राजनीति / मोदी के मंच पर लगे जय श्रीराम के नारे,ममता हुई नाराज, कही ये बड़ी बात

बंगाल में नेताजी की जयंती पर सियासी बवाल हो गया। यहां विक्टोरिया मेमोरियल में मोदी के मंच पर ममता बनर्जी नाराज हो गईं। वे भाषण दिए बगैर ही वापस लौट आईं। जब ममता भाषण देने पहुंचीं, तो कुछ लोग जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। इसके बाद ममता ने माइक पर कहा, 'यह किसी पॉलिटिकल पार्टी का प्रोग्राम नहीं है। किसी को निमंत्रण देकर बेइज्जत करना अच्छी बात नहीं है। मैं अब कुछ नहीं बोलूंगी। जय भारत, जय बांग्ला।'

Vikrant Shekhawat : Jan 23, 2021, 06:43 PM
बंगाल में नेताजी की जयंती पर सियासी बवाल हो गया। यहां विक्टोरिया मेमोरियल में मोदी के मंच पर ममता बनर्जी नाराज हो गईं। वे भाषण दिए बगैर ही वापस लौट आईं। जब ममता भाषण देने पहुंचीं, तो कुछ लोग जय श्रीराम के नारे लगाने लगे। इसके बाद ममता ने माइक पर कहा, 'यह किसी पॉलिटिकल पार्टी का प्रोग्राम नहीं है। किसी को निमंत्रण देकर बेइज्जत करना अच्छी बात नहीं है। मैं अब कुछ नहीं बोलूंगी। जय भारत, जय बांग्ला।'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेताजी की 125वीं जयंती पर कोलकाता पहुंचे हैं। यहां उन्होंने नेशनल लाइब्रेरी का दौरा किया। इसके बाद मोदी विक्टोरिया मेमोरियल हॉल पहुंचे, जहां उन्होंने नेताजी की स्मृति में सिक्का और डाक टिकट जारी किया। मोदी इस वक्त लोगों को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बचपन से जब भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस का नाम सुना। एक नई ऊर्जा से भर गया।


मोदी के भाषण की खास बातें:


उस मां को नमन, जिसने नेताजी को जन्म दिया:

मोदी ने कहा, 'नेताजी की व्याख्या के लिए शब्द कम पड़ जाएं। इतनी दूर की दृष्टि कि वहां तक देखने के लिए अनेकों जन्म लेने पड़ जाएं। विकट से विकट परिस्थितों में भी इतना साहस कि दुनिया की बड़ी से बड़ी चुनौती टिक न पाए। मैं उनके श्रीचरणों में नमन करता हूं और नमन करता हूं उस मां को जिन्होंने नेताजी को जन्म दिया।'


नेताजी ने कहा था- आजादी मांगूंगा नहीं, छीन लूंगा

प्रधानमंत्री ने कहा, 'आज उस दिन को 125 वर्ष हो रहे हैं। 125 वर्ष पहले आज ही के दिन उस वीर सपूत ने जन्म लिया था। आज के ही दिन गुलामी के अंधेरे में वह चेतना फूटी थी जिसने दुनिया की सबसे बड़ी सत्ता के सामने खड़े होकर कहा था कि मैं तुमसे आजादी मांगूंगा नहीं, छीन लूंगा। आज के दिन सिर्फ नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म ही नहीं हुआ था, बल्कि भारत के आत्मसम्मान का जन्म हुआ था। नए कौशल का जन्म हुआ था।'


हावड़ा-कालका मेल का नाम नेताजी एक्सप्रेस किया:

मोदी बोले- साथियों मैं आज बालक सुभाष को नेताजी बनाने वाली बंगाल की इस पुण्य भूमि को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं। यह वही पुण्य भूमि है, जिसने देश को उसका राष्ट्रगान भी दिया है और राष्ट्रगीत भी दिया है। देश ने तय किया है कि नेताजी के जन्म के 125वें वर्ष को अभूतपूर्व भव्य आयोजनों के साथ मनाएं। हावड़ा-कालका मेल का नाम भी अब नेताजी एक्सप्रेस कर दिया गया है। देश ने यह भी तय किया है कि हर साल हम नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया करेंगे।


नेताजी ने महिलाओं को देश के लिए जीने-मरने का मौका दिया:

देश जब आजादी के 175वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है, जब देश आत्मनिर्भर भारत के संकल्प की ओर बढ़ रहा है तब नेताजी का संदेश हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। उन्होंने विदेश में जाकर वहां रहने वाले भारतीयों की चेतना का झकझोरा। उन्होंने पूरे देश से हर जाति और हर पंथ के लोगों को देश का सैनिक बनाया। उस समय जब दुनिया महिला के सामान्य अधिकारों की बात कर रही थी तब नेताजी ने महिला रेजीमेंट बनाकर उन्हें अपनी सेना में भर्ती किया। उन्हें जीने का और देश के लिए मरने का अवसर दिया।


मोदी ममता का साथ क्यों है खास?

