राजस्थान / 5 हजार साल पुरानी प्रेम कहानी, राजकुमारी के लिए प्रेमी ने खोद दी थी नक्की झील

माउंट आबू में आज भी करीब 5 हजार साल से अधिक पुरानी रसिया बालम और कुंवारी कन्या की अधूरी प्रेम कहानी यहां की वादियों में प्रचलित है। इनकी अधूरी प्रेम कहानी की एक मात्र निशानी नक्की झील है, जिसके पीछे यह मान्यता है कि राजकुमारी को पाने के लिए रसिया बालम ने एक ही रात में इसे अपने नाखूनों से खोद दिया था। इतना ही नहीं यहां इनके मंदिर भी है, जहां यह मान्यता है कि प्रेमी जोड़ो की मनोकामनाएं पूरी होती है साथ ही सुहाग महिलाओं

Vikrant Shekhawat : Feb 14, 2020, 12:40 PM
माउंट आबू: माउंट आबू में आज भी करीब 5 हजार साल से अधिक पुरानी रसिया बालम और कुंवारी कन्या की अधूरी प्रेम कहानी यहां की वादियों में प्रचलित है। इनकी अधूरी प्रेम कहानी की एक मात्र निशानी नक्की झील है, जिसके पीछे यह मान्यता है कि राजकुमारी को पाने के लिए रसिया बालम ने एक ही रात में इसे अपने नाखूनों से खोद दिया था। इतना ही नहीं यहां इनके मंदिर भी है, जहां यह मान्यता है कि प्रेमी जोड़ो की मनोकामनाएं पूरी होती है साथ ही सुहाग महिलाओं को भी अमर सुहाग का आशीर्वाद मिलता है।

इनकी प्रेम कहानी को लेकर यह मान्यता है कि रसिया बालम आबू पर्वत में मजदूरी करने आया था। कई उसे शिव का रूप भी मानते हैं और राजकुमारी को देवी का रूप। इसलिए इनके यहां मंदिर भी है। राजकुमारी को उससे प्यार हो गया। राजा ने दोनों दोनो की शादी के लिए एक शर्त रखी की यदि एक रात में बिना किसी औजारों के यदि कोई झील खोद देगा तो उसकी बेटी की शादी वह उससे करा देगा। इस पर रसिया बालम ने एक ही रात में नक्की झील को खोद डाला और राजा के पास जाने लगा। लेकिन, राजकुमारी की मां नहीं चाहती थी की उसकी शादी उससे हो। ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां ने रात में ही मुर्गे की आवाज निकाल दी और रसिया बालम को लगा कि वह शर्त हार गया है। जब वह अपने प्राण त्यागने लगा तो उसे राजकुमारी की मां के षड‌्रयंत्र के बारे में पता चला इस पर उसके श्राप के बाद राजकुमारी की मां और बाद में वह और राजकुमारी दोनों की पत्थर के बन गए।

मान्यता...नक्की झील प्रेम की निशानी, राजकुमारी को पाने के लिए रसिया बालम ने एक ही रात में खोद दी थी नक्की झील

- देलवाड़ा के कन्या कुंवारी रोड पर मंदिर और प्यार-समर्पण की निशानी नक्की झील, प्रेमी-जोड़ा व नव दंपती उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। आज भी मंदिर में पूजा होती है और देखभाल मदन जी ठाकुर पुजारी द्वारा की जा रही है।

- ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां की वजह से अधूरी रही प्रेम कहानी, इसलिए यहां आने वाले प्रेमी जोड़े राजकुमारी की मां को पत्थर मारते हैं और वहां पत्थरों का ढेर भी लगा है। ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है।

- एक किंवदंती यह भी है कि मंदिर में दो पेड़ है, जिसे रसिया बालम का तोरण कहा जाता है। इसके बीच हवन कुंड है। यह भी एक किंवदंती है कि किसी संत महात्मा ने यह बताया था कि 4 युग बीतने के बाद इन दोनों का फिर से मिलन होगा।

5 हजार साल पुरानी गाथा, महाराणा कुंभा ने करवाया था जीर्णोद्घार

सिरोही देवस्थान के अध्यक्ष व पूर्व नरेश रघुवीर सिंह देवड़ा बताते हैं कि यह मंदिर 5 हजार साल से भी अधिक पुराना है। 1453 से 1468 तक महाराणा कुंभा यहां रुके थे। इस दौरान उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्घार करवाया था।

मारवाड़-गोड़वाड़ में रसियो आयो गढ़ आबू रे माय लोक गीत में आज भी जिंदा है इनकी अमर गाथा

रसिया बालम की प्रेमकथा आज भी माउंट आबू पूरे मारवाड़-गोडवाड़ जिले में लोकगीतों में जिंदा है। रसिया बालम पर चरसियो आयो गढ़ आबू रे माय, देलवाड़ा आईने झाड़ो गाढ़ियो रे, वठे करियो कारीगरी रो काम, वठे बनाई मूरती शोभनी रे...ज् स्थानीय भाषा में ये लोकगीत प्रसिद्ध है। इस लोकगीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और यहां देलवाड़ा के पास मूर्तिकला का काम करके प्रसिद्धि पाने से लेकर कुंवारी कन्या से शादी करने के लिए नक्की झील खोदने तक की पूरी गाथा है।