AMAR UJALA : Aug 24, 2020, 08:58 AM
Delhi: कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से पहले 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा फोड़े गए लेटर बम की मुख्य वजह पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हैं। पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को खत लिखने वाले नेता न सिर्फ राहुल की कार्यशैली से असहज हैं, बल्कि उनकी कार्यशैली को पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाला भी मान रहे हैं। असंतुष्ट नेताओं ने दो हफ्ते पहले यह पत्र सोनिया गांधी को भेजा था लेकिन पार्टी ऐसे किसी पत्र के होने से बार-बार इनकार करती रही है।
दरअसल, यह बात उस घटना से बिगड़ी, जब राहुल ने राजस्थान विवाद में प्रक्रियाओं का पालन किए बिना सचिन पायलट की वापसी की राह तैयार की। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल इस विवाद को ठंडा करने के लिए पार्टी में दो उपाध्यक्षों की नियुक्ति की जा सकती है।निकट भविष्य में गुलाम नबी आजाद, पी. चिदंबरम और मल्लिकार्जुन खरगे में से दो को पार्टी में नंबर दो की हैसियत दी सकती है। हालांकि इस फार्मूले से विवाद का हल निकालना मुश्किल दिख रहा है क्योंकि पार्टी में राहुल खेमा जहां जवाबी हमला बोलने को तैयार है, वहीं राहुल विरोधी खेमा भी अपने कदम पीछे हटाने को तैयार नहीं है।पायलट प्रकरण बना बड़ी वजहसूत्रों का कहना है कि राजस्थान के सियासी संकट मामले में जिस प्रकार राहुल ने हस्तक्षेप किया, उससे उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ी है। पायलट की घर वापसी के लिए राहुल ने तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया। राज्य के प्रभारी महासचिव सहित अन्य पक्षों से बिना विचार विमर्श किए उनकी वापसी की राह बनाई। इससे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी खफा हुए।
मुद्दों से भी परेशानीकई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि भाजपा के खिलाफ बोलने, मुद्दों का चुनाव करते समय राहुल उनसे विचार विमर्श नहीं करते हैं। मसलन आर्थिक या विदेश नीति पर बोलते समय पार्टी में इससे जुड़े अनुभव और विशेषज्ञता वाले नेताओं से बात नहीं करते। भाजपा के खिलाफ मुद्दों के चयन में भी यही स्थिति है। इससे आखिर पार्टी को नुकसान हो रहा है। मसलन चीन से जारी सीमा विवाद मामले में पूरे विपक्ष के इतर राहुल गांधी एकतरफा मोर्चा खोले हुए हैं।
राहुल खेमा भी पलटवार को तैयारजिन 23 नेताओं ने पत्र लिखकर पार्टी में आमूलचूल बदलाव की मांग रखी है, उन्होंने कहीं भी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की आलोचना नहीं की है। युवाओं का मोदी के प्रति आकर्षण बढ़ने की बात कर राहुल पर परोक्ष निशाना साधा गया है। सूत्रों का कहना है कि अब बारी राहुल समर्थक नेताओं की है। राहुल समर्थक नेता पिछले दिनों पार्टी सांसदों की वर्चुअल बैठक में यूपीए-दो सरकार को लोकसभा चुनाव में मिली हार के लिए जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। पार्टी का धड़ा राहुल को समर्थन नहीं करने का भी आरोप लगा चुका है। सूत्रों का कहना है कि सोमवार को होने वाली कार्यसमिति की बैठक में इस खेमे के नेता राहुल के समर्थन में मोर्चा खोल सकते हैं।
