World / रूस की कब्र से 206 दिन बाद आया शव, हैरान देगी हितेंद्र की कहानी

चार पैसे कमाने की उम्मीद में हितेंद्र गरासिया राजस्थान के उदयपुर से अपना घर-परिवार छोड़कर गया था। लेकिन वापस लौटा तो उसका शव। वह भी परिवार के 206 दिनों तक संघर्ष करने के बाद। इस दौरान उदयपुर की खेरवाड़ा तहसील का गोड़वा गांव पूरी तरह मायूस नजर आया। शव के गांव पहुंचने के बाद औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान वहां मौजूद हर किसी की आंखें नम हो उठी थीं।

Vikrant Shekhawat : Feb 08, 2022, 05:13 PM
Russia | चार पैसे कमाने की उम्मीद में हितेंद्र गरासिया राजस्थान के उदयपुर से अपना घर-परिवार छोड़कर गया था। लेकिन वापस लौटा तो उसका शव। वह भी परिवार के 206 दिनों तक संघर्ष करने के बाद। इस दौरान उदयपुर की खेरवाड़ा तहसील का गोड़वा गांव पूरी तरह मायूस नजर आया। शव के गांव पहुंचने के बाद औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान वहां मौजूद हर किसी की आंखें नम हो उठी थीं।

रूस से दिल्ली और फिर गांव

दो दिन पहले रूस से दिल्ली और कल जयपुर में पोस्टमार्टम के बाद हितेंद्र का शव शव मंगलवार को पैतृक गांव गोड़वा लाया गया। करीब 12 बजे ताबूत में बंद शव को लेकर परिजन गांव पहुंचे। इस मौके पर बड़ी तादाद में ग्रामीण भी जमा हो गए। ऋषभदेव डीएसपी विक्रम सिंह समेत आला पुलिस अधिकारी और 5 थानों की फोर्स भी मौके पर मौजूद रही। दोपहर को अंतिम संस्कार किया गया।

रूस भेजने वाले एजेंट के खिलाफ रिपोर्ट

गांव में एंबुलेंस को देखकर लोग अपने आंसू नहीं रोक पाए। बेटे-बेटी, भाई और पत्नी समेत पूरा परिवार शव के पास बैठकर बिलखते रहे। परिजन और सैंकड़ो ग्रामीण घर तक पहुंचे। सभी सामाजिक प्रक्रियाओं के बाद अंतिम संस्कार किया गया। इससे पहले डीएसपी को परिजनों ने हितेन्द्र को गांव से रूस भेजने वाले एजेंट और उसके एक साथी के खिलाफ लिखित रिपोर्ट देकर जांच की मांग की।

यह है पूरी कहानी

दरअसल, 13 अप्रैल 2021 को हितेंद्र गरासिया एक एजेंट के जरिये कमाई के खातिर रूस गया था। वहां 17 जुलाई को उसकी मौत हो गई थी। इसके एक महीने बाद रूसी सरकार ने परिवार को सूचना दी। तब से परिवार शव को भारत लाकर गांव में अंतिम संस्कार के लिए संघर्ष कर रहा था। इस लड़ाई में परिवार के लोग मानवाधिकारी आयोग से लेकर विदेश मंत्रालय और हाईकोर्ट तक गए। जंतर मंतर से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर तक धरना दिया। पीएम, राष्ट्रपति और विदेश मंत्र को पत्र लिखे। आत्मदाह की चेतावनी दी। प्रियंका गांधी से भी परिवार मिला। तब कहीं जाकर परिवार ने इस जंग को जीता है।