Vikrant Shekhawat : May 24, 2020, 10:31 PM
जयपुर | राजस्थान के चूरू जिले में एक पुलिस अधिकारी ने चौतरफा प्रेशर से उपजे तनाव के चलते आत्महत्या कर ली। गमजदा परिवारों का दुख हम सभी से बड़ा है। परिवारों शब्द इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूं कि दिवंगत विष्णुदत्त अपने पीछे दो परिवार छोड़ गए हैं। पहला उनका पैतृक परिवार और दूसरा पुलिस विभाग। एक जिम्मेदार अफसर की आत्महत्या के सभी पहलुओं को देखें तो लगता है कि पुलिस परिवार ज्यादा परेशानी में है, ज्यादा तनाव में है। इस विभाग को विष्णुदत्त ने ऐसी सकारात्मक पहचान दी जिससे कि प्रत्येक पुलिसकर्मी का सीना चौड़ा हो। न्याय की मांग पैतृक परिवार का अधिकार है और इस मांग पर पुलिस विभाग की जिम्मेदारी कि वह निष्पक्ष जांच करे। यदि नहीं कर सकने में सक्षम है तो सीबीआई जांच के लिए प्रयास करे। यदि विष्णुदत्त की मौत इसी तरह फाइलों में दफ्न हो जाएगी तो यह सिलसिला क्या रुक पाएगा इस सवाल पर गौर फरमाइएगा।
एक ईमानदार पुलिस अधिकारी का मौत को गले लगाना और सुसाइड नोट में किसी को जिम्मेदार नहीं बताना बहुत कुछ कह जाता है कि वह व्यक्ति न केवल मानसिक दबाव में था, बल्कि अपने ही अफसरों के असहयोग की वजह से टूट भी चुका था। राजगढ़ चुरू के लोकप्रिय थाना प्रभारी विष्णुदत्त विश्नोई की आत्महत्या की खबर आने के बाद लोग सड़कों पर उतर आए। उनके लिए यह केवल एक खबर नहीं थी, तभी लोग लॉकडाउन के कायदे और कोरोना का भय भुलाकर सड़कों पर उतरे और विष्णुदत्त के लिए न्याय मांगने निकल गए।
मौत से एक दिन पहले आरटीआई एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता गोरधनसिंह के साथ विष्णुदत्त का संवाद इशारा करता है कि सीआई मौजूदा भ्रष्टतंत्र में अपने आपको फिट नहीं कर पा रहे थे। गोरधनसिंह को भी नहीं लगा था कि बात आत्महत्या तक पहुंच जाएगी। विष्णुदत्त ने लिखा कि वह वीआरएस लेने का मानस बना रहे हैं। मतलब तब तक आत्महत्या जैसा विचार विष्णुदत्त के दिमाग में नहीं आया था। एक बात थाने के भवन निर्माण में घपले जैसा व्हाट्सएप भी वायरल हुआ, लेकिन उसकी पुष्टि कोई नहीं करता।राजगढ़ में 2 दिन पहले 20 मई को राजेन्द्र गढ़वाल की बोलेरो में सवार कुछ नामी बदमाशों ने अंधाधुध फायरिंग कर हत्या कर दी थी। इस दौरान राजेन्द्र के बेटे और उसके एक दोस्त को भी गोली लगी थी। गढ़वाल पर हमला करने वाली गैंग और राजेन्द्र दोनों ही चूरू में शराब का अवैध काम करते हैं। इसको लेकर दोनों में काफी खींचतान रहती थी। इस मामले में कार्रवाई के दबाव के लिए किसका मानसिक तनाव विष्णुदत्त की जान ले बैठा, यह भी जांच का विषय है।
इस हत्याकांड के पीछे भरतपुर जेल में बंद लॉरेंस विश्नोई का हाथ हो सकता है। उसके बाद पुलिस ने रात को भरतपुर जेल में रेड की। इस दौरान लॉरेंस के पास से पुलिस को दो स्मार्ट मोबाइल और दो सिम मिली है। जेल में बैठा एक अपराधी सरकारी व्यवस्थाओं से अधिक प्रभावी है तो फिर अंतर नहीं रह जाता है पिछली सरकार और इस सरकार में भी। परन्तु विष्णुदत्त ने किसी गैंगस्टर से डरकर भी मौत को गले नहीं लगाया ऐसा उनके पत्रों की भाषा से लगता है। एसपी को दिए सुसाइड नोट में विष्णुदत्त ने यह साफ किया है कि वे बुजदिल नहीं थे।
