दिल्ली की सियासत / निगम चुनाव टलने पर भड़के केजरीवाल, कहा- हार के डर से भाग रही है भाजपा

दिल्ली नगर निगम चुनाव टलने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भाजपा शासित केंद्र सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग पर हमला बोला है। मुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर इसे भाजपा को हार का डर करार दिया है। वहीं, दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग को केंद्र सरकार के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाया है। सीएम ने सवाल किया कि क्या अब चुनाव आयोग केंद्र सरकार के दबाव में काम करेगा? और क्या मोदी जी अब इस देश में चुनाव भी नहीं कराएंगे?

Vikrant Shekhawat : Mar 10, 2022, 06:03 PM
दिल्ली नगर निगम चुनाव टलने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भाजपा शासित केंद्र सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग पर हमला बोला है। मुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर इसे भाजपा को हार का डर करार दिया है। वहीं, दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग को केंद्र सरकार के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाया है। सीएम ने सवाल किया कि क्या अब चुनाव आयोग केंद्र सरकार के दबाव में काम करेगा? और क्या मोदी जी अब इस देश में  चुनाव भी नहीं कराएंगे? जबकि उपमुख्यमंत्री ने चुनावों को टालने के आयोग के कदम को लोकतंत्र की हत्या बताया है।

आयोग की तरफ से चुनाव की तिथि घोषित न करने की जानकारी मिलने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की जनता भाजपा के इस षड्यंत्र का मुंहतोड़ जवाब देगी और एमसीडी में 260 सीटों के साथ आप की सरकार बनेगी। उन्होंने दावा किया कि निगम चुनाव में भाजपा का सफाया हो जाएगा। सीएम ने सवाल किया कि क्या अब चुनाव आयोग केंद्र सरकार के दबाव में काम करेगा? और क्या मोदी जी अब इस देश में चुनाव भी नहीं कराएंगे?

दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि जब भाजपा, दिल्ली एमसीडी चुनावों में बुरी तरह हारती हुई नजर आ रही है तो उसने लोकतंत्र का गला घोटना शुरू कर दिया है। उनका आरोप है कि भाजपा ने साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग कर चुनाव आयोग को घुटनों पर लाकर रेंगने को मजबूर कर दिया है। आयोग ने इसी से दिल्ली एमसीडी चुनावों की तारीख टाल दी। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि जब देश का चुनाव आयोग जिसके कंधों पर संविधान ने बाबा साहेब ने यह जिम्मेदारी दी कि वह समय पर निष्पक्ष तरीके से चुनाव करवाएगा, लेकिन उसी चुनाव आयोग ने लोकतंत्र का गला घोंट दिया है।

मनीष सिसोदिया के मुताबिक, लोकतंत्र के लिए आज एक दुर्भाग्यपूर्ण, खतरनाक व काला दिन है। तयशुदा कार्यक्रम के बावजूद आयोग ने चुनाव की तारीख घोषित नहीं की थी।  अगर यही परंपरा रही तो भाजपा हार के डर से राज्यों के चुनाव टलवा देगी, मोदी जी हार के डर से लोकसभा के चुनाव टलवा देंगे। सिसोदिया का आरोप है कि बीते 15-17 सालों में दिल्ली एमसीडी में भाजपा के भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि मची हुई है। इससे हर आदमी दुखी है। लोगों के गुस्से से भाजपा इतनी घबराई गई है कि चुनावों से भागती नजर आ रही है।

भाजपा चुनाव से नहीं डरती : आदेश गुप्ता

नई दिल्ली। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा है कि भाजपा कभी चुनाव से नहीं डरती। भाजपा का संगठन हमेशा चुनाव के लिए तैयार रहता है। गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद चुनाव से डरे हुए हैं। क्योंकि उनकी सरकार की भ्रष्ट शराब नीति से जनता में उनके प्रति रोष है। गुप्ता ने यह भी कहा है कि दिल्ली की जनता भली भांति जानती है कि दिल्ली के तीनों नगर निगमों की समस्याओं को बढ़ाने में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकार के राजनीतिक द्वेष की बड़ी भूमिका है।

भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने ट्वीट कर दिया मुख्यमंत्री का जवाब

भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने ट्वीट कर दिल्ली के मुख्यमंत्री का एमसीडी चुनाव पर की गई टिप्पणी का जवाब दिया है। ट्वीट कर शायराना अंदाज में कहा कि बड़े नादां है वो जो करते है बुलंदी पे गुरुर इतना, हमने चढ़ते सूरज को भी ढलते हुए देखा है... एमसीडी के फंड से अपना चेहरा चमकाने के बाद दिल्ली के ठेके दार ज्ञान बांट रहे है। दूसरे ट्वीट में गंभीर ने कहा कि केजरीवाल जी ने भगवंत मान के साथ ज्यादा... कोई बात नहीं एमसीडी चुनाव भी होगा और आपका नशा भी उतारा जाएगा।

