Vikrant Shekhawat : Sep 18, 2021, 04:03 PM
विज्ञान डेस्क: धरती के दक्षिणी ध्रुव पर हर साल ओजोन परत में छेद बनता है लेकिन इस साल यह अंटार्कटिका से ज्यादा बड़ा है। यूरोपियन यूनियन की कॉपरनिकस अटमॉस्फीरिक मॉनिटरिंग सर्विस ने गुरुवार को इसका खुलासा किया। हर साल अगस्त से अक्टूबर के बीच ओजोन की मात्रा कम होती है और अंटार्कटिक के ऊपर यह छेद दिखता है। कॉपरनिकस के मुताबिक अमूमन इसका सबसे बड़ा आकार सितंबर के मध्य से अक्टूबर के मध्य तक रहता है। पिछले हफ्ते यह काफी बड़ा हो गया है। पिछले महीने नेचर में छपी एक स्टडी में कहा गया था कि अगर Montreal Protocol के तहत CFCs पर बैन नहीं लगाया गया होता तो वैश्विक तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की ओर होता और ओजोन की परत खत्म होने लगती।पिछले साल भी टूटा रेकॉर्डएजेंसी के मुताबिक 1979 के बाद यह इसी मौसम के दौरान पिछले कई साल की तुलना में 75% से ज्यादा बड़ा है। यहां तक कि यह अंटार्कटिका से भी बड़ा हो गया। कॉपरनिकस के डायरेक्टर विनसेंट हेनरी पूच ने बताया है कि इस साल भी मौसम की शुरुआत में यह छेद बन गया है। अब हमारे अनुमान के मुताबिक इस साल यह काफी बड़ा होने वाला है। पिछले साल भी यह सितंबर में शुरू हो गया था और उसके बाद डेटा रेकॉर्ड में सबसे ज्यादा वक्त तक रहने वाला छेद बन गया था।क्यों होता है छेद?धरती से 9-22 मील ऊपर मौजूद ओजोन परत सूरज से आने वाले अल्ट्रावॉइलट रेडिएशन को रोकती है। इस परत में छेद क्लोरीन और ब्रोमीन जैसे केमिकल्स के स्ट्रेटोस्फीयर में जाने से बनता है जहां ओजोन की परत होती है। अंटार्कटिक की सर्दियों के दौरान इनसे रिएक्शन तेज हो जाता है। अंटार्कटिक पोलर वोर्टेक्स के साथ इस छेद को जोड़ा जाता है। पोलर वोर्टेक्स ठंडी हवा का चक्कर होता है। जब स्ट्रेटोस्फीयर में तापमान गर्म होने लगता है तो ओजोन की मात्रा में कमी धीमी हो जाती है। दिसंबर में पोलर वोर्टेक्स कमजोर पड़ता है और टूट जाता है और ओजोन की मात्रा सामान्य हो जाती है।दिसंबर तक होता है सामान्यइससे अंटार्कटिक की सर्दियों के दौरान पोलर वोर्टेक्स से हवा का अलग होना खत्म हो जाता है और क्लोरीन और ब्रोमीन जैसे केमिकल्स ओजोन की परत को तोड़ने लगते हैं। ओजोन स्तर दिसंबर तक सामान्य हो जाता है। कॉपरनिकस ओजोन की परत को कंप्यूटर मॉडलिंग और सैटलाइट ऑब्जर्वेशन की मदद से मॉनिटर करता है। ओजोन की परत पहले की तुलना में बेहतर हुई है लेकिन यह पूरी तरह से 2060-60 तक रिकवर हो पाएगी। इसके लिए वायुमंडल से क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) को पूरी तरह से खत्म होना होगा। साल 1987 में साइन किए गए Montreal Protocol के तहत 2030 तक CFC को पूरी तरह बंद करने का लक्ष्य है।