Vikrant Shekhawat : Aug 09, 2020, 07:17 PM
- आधार से जुड़े बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिये पीएम–किसान के तहत लगभग 8.5 करोड़ किसानों को प्रधानमंत्री द्वारा 17 हजार करोड़ रूपये हस्तांतरित
- केन्द्रीय क्षेत्र योजना के लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर कृषि अवसंरचना निधि के तहत 2280 कृषक सोसायटियों को 1000 करोड़ रुपए की मंजूरी
- किसानों की आय दोगुनी करने के विजन के अनुरूप, किसान अब उद्यमी बनने के लिए तैयार : प्रधानमंत्री
किसान सम्मान निधि वितरण कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का संबोधन
आज हलषष्टी है, भगवान बलराम की जयंति है।सभी देशवासियों को, विशेषतौर पर किसान साथियों को हलछठ की, दाऊ जन्मोत्सव की, बहुत-बहुत शुभकामनाएं !!
इस बेहद पावन अवसर पर देश में कृषि से जुड़ी सुविधाएं तैयार करने के लिए एक लाख करोड़ रुपए का विशेष फंड लॉन्च किया गया है। इससे गांवों-गांवों में बेहतर भंडारण, आधुनिक कोल्ड स्टोरेज की चेन तैयार करने में मदद मिलेगी और गांव में रोज़गार के अनेक अवसर तैयार होंगे।इसके साथ-साथ साढ़े 8 करोड़ किसान परिवारों के खाते में, पीएम किसान सम्मान निधि के रूप में 17 हज़ार करोड़ रुपए ट्रांस्फर करते हुए भी मुझे बहुत संतोष हो रहा है। संतोष इस बात का है कि इस योजना का जो लक्ष्य था, वो हासिल हो रहा है।
हर किसान परिवारतक सीधी मदद पहुंचे और ज़रूरत के समय पहुंचे, इस उदेश्य में ये योजना सफल रही है.बीते डेढ़ साल में इस योजना के माध्यम से 75 हज़ार करोड़ रुपए सीधे किसानों के बैंक खाते में जमा हो चुके हैं।इसमें से 22 हज़ार करोड़ रुपए तो कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान किसानों तक पहुंचाए गए हैं।
साथियों,
दशकों से ये मांग और मंथन चल रहा था, कि गांव में उद्योग क्यों नहीं लगते?
जैसे उद्योगों को अपने उत्पाद का दाम तय करने में और उसको देश में कहीं भी बेचने की आज़ादी रहती है, वैसी सुविधा किसानों को क्यों नहीं मिलती?
अब ऐसा तो नहीं होता कि अगर साबुन का उद्योग किसी शहर में लगा है, तो उसकी बिक्री सिर्फ उसी शहर में होगी। लेकिन खेती में अब तक ऐसा ही होता था। जहां अनाज पैदा होता है, तो किसान को स्थानीय मंडियों में ही उसको बेचना पड़ता था।इसी तरह ये भी मांग उठती थी कि अगर बाकी उद्योगों में कोई बिचौलिए नहीं हैं, तो फसलों के व्यापार में क्यों होने चाहिए? अगर उद्योगों के विकास के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होता है, तो वैसा ही आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर कृषि के लिए भी मिलना चाहिए।
साथियों,
अब आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत किसान और खेती से जुड़े इन सारे सवालों के समाधान ढूंढे जा रहे हैं।एक देश, एक मंडी के जिस मिशन को लेकर बीते 7 साल से काम चल रहा था, वो अब पूरा हो रहा है। पहले e-NAM के ज़रिए, एक टेक्नॉलॉजी आधारित एक बड़ी व्यवस्था बनाई गई।अब कानून बनाकर किसान को मंडी के दायरे से और मंडी टैक्स के दायरे से मुक्त कर दिया गया।अब किसान के पास अनेक विकल्प हैं। अगर वो अपने खेत में ही अपनी उपज का सौदा करना चाहे, तो वो कर सकता है।
या फिर सीधे वेयरहाउस से, e-NAM से जुड़े व्यापारियों और संस्थानों को, जो भी उसको ज्यादा दाम देता है, उसके साथ फसल का सौदा किसान कर सकता है।
इसी तरह एक और नया कानून जो बना है, उससे किसान अब उद्योगों से सीधी साझेदारी भी कर सकता है।
अब जैसे आलू का किसान चिप्स बनाने वालों से, फल उत्पादक यानी बागबान जूस, मुरब्बा, चटनी जैसे उत्पाद बनाने वाले उद्योगों से साझेदारी कर सकते हैं।
इससे किसान को फसल की बुआई के समय तय दाम मिलेंगे, जिससे उसको कीमतों में होने वाली गिरावट से राहत मिल जाएगी।
साथियों,
