Coronavirus / गंभीर मरीजों के लिए प्लाज्मा थैरेपी सफल नहीं पर एक खुशखबरी भी...

कोवैलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी कोरोना वायरस से ग्रसित गंभीर मरीजों को ठीक करने में उतना सफल नहीं हो रहा है, जितने की उम्मीद पूरी दुनिया ने लगाई थी। एक नई स्टडी में यह खुलासा किया है चीन के शोधकर्ताओं ने। चीन के रिसर्चर्स का कहना है कि गंभीर मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा थैरेपी पूरी तरह से सही नहीं है। इसके लिए कुछ और तरीका खोजना होगा।

AajTak : Jun 05, 2020, 08:28 AM
Coronavirus: कोवैलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी कोरोना वायरस से ग्रसित गंभीर मरीजों को ठीक करने में उतना सफल नहीं हो रहा है, जितने की उम्मीद पूरी दुनिया ने लगाई थी। एक नई स्टडी में यह खुलासा किया है चीन के शोधकर्ताओं ने। चीन के रिसर्चर्स का कहना है कि गंभीर मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा थैरेपी पूरी तरह से सही नहीं है। इसके लिए कुछ और तरीका खोजना होगा। 

चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज और पेकिंग यूनियन मेडिकल कॉलेज के रिसर्चर्स ने कहा कि प्लाज्मा थैरेपी की वजह से कोरोना मरीजों के मृत्युदर या ठीक होने के दर में ज्यादा अंतर नहीं आया है। रिसर्चर्स ने कहा कि जो मरीज सामान्य तरीके से इलाज करा रहे हैं उनकी रिकवरी का दर या मृत्यु दर प्लाज्मा थैरेपी से इलाज करा रहे मरीजों से ज्यादा अलग नहीं है। लेकिन एक अच्छी खबर भी है। 

28 दिनों तक अध्ययन करने के बाद चीन के शोधकर्ताओं ने पाया कि प्लाज्मा थैरेपी की वजह से अत्यधिक गंभीर रूप से बीमार कोरोना मरीज को आईसीयू में नहीं डालना पड़ा। साथ ही वह सामान्य ट्रीटमेंट वाले मरीजों से औसत 5 दिन पहले अस्पताल से ठीक होकर गया। चीन के शोधकर्ताओं ने बताया कि प्लाज्मा थैरेपी से ठीक होने वालों का दर 91 फीसदी है। जबकि, सामान्य स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट कराने वाले मरीजों के ठीक होने का दर 68 फीसदी ही है। यह स्टडी जामा मैगजीन में प्रकाशित हुई है। 

चीन के शोधकर्ताओं ने 14 फरवरी से 1 अप्रैल तक 101 मरीजों पर यह अध्ययन किया। ये सभी मरीज वुहान के सात अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में भर्ती थे। इनमें से आधे मरीज सीवियर रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस या हाइपोक्सीमिया यानी शरीर में कम ऑक्सीजन स्तर से पीड़ित थे। वहीं, बाकी के आधे मरीज ऑर्गन फेल्योर से जूझ रहे थे और उन्हें वेंटीलेटर्स की जरूरत थी। 28 दिन चले अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों समूहों के मरीजों के ठीक होने की दर में 10 फीसदी से भी ज्यादा का अंतर नहीं था। 

कोवैलेसेंट प्लाज्मा थैरेपी की वजह से उन मरीजों को ज्यादा फायदा हुआ, जो आईसीयू में जाने लायक नहीं थे। गंभीर रूप से बीमार मरीजों में से 20.7 फीसदी ही प्लाज्मा थैरेपी से ठीक हुए। जबकि, सामान्य इलाज की प्रक्रिया से 24।1 फीसदी मरीज ठीक हुए हैं। असल में कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट चिकित्सा विज्ञान की बेहद बेसिक टेक्नीक है। करीब 100 सालों से इसका उपयोग पूरी दुनिया कर रही है। इससे वाकई में लाभ होता है और कोरोना वायरस के मरीजों में लाभ दिखाई दे रहा है। 

यह तकनीक भरोसेमंद भी है। वैज्ञानिक पुराने मरीजों के खून से नए मरीजों का इलाज करते हैं। होता यूं है कि पुराने बीमार मरीज का खून लेकर उसमें से प्लाज्मा निकाल लेते हैं। फिर इसी प्लाज्मा को दूसरे मरीज के शरीर में डाल दिया जाता है। अब शरीर के अंदर होने वाली प्रक्रिया को समझिए। पुराने मरीज के खून के अंदर वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन जाते हैं। ये एंटीबॉडी वायरस से लड़कर उन्हें मार देते हैं। या फिर दबा देते हैं। ये एंटीबॉडी ज्यादातर खून के प्लाज्मा में रहते हैं। 

उनका खून लिया, फिर उसमें से प्लाज्मा निकाल कर स्टोर कर लिया। जब नए मरीज आए तो उन्हें इसी प्लाज्मा का डोज दिया गया। ब्लड प्लाज्मा पुराने रोगी से तत्काल ही लिया जा सकता है। इंसान के खून में आमतौर पर 55 फीसदी प्लाज्मा, 45 फीसदी लाल रक्त कोशिकाएं और 1 फीसदी सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं। प्लाज्मा थैरेपी से फायदा ये है कि बिना किसी वैक्सीन के ही मरीज किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है। 

इससे वैक्सीन बनाने का समय भी मिलता है। तत्काल वैक्सीन का खर्च भी नहीं आता। प्लाज्मा शरीर के अंदर एंटीबॉडीज बनाता है। साथ ही उसे अपने अंदर स्टोर भी करता है। जब यह दूसरे व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है तब वहां जाकर एंटीबॉडी बना देता है। ऐसे करके कई शख्स किसी भी वायरस के हमले से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट सार्स और मर्स जैसी महामारियों में भी कारगर साबित हुआ था। इस तकनीक से कई बीमारियों को हराया गया है। कई बीमारियों को जड़ से खत्म कर दिया गया है।