राजगढ़ थाने के कार्मिकों ने विधायक कृष्णा पूनिया और उनके कार्यकर्ताओं द्वारा दबाव की शिकायत करते हुए बीकानेर रेज के आईजी को पत्र लिखकर पूरे थाने को भयभीत बता सामूहिक स्थानांतरण मांगा है। यह पीड़ा यदि जायज है तो पुलिस की चिंता और बड़ी है। और यदि यह किसी राजनीति का हिस्सा है या किसी हिस्से की राजनीति है। तो भी मसला गंभीर है, जिसके लिए सरकारी तंत्र में बैठे लोगों को प्रभावी उपाय अमल में लाने होंगे।
इस मामले में राजगढ़ विधायक कृष्णा पूनिया का नाम आया है। एक बार हारने के बाद पहली बार विधायक बनीं कृष्णा पूनिया अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी हैं और उन्होंने इस मामले में संलिप्तता से साफ इनकार किया है। ऐसे में उन्हें भी बड़ा दिल रखते हुए इस प्रकरण की सीबीआई जैसी निष्पक्ष संस्था से जांच में आगे आना चाहिए, ताकि उनके क्षेत्र की जनता की मांग पर उनका प्रतिनिधित्व साबित हो सके।
अपने बच्चों, भाई, मां और पिताजी को लिखा विष्णुदत्त का सुसाइड नोट भावुक करने वाला है। आत्महत्या को कायरों का काम लिखते विष्णुदत्त के हाथ किंचित कांप भी गए कि इस शब्द को उन्होंने सुधारा है ताकि ठीक वही पढ़ा जाए तो उनका मनोगत भाव है।
विष्णुदत्त ने दो सुसाइड नोट लिखे हैं, एक अपनी पुलिस अधीक्षक तेजस्विनी गौतम के नाम। तेजस्विनी गौतम का काम चुरू में प्रभावपूर्ण रहा है। बताया जा रहा है कि गौतम कोरोना के मुद्दे पर देश के प्रसिद्ध लोगों से आनलाइन सार्वजनिक संवाद कर उससे लोगों का मोरल बूस्ट करने में खासी सफल रही हैं। काश! वे अपने एक ईमानदार मातहत विष्णुदत्त विश्नोई से इसी तरह संवाद करतीं तो शायद उनका मनोबल इतना नहीं टूट जाता कि वे मौत को गले लगा लें। हालांकि सीआई ने सुसाइड नोट श्रीमती गौतम और अपने परिजनों के लिए लिखे हैं, इससे यह साफ होता है कि विष्णुदत्त अपने दूसरे परिवार यानि कि पुलिस विभाग से उतना ही प्रेम और विश्वास करते थे। यह भी साबित होता है कि उनको अपने एसपी और पुलिस के अधिकांश साथियों पर पूरा भरोसा था। परन्तु गोरधनसिंह के साथ हुए व्हाट्सएप संवाद में उन्होंने लिखा था कि अफसर कमजोर है।
एसपी गौतम के लिए लिखे सुसाइड नोट में कहा है कि उनके चारों तरफ खासा दबाव था और वे इसे झेल नहीं पाए। मेरा गुनहगार मैं स्वयं हूं।आत्महत्या के दुष्प्रेरण जैसा मामला नहीं बने दूसरे पक्ष के लोगों के लिए पुलिस के लिए यह लाइन पर्याप्त लग रही होगी। परन्तु आत्महत्या का जिम्मेदार क्या कोई खुद हो सकता है? वैसे भारत में पुलिस ऐसे ही सुसाइड नोट के आधार पर अंतिम प्रतिवेदन यानि की एफआर लगाने में माहिर है।
परन्तु यदि हम आत्महत्या के सिद्धान्तों पर अब तक की सर्वाधिक प्रसिद्ध थ्योरी दुर्खीम थ्योरी को देखें तो वह कहती है आत्महत्या किसी व्यक्तिगत कारण का परिणाम नहीं होती। यह एक सामाजिक तत्य है, जो सामाजिक क्रियाओं से उपजता है। 1897 में समाजशास्त्री दुर्खीम ने 'आत्महत्या' के संबध में यह स्पष्ट किया था कि समाज ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है कि व्यक्ति अपने जीवन को खत्म करने पर मजबूर हो जाता है। ऐसे में इस समाज की ही जिम्मेदारी बनती है कि वह इस मामले की तहों को उघाड़े ताकि राजनीति और अपराध के गंदे खेल, जिसमें खाकी के लोग भी मौन संलिप्त है का राजफाश हो सके।