हमारी खेती में पैदावार समस्या नहीं है, बल्कि पैदावार के बाद होने वाली उपज की बर्बादी बहुत बड़ी समस्या रही है।इससे किसान को भी नुकसान होता है और देश को भी बहुत नुकसान होता है।इसी से निपटने के लिए एक तरफ कानूनी अड़चनों को दूर किया जा रहा है और दूसरी तरफ किसानों को सीधी मदद दी जा रही है। अब जैसे आवश्यक वस्तुओं से जुड़ा एक कानून हमारे यहां बना था, जब देश में अन्न की भारी कमी थी। लेकिन वही कानून आज भी लागू था, जब हम दुनिया के दूसरे बड़े अन्न उत्पादक बन चुके हैं।
गांव में अगर अच्छे गोदाम नहीं बन पाए, कृषि आधारित उद्योगों को अगर प्रोत्साहन नहीं मिल पाया, तो उसका एक बड़ा कारण ये कानून भी था।इस कानून का उपयोग से ज्यादा दुरुपयोग हुआ। इससे देश के व्यापारियों को, निवेशकों को, डराने का काम ज्यादा हुआ।अब इस डर के तंत्र से भी कृषि से जुड़े व्यापार को मुक्त कर दिया गया है।इसके बाद अब व्यापारी-कारोबारी गांवों में स्टोरेज बनाने में और दूसरी व्यवस्थाएं तैयार करने के लिए आगे आ सकते हैं।
साथियों,
आज जो Agriculture Infrastructure Fund Launch किया गया है, इससे किसान अपने स्तर भी गांवों में भंडारण की आधुनिक सुविधाएं बना पाएंगे।इस योजना से गांव में किसानों के समूहों को, किसान समितियों को, FPOs को वेयरहाउस बनाने के लिए, कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए, फूड प्रोसेसिंग से जुड़े उद्योग लगाने के लिए 1 लाख करोड़ रुपए की मदद मिलेगी।ये जो धन किसानों को उद्यमी बनाने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा, इसपर 3 प्रतिशत ब्याज की छूट भी मिलेगी।थोड़ी देर पहले ऐसे ही कुछ किसान संघों से मेरी चर्चा भी हुई। जो सालों से इस किसानों की मदद कर रहे हैं।इस नए फंड से देशभर में ऐसे संगठनों को बहुत मदद मिलेगी।
साथियों,
इस आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर से कृषि आधारित उद्योग लगाने में बहुत मदद मिलेगी।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत हर जिले में मशहूर उत्पादों को देश और दुनिया के मार्केट तक पहुंचाने के लिए एक बड़ी योजना बनाई गई है। इसके तहत देश के अलग-अलग जिलों में, गांव के पास ही कृषि उद्योगों के क्लस्टर बनाए जा रहे हैं।
साथियों,
अब हम उस स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं, जहां गांव के कृषि उद्योगों से फूड आधारित उत्पाद शहर जाएंगे और शहरों से दूसरा औद्योगिक सामान बनकर गांव पहुंचेगा। यही तो आत्मनिर्भर भारत अभियान का संकल्प है, जिसके लिए हमें काम करना है।अब सवाल ये उठता है कि जो कृषि आधारित उद्योग लगने वाले हैं, इनको कौन चलाएगा? इसमें भी ज्यादा हिस्सेदारी हमारे छोटे किसानों के बड़े समूह, जिनको हम FPO कह रहे हैं, या फिर किसान उत्पादक संघ कह रहे हैं, इनकी होने वाली है।
इसलिए बीते 7 साल से FPO-किसान उत्पादक समूहका एक बड़ा नेटवर्क बनाने का अभियान चलाया है। आने वाले सालों में ऐसे 10 हज़ार FPO-किसान उत्पादक समूहपूरे देश में बनें, ये काम चल रहा है।
साथियों,
एक तरफ FPO के नेटवर्क पर काम चल रहा है तो दूसरी तरफ खेती से जुड़े Start ups को प्रोत्साहित किया जा रहा है।अभी तक लगभग साढ़े 3 सौ कृषि Startups को मदद दी जा रही है। ये Start up, Food Processing से जुड़े हैं, Artificial Intelligence, Internet of things, खेती से जुड़े स्मार्ट उपकरण के निर्माण और रिन्यूएबल एनर्जी से जुड़े हैं।
साथियों,
किसानों से जुड़ी ये जितनी भी योजनाएं हैं, जितने भी रिफॉर्म हो रहे हैं, इनके केंद्र में हमारा छोटा किसान है। यही छोटा किसान है, जिस पर सबसे ज्यादा परेशानी आती रही है।और यही छोटा किसान है जिस तक सरकारी लाभ भी पूरी तरह नहीं पहुंच पाते थे। बीते 6-7 सालों से इसी छोटे किसान की स्थिति को बदलने का एक प्रयास चल रहा है। छोटे किसान को देश की कृषि के सशक्तिकरण से भी जोड़ा जा रहा है और वो खुद भी सशक्त हो, ये भी सुनिश्चित किया जा रहा है।
