। भारत ने सबको यह दवाई मुहैया भी कराई और सबने दिल खोलकर तारीफ भी की। यहां तक कि कल तक जो कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ थे वो भी भारत से ये दवाई मांग रहे हैं। शायद मलेशिया और तुर्की कश्मीर पर अब उस तरह से पाकिस्तान की तरफदारी न कर पाएं।  

भारत अब तक 13 देशों को इस दवा की आपूर्ति कर चुका है और अभी भी दुनिया के कई देश इसके लिए कतार में हैं। भारत कुल 55 देशों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की सप्लाई करेगा, जिसमें अमेरिका-ब्रिटेन से लेकर युगांडा जैसे देश शामिल हैं।

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एंटी मलेरिया ड्रग है, जिसका इस्तेमाल अर्थराइटिस और लूपस के उपचार में भी किया जाता है। भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और हर साल 5 करोड़ डॉलर के मूल्य का निर्यात करता है। दुनिया में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन उत्पादन में अकेले भारत की 70 फीसदी की हिस्सेदारी है। भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। अफ्रीका के कुछ देशों और लैटिन अमेरिकी देशों को मानवता के नाते दवाई निर्यात करने के फैसले को लेकर भी भारत की तारीफ हो रही है। ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सानारो और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन भेजने के लिए शुक्रिया अदा किया। यूके समेत कई अन्य देश भी भारत का आभार व्यक्त कर चुके हैं।

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना वायरस की लड़ाई में गेमचेंजर बताने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारत का गुणगान किया। ट्रंप ने ट्वीट किया, असाधारण वक्त में दोस्तों के सहयोग की जरूरत और बढ़ जाती है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर फैसले के लिए भारत और भारत के लोगों को शुक्रिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत कोरोना से लड़ाई में पूरी मानवता पर उपकार कर रहा है।''

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्रंप के ट्वीट के जवाब में दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों पर जोर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा, मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। मुश्किल वक्त दोस्तों को और करीब लाता है। भारत-अमेरिका की साझेदारी पहले से भी ज्यादा मजबूत हुई है। भारत कोरोना वायरस से लड़ाई में मानवता की हरसंभव मदद करेगा। हम इस लड़ाई को मिलकर जीतेंगे।

कोरोना वायरस की त्रासदी आने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के कई देशों से संपर्क किया और इस लड़ाई में एकजुटता दिखाई। मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) देशों के लिए कोरोना वायरस फंड का ऐलान किया और एक करोड़ डॉलर देने की पेशकश की। भारत नेपाल, भूटान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, मॉरिशस और सेशेल्स को भी भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा भेजेगा।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, कश्मीर पर खुलकर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देश तुर्की और मलेशिया ने भी भारत से इस दवा को भेजने का अनुरोध किया है। दोनों देशों के साथ भारत के कूटनीतिक रिश्ते पिछले कुछ समय से काफी तनावपूर्ण हो गए थे। मलेशिया के एक मंत्री ने रॉयटर्स एजेंसी को बताया कि भारत ने दवा की एक खेप भेज दी है और सरकार ने दूसरी खेप भेजने की अपील की है।

कहा जा रहा है कि भारत की इन कोशिशों से दुनिया में भारत की कूटनीतिक स्थिति भी मजबूत हो रही है। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने अलजजीरा से कहा, कुछ हद तक भारत ने कई देशों से गुडविल कमाई है। लोग इस बात को जानते हैं कि चीन पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव एक्विपमेंट) और वेंटिलेटर्स का जरूरत से ज्यादा उत्पादन करता है लेकिन भारत उससे अलग है, वह पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए वास्तविक कुर्बानी दे रहा है। ये मदद भारत के लिए दूसरे देशों में सद्भावना तो पैदा करेगी लेकिन महामारी नियंत्रित होने के बाद देश किस तरह से कूटनीतिक रिश्ते आगे बढ़ाते हैं, उस बड़े परिदृश्य में ये एक छोटा सा पहलू साबित हो सकता है। इसलिए मुझे ये नहीं लगता है कि इस चीज को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की जरूरत है। हां, इतना जरूर है कि भारत भी जब इन देशों से कोई मदद मांगेगा तो उसकी इस उदारता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा।

अमेरिका में भारत के राजदूत रहे ललित मान सिंह ने कहा, इस वक्त हमें कूटनीति की चर्चा नहीं करनी चाहिए। जब कोई देश मुसीबत की घड़ी में किसी दवा को भेजने की अपील करता है तो यह उस देश का फायदा उठाने के लिए नहीं होता है। फिलहाल, हमें मानवता को सबसे ऊपर रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की हमेशा से जरूरतमंद देशों की मदद करने की नीति रही है, खासकर फार्मा सेक्टर के जरिए। भारत ने एचआईवी/एड्स से लड़ने के लिए भी अफ्रीका में दवा भेजकर लाखों लोगों की जानें बचाई थीं।

भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। पिछले कई सालों में भारत में बेहद कम कीमत में दवाइयां बनाई जा रही हैं, जिससे दुनिया भर में लोगों को सस्ता इलाज मुहैया हो रहा है। ग्लोबल बिजनेस रिपोर्ट के मुताबिक, जेनरिक ड्रग इंडस्ट्री भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी मजबूती बनती जा रही है। दुनिया में जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता देश से अमेरिका की जेनेरिक दवाइयों की 40 फीसदी आपूर्ति होती है। भारत की जेनेरिक ड्रग इंडस्ट्री दुनिया के लगभग हर देश को सप्लाई करती है। आकार के मामले में भारत की फार्मा इंडस्ट्री दुनिया में तीसरे नंबर पर और कीमत के मामले में 10वें नंबर पर है। इस सेक्टर का भारत की जीडीपी में 1।72 फीसदी का योगदान है। भारत 200 से ज्यादा देशों को फार्मा उत्पाद बेचता है जिसमें से सख्त निगरानी वाले अमेरिकी बाजार, पश्चिमी यूरोप और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं।

हालांकि, भारत इन दवाओं के कच्चे माल के लिए काफी हद तक चीन पर निर्भर है। चीन के हुबई प्रांत से जेनरिक दवाओं के कच्चे माल का आयात होता है और यही कोरोना वायरस का केंद्र भी था। चीन से आयात पर पाबंदी की वजह से कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित हो रही है। दवा बनाने वाली भारतीय कंपनियों का कहना है कि अगर भारत सरकार जल्द हस्तक्षेप नहीं करती है तो कच्चे माल की कमी पड़ सकती है और अगले कुछ सप्ताह में बाजार से कई दवाएं गायब हो सकती हैं।

फार्मा इंडस्ट्री के सामने तमाम चुनौतियां पैदा हो गई हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सप्लायर्स ने कच्चे माल की कीमतें बढ़ा दी हैं। हालत बेहद खराब है और ब्लैक मार्केटिंग शुरू हो गई है। यहां तक कि जो कच्चा माल आसानी से उपलब्ध था, उसके लिए भी मारा-मारी मच रही है। मास्क और हैंड सैनिटाइजर्स की तरह, कच्चा माल ढूंढना भी आसान नहीं रह गया है। कॉसवे फार्मा के प्रबंध निदेशक मानव ग्रोवर ने एक इंटरव्यू में कहा, ''हम एक किलो हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन 20000 रुपये में खरीदते थे लेकिन अब इसकी कीमत 85000 रुपये हो गई है। ऐसे में, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की एक टेबलेट की लागत 35 रुपये हो गई है जबकि पहले इसकी लागत सिर्फ पांच रुपये पड़ती थी।''