पत्र में पार्टी की लचर कार्यप्रणाली, कमजोर संगठन, फैसलों में देरी का जिक्र्रपत्र लिखने वाले नेताओं ने पार्टी की लचर कार्यप्रणाली, कमजोर संगठन, फैसलों में देरी के चलते कार्यकर्ताओं में निराशा और जनता से दूरी बनने की बात कही है। उन्होंने भविष्य में पार्टी में अहम फैसलों के लिए एक प्रभावी सामूहिक प्रणाली स्थापित किए जाने की मांग की है।पत्र कहा गया है कि मौजूदा माहौल से कार्यकर्ताओं में हताशा और पार्टी कमजोर हुई है। पार्टी का जमीनी और युवाओं से जुड़ाव खत्म हो रहा है। पार्टी की मजबूती और राज्यों में मजबूत संगठन खड़ा करने के लिए कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव कराने और नए सिरे से नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने की बात कही गई है।साथ ही सवाल उठाया है कि आखिर कार्यसमिति अपनी भूमिका सही ढंग से क्यों नहीं निभा पा रही है। मुसीबत के समय कार्यसमिति पार्टी को सही मार्गदर्शन देने में भी असमर्थ रही है।
पत्र पर गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मनीष तिवारी के दस्तखतकांग्रेस अध्यक्ष को भेजे पत्र में दस्तखत करने वालों में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों में आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, मुकुल वासनिक, मिलिंद देवड़ा शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों में भूपिंदर सिंह हुड्डा, एम. वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, राजेंद्र कौर भट्टल, पीजे कुरियन शामिल हैं।इसके अलावा जितिन प्रसाद, सांसद विवेक तन्खा, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, के साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्षों में राजबब्बर, अरविंदर सिंह लवली, दिल्ली के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, अखिलेश प्रसाद सिंह और कुलदीप शर्मा के हस्ताक्षर हैं।
जानिए किस नेता ने क्या कहाखराब स्वास्थ्य के बावजूद सोनिया गांधी ने कांग्रेस कुनबे की एकजुटता बनाए रखी है। कुछ वरिष्ठ नेताओं की ओर से पार्टी नेतृत्व में बदलाव के लिए लिखा गया पत्र दुर्भाग्यपूर्ण है। हालात को चुनौती देते हुए सोनिया 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनी थीं। उन्होंने तभी से पार्टी को बचाए रखा है। यह कोई मामूली बात नहीं है। लोकतंत्र खतरे में है और इसे बचाने की जद्दोजहद जारी है। इसीलिए हम पीछे नहीं हट सकते। गांधी परिवार ने पार्टी को एकजुट बनाए रखा है और संकट के समय में हमें उनकी जरूरत है।- अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री राजस्थानकांग्रेस ने 135 साल में कई संकटों का सामना किया है। फिर भी लोगों की आस्था इस परिवार के प्रति अडिग रखी है। हमें याद रखना चाहिए कि गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राजस्थान में राहुल गांधी के नेतृत्व पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया। वर्तमान समय में सोनिया और राहुल गांधी ही एकमात्र आशा की किरण हैं।- भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़
सोनिया जी का नेतृत्व सर्वमान्य है। यदि सोनिया जी कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना ही चाहती हैं तो राहुल जी को अपनी जिद छोड़कर अध्यक्ष का पद स्वीकार कर लेना चाहिए। देश का आम कांग्रेस कार्यकर्ता और किसी को स्वीकार नहीं करेगा।- दिग्विजय सिंह