विष्णुदत्त ने तो पुलिस को अपना परिवार माना अब जिम्मेदारी जांच में जुटे पुलिस अफसरों की है कि क्या वे अपने एक ऐसे साथी को न्याय दिलाएंगे जिसने उनके विभाग का चेहरा स्वर्णिम आभा से दीप्त करने में जीवन खपा दिया। दो मार्मिक सुसाइड नोट लिखकर दुनिया को अलविदा कह गए विष्णुदत्त विश्नोई। लेकिन क्या यह दुनिया विष्णुदत्त को यूं ही अलविदा कहकर उनकी मौत के राज को फाइलों के ढेर में दफ्न होने की कोशिशों पर कुछ नहीं बोलेगी।
— प्रदीप बीदावत
एक ईमानदार पुलिस अधिकारी का मौत को गले लगाना और सुसाइड नोट में किसी को जिम्मेदार नहीं बताना बहुत कुछ कह जाता है कि वह व्यक्ति न केवल मानसिक दबाव में था, बल्कि अपने ही अफसरों के असहयोग की वजह से टूट भी चुका था। राजगढ़ चुरू के लोकप्रिय थाना प्रभारी विष्णुदत्त विश्नोई की आत्महत्या की खबर आने के बाद लोग सड़कों पर उतर आए। उनके लिए यह केवल एक खबर नहीं थी, तभी लोग लॉकडाउन के कायदे और कोरोना का भय भुलाकर सड़कों पर उतरे और विष्णुदत्त के लिए न्याय मांगने निकल गए।
मौत से एक दिन पहले आरटीआई एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता गोरधनसिंह के साथ विष्णुदत्त का संवाद इशारा करता है कि सीआई मौजूदा भ्रष्टतंत्र में अपने आपको फिट नहीं कर पा रहे थे। गोरधनसिंह को भी नहीं लगा था कि बात आत्महत्या तक पहुंच जाएगी। विष्णुदत्त ने लिखा कि वह वीआरएस लेने का मानस बना रहे हैं। मतलब तब तक आत्महत्या जैसा विचार विष्णुदत्त के दिमाग में नहीं आया था। एक बात थाने के भवन निर्माण में घपले जैसा व्हाट्सएप भी वायरल हुआ, लेकिन उसकी पुष्टि कोई नहीं करता।राजगढ़ में 2 दिन पहले 20 मई को राजेन्द्र गढ़वाल की बोलेरो में सवार कुछ नामी बदमाशों ने अंधाधुध फायरिंग कर हत्या कर दी थी। इस दौरान राजेन्द्र के बेटे और उसके एक दोस्त को भी गोली लगी थी। गढ़वाल पर हमला करने वाली गैंग और राजेन्द्र दोनों ही चूरू में शराब का अवैध काम करते हैं। इसको लेकर दोनों में काफी खींचतान रहती थी। इस मामले में कार्रवाई के दबाव के लिए किसका मानसिक तनाव विष्णुदत्त की जान ले बैठा, यह भी जांच का विषय है।
इस हत्याकांड के पीछे भरतपुर जेल में बंद लॉरेंस विश्नोई का हाथ हो सकता है। उसके बाद पुलिस ने रात को भरतपुर जेल में रेड की। इस दौरान लॉरेंस के पास से पुलिस को दो स्मार्ट मोबाइल और दो सिम मिली है। जेल में बैठा एक अपराधी सरकारी व्यवस्थाओं से अधिक प्रभावी है तो फिर अंतर नहीं रह जाता है पिछली सरकार और इस सरकार में भी। परन्तु विष्णुदत्त ने किसी गैंगस्टर से डरकर भी मौत को गले नहीं लगाया ऐसा उनके पत्रों की भाषा से लगता है। एसपी को दिए सुसाइड नोट में विष्णुदत्त ने यह साफ किया है कि वे बुजदिल नहीं थे।
राजगढ़ थाने के कार्मिकों ने विधायक कृष्णा पूनिया और उनके कार्यकर्ताओं द्वारा दबाव की शिकायत करते हुए बीकानेर रेज के आईजी को पत्र लिखकर पूरे थाने को भयभीत बता सामूहिक स्थानांतरण मांगा है। यह पीड़ा यदि जायज है तो पुलिस की चिंता और बड़ी है। और यदि यह किसी राजनीति का हिस्सा है या किसी हिस्से की राजनीति है। तो भी मसला गंभीर है, जिसके लिए सरकारी तंत्र में बैठे लोगों को प्रभावी उपाय अमल में लाने होंगे।
