देश / पीएम मोदी ने शेयर की पद्मश्री विजेता बीरेन कुमार बसाक से मिले तोहफे की तस्वीर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद्मश्री पुरस्कार विजेता बीरेन कुमार बसाक से मिले तोहफे की एक तस्वीर शनिवार को ट्विटर पर शेयर की। पीएम ने लिखा, "श्री बीरेन कुमार बसाक पश्चिम बंगाल के नादिया से हैं। वह एक प्रतिष्ठित बुनकर हैं...पद्म पुरस्कार विजेताओं के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे कुछ ऐसा भेंट किया जिसे मैं बहुत पसंद करता हूं।"

Vikrant Shekhawat : Nov 13, 2021, 03:46 PM
दिल्ली: पद्म पुरस्कार पाने वालों में से एक पश्चिम बंगाल के नादिया के रहने वाले बीरेन कुमार बसाक (Biren Kumar Basak ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pm Narendra Modi) को ऐसा तोहफा दिया कि पीएम मोदी उनकी भेंट के मुरीद हो गए. प्रधानमंत्री को बीरेन कुमार बसाक की ओर से दिया तोहफा बेहद पसंद आया है. तोहफे की तारीफ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जाहिर की.

पीएम मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि, बीरेन कुमार बसाक पश्चिम बंगाल के नादिया के रहने वाले हैं.वह एक प्रतिष्ठित बुनकर हैं, जो अपनी साड़ियों में भारतीय इतिहास और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं. पद्म पुरस्कार विजेताओं के साथ बातचीत के दौरान, उन्होंने मुझे कुछ ऐसा भेंट किया जो मुझे बहुत प्रिय है.

कौन हैं बीरेन कुमार बिसाक, जिनके तोहफे ने पीएम मोदी पर छोड़ी छाप

बिरेन कुमार बिसाक एक समय में गलियों में फेरी लगा कर साड़ी बेचा करते थे और उनकी रोजाना की कमाई महज 2.50 रुपये थी. बिरेन का जन्म 16 मई 1951 को हुआ. वह कोलकाता के नादिया जिले के रहने वाले हैं और पेशे से साड़ी बुनने का का काम करते हैं. शुरुआती दिनों में वह कंधे पर साड़ियों का गट्ठर लादकर कोलकाता की गली में घूम-घूम कर साड़ी बेचा करते थे. आज वह करोड़ों रुपये के मालिक हैं, लेकिन एक समय था जब वह एक बुनकर के यहां 2.50 रुपये दिहाड़ी पर साड़ी बुनने का काम किया करते थे.

बिरेन की मेहनत ने रंग दिखाया और कड़े संघर्ष के बाद उन्होंने अपनी साड़ी कंपनी ‘बसाक एंड कंपनी’ स्थापित की. आज इसका टर्नओवर 50 करोड़ रुपये का है. उन्होंने साड़ी पर रामायण के सात खंड लिखे थे, जिसके लिए ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था. उन्होंने 1996 में इस साड़ी को तैयार किया था. जो 6 गज की है. धागों में रामायण उकेरने की तैयारी में उन्हें एक साल लग गया था जबकि उसे बुनने में करीब 2 साल लगे थे.

बसाक की छह गज की साड़ी पर यह जादुई कलाकृति उन्हें इससे पहले भी राष्ट्रीय पुरस्कार, नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट अवार्ड, संत कबीर अवार्ड दिला चुकी है. उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड, इंडियन बुक ऑफ रिकार्ड्स और वर्ल्ड यूनीक रिकार्ड्स में भी दर्ज है.

मुंबई की एक कंपनी ने 2004 में बसाक को रामायण के सात खंड लिखी हुई साड़ी के बदले में आठ लाख रुपये देने की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था. साड़ी पर रामायण उकेरने के बाद अब बसाक की योजना रबींद्रनाथ ठाकुर के जीवन को उकेरने की है और इसके लिए वह तैयारी कर रहे हैं.