मैंने सोनिया गांधी से अपील की थी कि राहुल गांधी को ही पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए, क्योंकि मौजूदा समय में पीएम नरेंद्र मोदी को वह ही चुनौती दे रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा के शीर्ष नेता राहुल को ही निशाना बनाते हैं। राहुल पार्टी को नेतृत्व दे सकते हैं और पार्टी में जान फूंक सकते हैं।- रिपुन बोरा, अध्यक्ष असम कांग्रेसबिना देरी किए राहुल को अध्सक्ष बनाया जाना चाहिए। कुछ पार्टी नेताओं के पत्र ने कार्यकर्ताओं के मनोबल को गिराने का काम किया है।- अनिल कुमार, अध्यक्ष दिल्ली कांग्रेसपार्टी नेताओं द्वारा लिखी गई चिट्ठी और कुछ नहीं बल्कि यह सब कुछ राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से दूर करने की साजिश है। पहले जो षड्यंत्र बंद कमरों में रचा जाता था वह एक पत्र में उभरकर सामने आया है। इसका एक ही जवाब है कि राहुल गांधी अध्यक्ष न बनने की जिद छोड़ें और राज्यों में कांग्रेस की ढहती दीवारों को बचाएं। कांग्रेस को सिर्फ वही बचा सकते हैं। - संजय निरुपम, कांग्रेस नेताऐसे समय में कुछ वरिष्ठ नेताओं की ओर से खत लिखा जाना संदेह पैदा करता है। इनमें से कुछ नेताओं ने पार्टी को बार-बार नुकसान भी पहुंचाया है। सोनिया गांधी ने पार्टी को मुश्किल वक्त में अध्यक्ष के तौर पर एकजुट किया। अभी एक साल पहले सभी नेता सोनिया जी से पार्टी की बागडोर संभालने की गुहार लगा रहे थे। अब कुछ लोगों द्वारा उनके नेतृत्व पर सवाल उठाया जाना बिल्कुल ही गलत है।- अश्विनी कुमार, वरिष्ठ कांग्रेस नेताकांग्रेस पार्टी ने कई संकटों को अपने संघर्ष से परास्त किया है। आज जब देश की लोकतांत्रिक और सांविधानिक व्यवस्था खतरे में है, ऐसे वक्त में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नेतृत्व ही समस्त देशवासियों और असंख्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं का बल है।- कुमार सैलजा, अध्यक्ष हरियाणा कांग्रेसराहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए सबसे सक्षम नेता हैं। भाजपा और संघ ने उनकी जो छवि बनाई है, वह एकदम अलग है। पिछले छह महीनों में उन्होंने कोरोना, बेरोजगारी, तुरंत लॉकडाउन लगाए जाने, टेस्टिंग बढ़ाने, चीन और इकोनॉमी को लेकर जो भी कहा है वह हुआ है।- उदित राजदेश अनेक संकटों से गुजर रहा है और जिस प्रकार सत्ता में बैठे लोगों द्वारा सांविधानिक व्यवस्थाओं को विकृत किया जा रहा है, देश को बचाने एवं लोगों की आवाज बुलंद करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नेतृत्व अनिवार्य है।- पीएल पुनिया, वरिष्ठ कांग्रेस नेता
दरअसल, यह बात उस घटना से बिगड़ी, जब राहुल ने राजस्थान विवाद में प्रक्रियाओं का पालन किए बिना सचिन पायलट की वापसी की राह तैयार की। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल इस विवाद को ठंडा करने के लिए पार्टी में दो उपाध्यक्षों की नियुक्ति की जा सकती है।निकट भविष्य में गुलाम नबी आजाद, पी. चिदंबरम और मल्लिकार्जुन खरगे में से दो को पार्टी में नंबर दो की हैसियत दी सकती है। हालांकि इस फार्मूले से विवाद का हल निकालना मुश्किल दिख रहा है क्योंकि पार्टी में राहुल खेमा जहां जवाबी हमला बोलने को तैयार है, वहीं राहुल विरोधी खेमा भी अपने कदम पीछे हटाने को तैयार नहीं है।पायलट प्रकरण बना बड़ी वजहसूत्रों का कहना है कि राजस्थान के सियासी संकट मामले में जिस प्रकार राहुल ने हस्तक्षेप किया, उससे उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ी है। पायलट की घर वापसी के लिए राहुल ने तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया। राज्य के प्रभारी महासचिव सहित अन्य पक्षों से बिना विचार विमर्श किए उनकी वापसी की राह बनाई। इससे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी खफा हुए।
