Vikrant Shekhawat : Sep 26, 2024, 02:20 PM
Tirupati Laddu Case: आंध्र प्रदेश के तिरूपति बालाजी मंदिर के लड्डू प्रसाद में मिलावट के आरोपों के चलते राज्य की राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस विवाद के बीच पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। उन्होंने घोषणा की है कि वह 28 सितंबर को तिरूपति बालाजी मंदिर जाएंगे, जहां वह पूजा-अर्चना और क्षमा अनुष्ठान करेंगे।नायडू के ‘पाप’ का प्रायश्चितजगन मोहन रेड्डी ने यह स्पष्ट किया है कि उनका यह कदम मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू द्वारा लगाए गए आरोपों के संदर्भ में है। उन्होंने कहा कि नायडू ने हाल ही में तिरुपति लड्डू के बारे में कथित तौर पर किए गए 'पाप' का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया है। YSR कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, जगन रेड्डी 27 सितंबर को तिरुमाला पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं और वहां रात बिताएंगे। इसके बाद, वह 28 सितंबर को भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करेंगे।जगन ने सभी आंध्र प्रदेशवासियों से अपील की है कि वे इस दिन राज्य के मंदिरों में पूजा-अर्चना में भाग लें, ताकि नायडू द्वारा लगाए गए आरोपों का प्रायश्चित किया जा सके। उनका यह कदम न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि राजनीतिक सन्देश भी देता है।विवाद की जड़ेंयह विवाद तब शुरू हुआ जब चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए विधायक दल की बैठक में आरोप लगाया कि जगन रेड्डी की YSRCP सरकार ने श्री वेंकटेश्वर मंदिर को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कहा कि लड्डू बनाने के लिए घटिया सामग्री और पशु चर्बी का इस्तेमाल किया गया। इन आरोपों ने देशभर में एक बड़ी चर्चा का विषय बना दिया है और मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की भावनाओं को प्रभावित किया है।भाजपा और टीडीपी की प्रतिक्रियाएंजगन रेड्डी के तिरूपति बालाजी मंदिर जाने के निर्णय पर भाजपा और टीडीपी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। आंध्र प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष डी. पुरंदेश्वरी ने कहा कि जगन मोहन रेड्डी को तिरुमला में अपने आस्था की घोषणा करने से पहले गरुड़ प्रतिमा के समक्ष अपना विश्वास व्यक्त करना चाहिए।वहीं, टीडीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम कुमार जैन ने कहा कि क्या जगन रेड्डी एसआईसी फॉर्म भरकर तिरुमाला मंदिर में अपनी भक्ति को दर्शाएंगे। इस तरह के सवालों से यह स्पष्ट होता है कि यह मामला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है।निष्कर्षजगन मोहन रेड्डी का तिरूपति बालाजी मंदिर जाने का निर्णय न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि यह राजनीतिक रणनीति का भी हिस्सा है। इस विवाद ने आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक नई ज्वाला भर दी है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह राजनीतिक बवंडर आगे कैसे बढ़ता है। श्रद्धालुओं की भावनाओं और राजनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाना इस समय की सबसे बड़ी चुनौती है।