हार से बचने के लिए चुनाव टालना चाहती हैं दोनों पार्टियां : कांग्रेस

नई दिल्ली। नगर निगम चुनावों के मामले में दिल्ली कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी और भाजपा पर निशाना साधा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार ने आरोप लगाया कि संभावित हार से बचने के लिए दोनों पार्टियां चुनाव टालना चाहती हैं। कांग्रेस ने दिल्ली में नगर निगम चुनावों को निर्धारित समय पर करवाने की मांग की है। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस के जिला कार्यकर्ता सम्मेलनों में कार्यकर्ता बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे है। निगम चुनावों के लिए सभी वार्डों में बड़ी संख्या में आवेदन मिल रहे हैं। 

...तो मुख्यमंत्री की टक्कर में होगा नगर निगम का मेयर

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कद इतना बड़ा हो गया है कि प्रदेश भाजपा टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। यहां तक कि प्रदेश भाजपा के उठाए गए संजीदा सवालों पर भी मुख्यमंत्री का जवाब नहीं आता। प्रदेश का सियासी एजेंडा मुख्यमंत्री तय करते हैं और उनकी पिच पर भाजपा नेता उतरने को मजबूर हो जाते हैं। दिल्ली में आप की रणनीति कुछ वैसी है, जैसी केंद्र में भाजपा की।

एकीकृत निगम होने के बाद केंद्र सरकार की योजनाओं को भी लागू कराने में मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि योजना, प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड, आयुष्मान भारत योजना को दिल्ली में भी लागू करने में परेशानी नहीं होगी। इन योजनाओं से भाजपा को एक बड़े वोट बैंक पर कब्जा होने की उम्मीद भी है।

जानकार मान रहे हैं कि एमसीडी को एक करने के पीछे आप की बढ़त को सीमित करने की रणनीति है। दिल्ली में जब एक मेयर होगा और संविधान से उसे ताकत मिलेगी तो उनकी आवाज मुख्यमंत्री के बराबर होगी। अभी तीनों निगमों की समस्याएं अलग-अलग होने से उनके मेयर की एक आवाज नहीं बन पाती। केंद्र सरकार अगर तीनों एमसीडी को एक करती है तो दिल्ली का एक मेयर होगा और एक स्थायी समिति का अध्यक्ष।

इस तरह से एमसीडी की सत्ता भी केंद्रित होगी। इससे भाजपा को भी दिल्ली के मुख्यमंत्री के बराबर के कद का नेता मिल जाएगा। उधर, एमसीडी बराबर आरोप लगाती है कि दिल्ली सरकार फंड रोक कर रखती है। ऐसे में दिल्ली का विकास संभव नहीं हो पाता है। जब एकीकृत एमसीडी थी तो फंड की कमी नहीं थी। ऐसा इसलिए था कि दक्षिणी दिल्ली व उत्तरी दिल्ली एमसीडी से जो भी फंड इकट्ठा होता था उसे पूर्वी दिल्ली एमसीडी को भी समान रूप से वितरित किया जाता है।

एकीकृत एमसीडी के स्थायी समिति नेता का पद शक्तिशाली होता था

एमसीडी जब एकीकृत थी, तब स्थायी समिति के नेता का पद काफी पॉवरफुल होता था। कांग्रेस के दिग्गज नेता राम बाबू शर्मा जब एकीकृत एमसीडी स्थायी समिति के अध्यक्ष थे तो वे तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना और अपनी ही पार्टी की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से कम अधिकार नहीं रखते थे। इसी तरह भाजपा की मेयर शांति देसाई का कद भी तत्कालीन दिल्ली के मुख्यमंत्री से कम नहीं था।

15 साल की सत्ता विरोधी   लहर का भी डर

सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2007 में एकीकृत नगर निगम और उसके बाद वर्ष 2012 व 2017 में तीनों नगर निगमों के चुनाव में भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा के नेताओं को इस बात का भी डर है कि इस बार जीत मुश्किल न हो जाए। इसकी बड़ी वजह 15 साल की सत्ता विरोधी की लहर मानी जा रही है। अब अगर भाजपा एमसीडी चुनाव हारती है तो निगम के नेताओं के साथ भाजपा के सातों सांसदों की कार्यशैली पर भी सवाल उठेंगे।