मुद्दों से भी परेशानीकई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि भाजपा के खिलाफ बोलने, मुद्दों का चुनाव करते समय राहुल उनसे विचार विमर्श नहीं करते हैं। मसलन आर्थिक या विदेश नीति पर बोलते समय पार्टी में इससे जुड़े अनुभव और विशेषज्ञता वाले नेताओं से बात नहीं करते। भाजपा के खिलाफ मुद्दों के चयन में भी यही स्थिति है। इससे आखिर पार्टी को नुकसान हो रहा है। मसलन चीन से जारी सीमा विवाद मामले में पूरे विपक्ष के इतर राहुल गांधी एकतरफा मोर्चा खोले हुए हैं।
राहुल खेमा भी पलटवार को तैयारजिन 23 नेताओं ने पत्र लिखकर पार्टी में आमूलचूल बदलाव की मांग रखी है, उन्होंने कहीं भी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की आलोचना नहीं की है। युवाओं का मोदी के प्रति आकर्षण बढ़ने की बात कर राहुल पर परोक्ष निशाना साधा गया है। सूत्रों का कहना है कि अब बारी राहुल समर्थक नेताओं की है। राहुल समर्थक नेता पिछले दिनों पार्टी सांसदों की वर्चुअल बैठक में यूपीए-दो सरकार को लोकसभा चुनाव में मिली हार के लिए जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। पार्टी का धड़ा राहुल को समर्थन नहीं करने का भी आरोप लगा चुका है। सूत्रों का कहना है कि सोमवार को होने वाली कार्यसमिति की बैठक में इस खेमे के नेता राहुल के समर्थन में मोर्चा खोल सकते हैं।
पत्र में पार्टी की लचर कार्यप्रणाली, कमजोर संगठन, फैसलों में देरी का जिक्र्रपत्र लिखने वाले नेताओं ने पार्टी की लचर कार्यप्रणाली, कमजोर संगठन, फैसलों में देरी के चलते कार्यकर्ताओं में निराशा और जनता से दूरी बनने की बात कही है। उन्होंने भविष्य में पार्टी में अहम फैसलों के लिए एक प्रभावी सामूहिक प्रणाली स्थापित किए जाने की मांग की है।पत्र कहा गया है कि मौजूदा माहौल से कार्यकर्ताओं में हताशा और पार्टी कमजोर हुई है। पार्टी का जमीनी और युवाओं से जुड़ाव खत्म हो रहा है। पार्टी की मजबूती और राज्यों में मजबूत संगठन खड़ा करने के लिए कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव कराने और नए सिरे से नेताओं को जिम्मेदारी सौंपने की बात कही गई है।साथ ही सवाल उठाया है कि आखिर कार्यसमिति अपनी भूमिका सही ढंग से क्यों नहीं निभा पा रही है। मुसीबत के समय कार्यसमिति पार्टी को सही मार्गदर्शन देने में भी असमर्थ रही है।
पत्र पर गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मनीष तिवारी के दस्तखतकांग्रेस अध्यक्ष को भेजे पत्र में दस्तखत करने वालों में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों में आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, मुकुल वासनिक, मिलिंद देवड़ा शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों में भूपिंदर सिंह हुड्डा, एम. वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, राजेंद्र कौर भट्टल, पीजे कुरियन शामिल हैं।इसके अलावा जितिन प्रसाद, सांसद विवेक तन्खा, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, के साथ पूर्व प्रदेश अध्यक्षों में राजबब्बर, अरविंदर सिंह लवली, दिल्ली के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष योगानंद शास्त्री, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, अखिलेश प्रसाद सिंह और कुलदीप शर्मा के हस्ताक्षर हैं।