इस मामले में राजगढ़ विधायक कृष्णा पूनिया का नाम आया है। एक बार हारने के बाद पहली बार विधायक बनीं कृष्णा पूनिया अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी हैं और उन्होंने इस मामले में संलिप्तता से साफ इनकार किया है। ऐसे में उन्हें भी बड़ा दिल रखते हुए इस प्रकरण की सीबीआई जैसी निष्पक्ष संस्था से जांच में आगे आना चाहिए, ताकि उनके क्षेत्र की जनता की मांग पर उनका प्रतिनिधित्व साबित हो सके।
अपने बच्चों, भाई, मां और पिताजी को लिखा विष्णुदत्त का सुसाइड नोट भावुक करने वाला है। आत्महत्या को कायरों का काम लिखते विष्णुदत्त के हाथ किंचित कांप भी गए कि इस शब्द को उन्होंने सुधारा है ताकि ठीक वही पढ़ा जाए तो उनका मनोगत भाव है।
विष्णुदत्त ने दो सुसाइड नोट लिखे हैं, एक अपनी पुलिस अधीक्षक तेजस्विनी गौतम के नाम। तेजस्विनी गौतम का काम चुरू में प्रभावपूर्ण रहा है। बताया जा रहा है कि गौतम कोरोना के मुद्दे पर देश के प्रसिद्ध लोगों से आनलाइन सार्वजनिक संवाद कर उससे लोगों का मोरल बूस्ट करने में खासी सफल रही हैं। काश! वे अपने एक ईमानदार मातहत विष्णुदत्त विश्नोई से इसी तरह संवाद करतीं तो शायद उनका मनोबल इतना नहीं टूट जाता कि वे मौत को गले लगा लें। हालांकि सीआई ने सुसाइड नोट श्रीमती गौतम और अपने परिजनों के लिए लिखे हैं, इससे यह साफ होता है कि विष्णुदत्त अपने दूसरे परिवार यानि कि पुलिस विभाग से उतना ही प्रेम और विश्वास करते थे। यह भी साबित होता है कि उनको अपने एसपी और पुलिस के अधिकांश साथियों पर पूरा भरोसा था। परन्तु गोरधनसिंह के साथ हुए व्हाट्सएप संवाद में उन्होंने लिखा था कि अफसर कमजोर है।
एसपी गौतम के लिए लिखे सुसाइड नोट में कहा है कि उनके चारों तरफ खासा दबाव था और वे इसे झेल नहीं पाए। मेरा गुनहगार मैं स्वयं हूं।आत्महत्या के दुष्प्रेरण जैसा मामला नहीं बने दूसरे पक्ष के लोगों के लिए पुलिस के लिए यह लाइन पर्याप्त लग रही होगी। परन्तु आत्महत्या का जिम्मेदार क्या कोई खुद हो सकता है? वैसे भारत में पुलिस ऐसे ही सुसाइड नोट के आधार पर अंतिम प्रतिवेदन यानि की एफआर लगाने में माहिर है।
परन्तु यदि हम आत्महत्या के सिद्धान्तों पर अब तक की सर्वाधिक प्रसिद्ध थ्योरी दुर्खीम थ्योरी को देखें तो वह कहती है आत्महत्या किसी व्यक्तिगत कारण का परिणाम नहीं होती। यह एक सामाजिक तत्य है, जो सामाजिक क्रियाओं से उपजता है। 1897 में समाजशास्त्री दुर्खीम ने 'आत्महत्या' के संबध में यह स्पष्ट किया था कि समाज ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है कि व्यक्ति अपने जीवन को खत्म करने पर मजबूर हो जाता है। ऐसे में इस समाज की ही जिम्मेदारी बनती है कि वह इस मामले की तहों को उघाड़े ताकि राजनीति और अपराध के गंदे खेल, जिसमें खाकी के लोग भी मौन संलिप्त है का राजफाश हो सके।
विष्णुदत्त ने तो पुलिस को अपना परिवार माना अब जिम्मेदारी जांच में जुटे पुलिस अफसरों की है कि क्या वे अपने एक ऐसे साथी को न्याय दिलाएंगे जिसने उनके विभाग का चेहरा स्वर्णिम आभा से दीप्त करने में जीवन खपा दिया। दो मार्मिक सुसाइड नोट लिखकर दुनिया को अलविदा कह गए विष्णुदत्त विश्नोई। लेकिन क्या यह दुनिया विष्णुदत्त को यूं ही अलविदा कहकर उनकी मौत के राज को फाइलों के ढेर में दफ्न होने की कोशिशों पर कुछ नहीं बोलेगी।
— प्रदीप बीदावत