Vikrant Shekhawat : Jun 26, 2022, 04:42 PM
Rampur By Election Result: भाजपा ने उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों आजमगढ़ और रामपुर के लिए हुए उपचुनाव में शानदार जीत हासिल कर ली है। एक तरफ उसने समाजवादी पार्टी के गढ़ रहे आजमगढ़ में दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को जीता लिया है तो वहीं दूसरी तरफ आजम के गढ़ कहे जाने वाले रामपुर में भी ऐतिहासिक जीत हासिल की है। रामपुर लोकसभा सीट पर यह चौथा मौका है, जब भाजपा ने जीत हासिल की है। आजम खान के समर्थक सपा प्रत्याशी मोहम्मद आसिम रजा को 3 लाख 25 हजार के करीब वोट ही मिले, जबकि भाजपा कैंडिडेट घनश्याम लोधी को 3 लाख 67 हजार वोट मिले हैं और उन्होंने करीब 42 हजार वोटों से जीत हासिल कर ली। घनश्याम लोधी कभी आजम खान के ही करीबी थे।
रामपुर में आजम ने प्रतिष्ठा खो दी, 42 हजार वोटों से जीते भाजपा के लोधीरामपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की जीत के पीछे बसपा के वोटों का ट्रांसफर होना भी माना जा रहा है। 2019 में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और यह सीट सपा के खाते में गई थी। लेकिन इससे पहले 2014 की बात करें तो भाजपा के दिवंगत नेता डॉ. नेपाल सिंह को जीत मिली थी। तब कहा गया था कि बसपा और कांग्रेस ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए थे और इसी के चलते सपा हार गई। इस बार बसपा और कांग्रेस ने उम्मीदवार ही नहीं उतारा था। इसके बाद भी सपा कैंडिडेट को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है, जबकि आजम खान बीमारी के बाद भी खुद प्रचार कर रहे थे।भाजपा की तरफ ली बसपा के हाथी ने करवटऐसे में इस बार कांग्रेस और बसपा के गैर-हाजिर रहने से इन वोटों का बंटवारा सपा और भाजपा के बीच ही होना था। साफ है कि नवाब के भाजपा को समर्थन करने से कांग्रेस के वोटों का एक हिस्सा घनश्याम लोधी को मिल गया। इसके अलावा बीएसपी के दलित वोटर्स ने भी भाजपा को ही पसंद किया है। इस तरह बसपा का हाथी शायद भाजपा की करवट बैठ गया है और नवाब का साथ तो खुले तौर पर भाजपा के साथ ही था। ऐसे में इस चुनाव में एक तरफ सपा के ओवरकॉन्फिडेंस को उजागर कर दिया है तो वहीं आजम खान को भी झटका दिया है, जो खुद प्रचार में उतरे थे।आजम खान की मौजूदगी में भाजपा की जीत अहमभाजपा के लिहाज से बात करें तो रामपुर में आजम खान की मौजूदगी में जीत हासिल करना उसके लिए बड़ी सफलता है। जिस रामपुर की दो विधानसभा सीटों पर आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम जेल में रहकर भी जीत गए थे, उस पर उनकी मौजूदगी में हार होना सपा के लिए बड़ी किरकिरी है। इस उपचुनाव के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति पर भी सवाल उठ सकते हैं, जो आजमगढ़ और रामपुर में से किसी भी सीट पर प्रचार के लिए नहीं गए। ऐसे में आने वाले दिनों में वह एक बार फिर से पार्टी के अंदर और बाहर निशाने पर आ सकते हैं।
रामपुर में आजम ने प्रतिष्ठा खो दी, 42 हजार वोटों से जीते भाजपा के लोधीरामपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की जीत के पीछे बसपा के वोटों का ट्रांसफर होना भी माना जा रहा है। 2019 में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और यह सीट सपा के खाते में गई थी। लेकिन इससे पहले 2014 की बात करें तो भाजपा के दिवंगत नेता डॉ. नेपाल सिंह को जीत मिली थी। तब कहा गया था कि बसपा और कांग्रेस ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए थे और इसी के चलते सपा हार गई। इस बार बसपा और कांग्रेस ने उम्मीदवार ही नहीं उतारा था। इसके बाद भी सपा कैंडिडेट को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है, जबकि आजम खान बीमारी के बाद भी खुद प्रचार कर रहे थे।भाजपा की तरफ ली बसपा के हाथी ने करवटऐसे में इस बार कांग्रेस और बसपा के गैर-हाजिर रहने से इन वोटों का बंटवारा सपा और भाजपा के बीच ही होना था। साफ है कि नवाब के भाजपा को समर्थन करने से कांग्रेस के वोटों का एक हिस्सा घनश्याम लोधी को मिल गया। इसके अलावा बीएसपी के दलित वोटर्स ने भी भाजपा को ही पसंद किया है। इस तरह बसपा का हाथी शायद भाजपा की करवट बैठ गया है और नवाब का साथ तो खुले तौर पर भाजपा के साथ ही था। ऐसे में इस चुनाव में एक तरफ सपा के ओवरकॉन्फिडेंस को उजागर कर दिया है तो वहीं आजम खान को भी झटका दिया है, जो खुद प्रचार में उतरे थे।आजम खान की मौजूदगी में भाजपा की जीत अहमभाजपा के लिहाज से बात करें तो रामपुर में आजम खान की मौजूदगी में जीत हासिल करना उसके लिए बड़ी सफलता है। जिस रामपुर की दो विधानसभा सीटों पर आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम जेल में रहकर भी जीत गए थे, उस पर उनकी मौजूदगी में हार होना सपा के लिए बड़ी किरकिरी है। इस उपचुनाव के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति पर भी सवाल उठ सकते हैं, जो आजमगढ़ और रामपुर में से किसी भी सीट पर प्रचार के लिए नहीं गए। ऐसे में आने वाले दिनों में वह एक बार फिर से पार्टी के अंदर और बाहर निशाने पर आ सकते हैं।