विक्टोरिया मेमोरियल के मुख्य कार्यक्रम में मोदी के साथ मंच पर ममता बनर्जी भी मौजूद हैं। अब तक राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर दोनों दलों के कार्यक्रम अलग-अलग होते रहे हैं। आमतौर पर केंद्र के कार्यक्रमों और बैठकों में ममता मौजूद नहीं रही हैं। अपनी पार्टी के मंच से भाजपा को खरी-खोटी सुना चुकीं ममता के सामने इस बार पद की गरिमा के साथ-साथ पार्टी की छवि बचाने की चुनौती है।


मोदी से पहले ममता का शक्ति प्रदर्शन:

इधर मोदी के आने से पहले ही बंगाल की CM ममता बनर्जी ने शक्ति प्रदर्शन कर दिया। इधर, दिलचस्प बात ये है कि आज ही मोदी के दोनों कार्यक्रमों में मंच पर ममता भी उनके साथ होंगी। ममता ने कोलकाता को राजधानी बनाने की मांग की। उन्होंने कहा, 'अंग्रेज कोलकाता से ही पूरे देश पर राज करते थे। ऐसे में हमारे देश में एक शहर को ही राजधानी क्यों बनाए रखना चाहिए। देश में चार रोटेटिंग कैपिटल होनी चाहिए।


हम केवल चुनावी साल में नेताजी को याद नहीं करते:

ममता ने कहा कि हम नेताजी का जन्मदिन केवल चुनावी साल में नहीं मनाते। नेताजी को वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। हम उनकी 125वीं जयंती बहुत बड़े पैमाने पर मना रहे हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें देशनायक कहा था, इसलिए हमने आज के दिन को देशनायक दिवस नाम दिया है।


ममता ने पराक्रम दिवस को खारिज किया:

केंद्र सरकार ने नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया है। लेकिन, ममता बनर्जी ने इसे खारिज करते हुए इस दिन को देशनायक दिवस के तौर पर मनाने की बात कही। ममता ने कोलकाता में श्याम बाजार से रेड रोड तक करीब 8 किमी की पदयात्रा निकाली। इसे दोपहर 12.15 पर शुरू किया गया, क्योंकि 23 जनवरी 1897 को इसी वक्त नेताजी का जन्म हुआ था।


ममता के भाषण की बड़ी बातें:


  • केंद्र सरकार नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करे।
  • केंद्र सरकार नेताजी के सम्मान की बात करती है, लेकिन उनके सुझाव पर बने योजना आयोग को ही खत्म कर दिया गया।
  • जब नेताजी ने आजाद हिंद फौज बनाई, तो उसमें गुजरात, बंगाल, तमिलनाडु के लोग भी थे। वे बांटने की राजनीति के खिलाफ थे।
  • बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस यूनिवर्सिटी और जय हिंद वाहिनी का गठन किया जाएगा।
  • हम एक आजाद हिंद स्मारक बनाएंगे। हम दिखाएंगे कि इस काम को कैसे किया जाना है। उन्होंने (केंद्र सरकार) मूर्तियों और नए संसद परिसर पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं।

मोदी के बंगाल आने के पहले बवाल भी हुआ:

प्रधानमंत्री के बंगाल पहुंचने के पहले हावड़ा में बवाल हो गया। भाजपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि तृणमूल के लोगों ने उन पर हमला किया। स्थानीय भाजपा नेता का कहना है कि हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया गया। अगर तृणमूल ऐसी राजनीति करना चाहती है तो उन्हें इसी भाषा में जवाब देंगे।


बंगाल की राजनीति में अब दिल्ली का दखल:

पश्चिम बंगाल में उत्सव, जनसंस्कृति का हिस्सा है। यहां सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कोई न कोई मौका ढूंढ़ा जाता है, चाहे टैगोर जयंती हो या विवेकानंद या फिर सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन। इन कार्यक्रम कमेटियों में स्थानीय राजनीति भी फलती-फूलती है, मगर इस बार इस राजनीति का दायरा बढ़कर दिल्ली तक पहुंच गया है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक फ्रंट पर बंगाली मानुष को लुभाने की होड़ पिछले साल दुर्गा पूजा से ही शुरू हो गई थी। 2021 के शुरू होते ही 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर भी दोनों दलों के बीच जलसे-जुलूस को लेकर मुकाबला जैसा हुआ, पर तृणमूल के कार्यक्रमों के आगे भाजपा के आयोजन शायद थोड़े फीके रह गए। यही कसर निकालने के लिए नेताजी की जयंती पर खुद मोदी मैदान में उतर गए हैं।


दोनों नेताओं का लक्ष्य एक ही- बंगालियत से खुद को करीब दिखाना:

बंगाल में राज्य के इतिहास और संस्कृति से जुड़े महापुरुषों के प्रति खासा सम्मान रहा है। यहां जनता इसे बंगालियत से जोड़कर देखती है। यहां खेल और कला की शिक्षा हर घर में दी ही जाती है, यही वजह है कि जनता सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सीधे तौर पर जुड़ी होती है। विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के मंच पर भी मोदी और ममता दोनों का मकसद इसी बंगालियत से खुद को करीब दिखाना होगा। यह भी तय है कि इसी बंगाली सेंटिमेंट को जीतने वाले का पलड़ा आने वाले विधानसभा चुनाव में भारी होगा।