साथियों,
2 दिन पहले ही, देश के छोटे किसानों से जुड़ी एक बहुत बड़ी योजना की शुरुआत की गई है, जिसका आने वाले समय में पूरे देश को बहुत बड़ा लाभ होने वाला है। देश की पहली किसान रेल महाराष्ट्र और बिहार के बीच में शुरु हो चुकी है।
अब महाराष्ट्र से संतरा, अंगूर, प्याज़ जैसे अनेक फल-सब्ज़ियां लेकर ये ट्रेन निकलेगी और बिहार से मखाना, लिची, पान, ताज़ा सब्ज़ियां, मछलियां, ऐसे अनेक सामान को लेकर लौटेगी।यानि बिहार के छोटे किसान मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों से सीधे कनेक्ट हो गए हैं। इस पहली ट्रेन का लाभ यूपी और मध्य प्रदेश के किसानों को भी होने वाला है, क्योंकि ये वहां से होकर गुजरेगी।इस ट्रेन की खासियत ये है कि, ये पूरी तरह से एयर कंडीशेंड है। यानि एक प्रकार से ये पटरी पर दौड़ता Cold Storage है।
इससे दूध, फल-सब्ज़ी, मछली पालक, ऐसे हर प्रकार के किसानों को भी लाभ होगा और शहरों में इनका उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को भी लाभ होगा।
किसान को लाभ ये होगा कि उसको अपनी फसल स्थानीय मंडियों या हाट-बाजारों में कम दाम पर बेचने की मजबूरी नहीं रहेगी। ट्रकों में फल-सब्ज़ी जिस प्रकार बर्बाद हो जाते थे, उससे मुक्ति मिलेगी और ट्रकों के मुकाबले भाड़ा भी कई गुणा कम रहेगा।
शहरों में रहने वाले साथियों को लाभ ये होगा कि अब मौसम के कारण या दूसरे संकटों के समय फ्रेश फल-सब्जियों की कमी नहीं रहेगी, कीमत भी कम होगी।
इतना ही नहीं, इससे गांवों में छोटे किसानों की स्थिति में एक और परिवर्तन आएगा।
अब जब देश के बड़े शहरों तक छोटे किसानों की पहुंच हो रही है तो वो ताज़ा सब्जियां उगाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, पशुपालन और मत्स्यपालन की तरफ प्रोत्साहित होंगे। इससे कम ज़मीन से भी अधिक आय का रास्ता खुल जाएगा, रोज़गार और स्वरोज़गार के अनेक नए अवसर खुलेंगे।
साथियों,
ये जितने भी कदमउठाए जा रहे हैं, इनसे 21वीं सदी में देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर भी बदलेगी, कृषि से आय में भी कई गुणा वृद्धि होगी।
हाल में लिए गए हर निर्णय आने वाले समय में गांव के नज़दीक ही व्यापक रोज़गार तैयार करने वाले हैं।
गांव और किसान, आपदा में भी देश को कैसे संबल दे सकता है, ये बीते 6 महीने से हम देख रहे हैं। ये हमारे किसान ही हैं, जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान देश को खाने-पीने के ज़रूरी सामान की समस्या नहीं होने दी।देश जब लॉकडाउन में था, तब हमारा किसान खेतों में फसल की कटाई कर रहा था और बुआई के नए रिकॉर्ड बना रहा था।
लॉकडाउन के पहले दिन से लेकर दीपावली और छठ तक के 8 महीनों के लिए 80 करोड़ से ज्यादा देशवासियों तक अगर मुफ्त राशन अगर आज हम पहुंचा पा रहे हैं तो, इसके पीछे भी सामर्थ्य हमारे किसानों का ही है।
साथियों,
सरकार ने भी सुनिश्चित किया कि किसान की उपज की रिकॉर्ड खरीद हो। जिससे पिछली बार की तुलना में करीब 27 हज़ार करोड़ रुपए ज्यादा किसानों की जेब में पहुंचा है।बीज हो या खाद, इस बार मुश्किल परिस्थितियों में भी रिकॉर्ड उत्पादन किया गया और डिमांड के अनुसार किसान तक पहुंचाया गया।
यही कारण है कि इस मुश्किल समय में भी हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मज़बूत है, गांव में परेशानी कम हुई है।
हमारे गांव की ये ताकत देश के विकास की गति को भी तेज़ करने में अग्रणी भूमिका निभाए, इसी विश्वास के साथ आप सभी किसान साथियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
कोरोना को गांव से बाहर रखने में जो प्रशंसनीय काम आपने किया है, उसको आप जारी रखें।
दो गज़ की दूरी और मास्क है ज़रूरी के मंत्र पर अमल करते रहें।
सतर्क रहें, सुरक्षित रहें।
बहुत-बहुत आभार !!