जानिए किस नेता ने क्या कहाखराब स्वास्थ्य के बावजूद सोनिया गांधी ने कांग्रेस कुनबे की एकजुटता बनाए रखी है। कुछ वरिष्ठ नेताओं की ओर से पार्टी नेतृत्व में बदलाव के लिए लिखा गया पत्र दुर्भाग्यपूर्ण है। हालात को चुनौती देते हुए सोनिया 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनी थीं। उन्होंने तभी से पार्टी को बचाए रखा है। यह कोई मामूली बात नहीं है। लोकतंत्र खतरे में है और इसे बचाने की जद्दोजहद जारी है। इसीलिए हम पीछे नहीं हट सकते। गांधी परिवार ने पार्टी को एकजुट बनाए रखा है और संकट के समय में हमें उनकी जरूरत है।- अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री राजस्थानकांग्रेस ने 135 साल में कई संकटों का सामना किया है। फिर भी लोगों की आस्था इस परिवार के प्रति अडिग रखी है। हमें याद रखना चाहिए कि गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राजस्थान में राहुल गांधी के नेतृत्व पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया। वर्तमान समय में सोनिया और राहुल गांधी ही एकमात्र आशा की किरण हैं।- भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़
सोनिया जी का नेतृत्व सर्वमान्य है। यदि सोनिया जी कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना ही चाहती हैं तो राहुल जी को अपनी जिद छोड़कर अध्यक्ष का पद स्वीकार कर लेना चाहिए। देश का आम कांग्रेस कार्यकर्ता और किसी को स्वीकार नहीं करेगा।- दिग्विजय सिंह
मैंने सोनिया गांधी से अपील की थी कि राहुल गांधी को ही पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए, क्योंकि मौजूदा समय में पीएम नरेंद्र मोदी को वह ही चुनौती दे रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा के शीर्ष नेता राहुल को ही निशाना बनाते हैं। राहुल पार्टी को नेतृत्व दे सकते हैं और पार्टी में जान फूंक सकते हैं।- रिपुन बोरा, अध्यक्ष असम कांग्रेसबिना देरी किए राहुल को अध्सक्ष बनाया जाना चाहिए। कुछ पार्टी नेताओं के पत्र ने कार्यकर्ताओं के मनोबल को गिराने का काम किया है।- अनिल कुमार, अध्यक्ष दिल्ली कांग्रेसपार्टी नेताओं द्वारा लिखी गई चिट्ठी और कुछ नहीं बल्कि यह सब कुछ राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से दूर करने की साजिश है। पहले जो षड्यंत्र बंद कमरों में रचा जाता था वह एक पत्र में उभरकर सामने आया है। इसका एक ही जवाब है कि राहुल गांधी अध्यक्ष न बनने की जिद छोड़ें और राज्यों में कांग्रेस की ढहती दीवारों को बचाएं। कांग्रेस को सिर्फ वही बचा सकते हैं। - संजय निरुपम, कांग्रेस नेताऐसे समय में कुछ वरिष्ठ नेताओं की ओर से खत लिखा जाना संदेह पैदा करता है। इनमें से कुछ नेताओं ने पार्टी को बार-बार नुकसान भी पहुंचाया है। सोनिया गांधी ने पार्टी को मुश्किल वक्त में अध्यक्ष के तौर पर एकजुट किया। अभी एक साल पहले सभी नेता सोनिया जी से पार्टी की बागडोर संभालने की गुहार लगा रहे थे। अब कुछ लोगों द्वारा उनके नेतृत्व पर सवाल उठाया जाना बिल्कुल ही गलत है।- अश्विनी कुमार, वरिष्ठ कांग्रेस नेताकांग्रेस पार्टी ने कई संकटों को अपने संघर्ष से परास्त किया है। आज जब देश की लोकतांत्रिक और सांविधानिक व्यवस्था खतरे में है, ऐसे वक्त में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नेतृत्व ही समस्त देशवासियों और असंख्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं का बल है।- कुमार सैलजा, अध्यक्ष हरियाणा कांग्रेसराहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए सबसे सक्षम नेता हैं। भाजपा और संघ ने उनकी जो छवि बनाई है, वह एकदम अलग है। पिछले छह महीनों में उन्होंने कोरोना, बेरोजगारी, तुरंत लॉकडाउन लगाए जाने, टेस्टिंग बढ़ाने, चीन और इकोनॉमी को लेकर जो भी कहा है वह हुआ है।- उदित राजदेश अनेक संकटों से गुजर रहा है और जिस प्रकार सत्ता में बैठे लोगों द्वारा सांविधानिक व्यवस्थाओं को विकृत किया जा रहा है, देश को बचाने एवं लोगों की आवाज बुलंद करने के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नेतृत्व अनिवार्य है।- पीएल पुनिया, वरिष्ठ कांग्रेस नेता