कोरोना अलर्ट / जापानी कल्चर की वो बातें, जो कोरोना से लड़ने में भारतीय सीख सकते हैं

जापान में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज 30 जनवरी के आसपास पाया गया था। उसके बाद अब तक दो महीने बीत चुके हैं। जापान में जिस तरह कोरोना विस्फोट की आशंका जाहिर की गई थी, वैसा नहीं हुआ। हालांकि हाल फिलहाल फिर जापान में कोरोना के कुछ मामले बढ़े हैं लेकिन नंबर्स के आधार पर देखें तो जापान में अब भी कोरोना वायरस संक्रमण काफी कम हुआ है।

News18 : Apr 03, 2020, 05:26 PM
जापान में पहला कोरोना पॉजिटिव मरीज 30 जनवरी के आसपास पाया गया था। उसके बाद अब तक दो महीने बीत चुके हैं। जापान में जिस तरह कोरोना विस्फोट की आशंका जाहिर की गई थी, वैसा नहीं हुआ। हालांकि हाल फिलहाल फिर जापान में कोरोना के कुछ मामले बढ़े हैं लेकिन नंबर्स के आधार पर देखें तो जापान में अब भी कोरोना वायरस संक्रमण काफी कम हुआ है। जापान में कुल मिलाकर 2617 कोरोना के मामले अब तक दर्ज किए गए हैं। जिसमें 63 लोगों की मौत हुई। 472 लोगों का उपचार हो चुका है जबकि 2082 लोग अस्पताल में भर्ती हैं।

जापान के लोग किन बातों को लेकर काफी सचेत रहते हैं?

जापान में कोरोना क्यों ज्यादा नहीं फैल सका, इसके पीछे काफी हद तक उनकी आदतें और कल्चर है, जिससे उनमें संक्रमण कम हुआ और वो अब भी इससे बचे हैं। हालांकि कुछ लोग ये भी कहते हैं कि जापानियों में सफाई और संक्रमण को लेकर जबरदस्त सनक होती है। वो परिवार में भी अक्सर अपने उस सदस्य को आइसोलेशन में रख देते हैं, जिसकी तबीयत खराब हो जाती है। लेकिन तब भी उनकी कुछ आदतें ऐसी हैं, जिससे हम भारतीय भी सीख सकते हैं।

क्या उनमें आमतौर पर भी मास्क पहनने की आदत ज्यादा होती है?

-आप कह सकते हैं कि ये काफी हद तक सही है। जापानी अपने साथ मास्क जरूर रखते हैं। जैसे ही किसी प्रदूषित या बीमार व्यक्ति से मिलने जाते हैं तो तुरंत मास्क लगा लेते हैं। खुद अपने देश में भी वो आमतौर पर सार्वजनिक जगहों और सार्वजनिक वाहनों में मास्क पहने दिखते हैं। अगर किसी भी जापानी को बुखार, हल्का-फुल्का सर्दी जुकाम या खांसी भी होती है तो दूसरों को संक्रमण से बचाने के लिए मास्क लगाए रखता है।

क्या जापानी सर्दी-जुकाम और खांसी को भी लेकर ज्यादा सचेत रहते हैं?

जापान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट पर गौर करें तो इसका जवाब होगा-हां। यहां तक कि बच्चों में मां कम उम्र से ही ये भावना भर देती है कि जैसे ही उन्हें हल्की फुल्की खांसी, बुखार और जुकाम हो तो उन्हें परिवार से दूरी बरतनी चाहिए। मास्क लगा लेना चाहिए। सफाई बरतनी चाहिए।

हालांकि ये बात अतिशय सनक भी कही जा सकती है लेकिन जापानी मां भी अपने बच्चे को उलाहना दे सकती है कि उसकी इस बीमारी के लिए वो जिम्मेदार है। इसलिए जापानी आमतौर पर बीमार होते ही अपने ही घरों में आइसोलेशन में चले जाते हैं।

हल्का फुल्का बीमार होते ही एक औसत जापानी क्या करता है?

- वो कभी नहीं चाहता कि लोग उससे कहें कि उसकी वजह से दूसरे लोग संक्रमित हो गए हैं। लिहाजा वो तुरंत आफिस से छुट्टी ले लेता है। अगर वो ऐसा नहीं करता तो आफिस खुद उसे छुट्टी पर रहने को कह देता है। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र भी तुरंत घर पर दवाओं के जरिए पहले खुद को ठीक करते हैं फिर बाहर निकलते हैं।

घर में सफाई के लिए जापानी क्या करते हैं?

- वो घर के हर कोने और सामान को साफ करना कभी नहीं भूलते। घर में रहने के दौरान लगातार हाथ धोना उनकी प्राथमिकता में शामिल होता है। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो तुरंत टोक दिए जाते हैं। अपने घरों में जापानी कतई जूता-चप्पल नहीं पहनते। इसे बाहर ही उतार देते हैं।

क्या जापानी हाथ मिलाते हैं और गले मिलते हैं?

- हाल के दिनों में जापानियों ने ऐसा करना कुछ हद तक शुरू किया था लेकिन आदतन वो एक-डेढ़ मीटर के फासले से झुककर अभिवादन करने की परंपरा में यकीन रखते हैं। हाथ मिलाने और गले लगाने की आदत उनमें कम होती है। खासकर उनका कल्चर उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता।

सार्वजनिक स्थानों पर वो किस तरह व्यावहार करते हैं?

- उनके रेस्टोरेंट, पार्क या अन्य स्थान साफसुथरे होते हैं। वो सार्वजनिक जगहों और सार्वजनिक वाहनों में चलने के दौरान बहुत कम बातचीत करना पसंद करते हैं। उनके यहां धार्मिक जमावड़े हालांकि कम होते हैं लेकिन लोग वसंत के दौरान पार्क में बड़ी संख्या में इकट्ठे होते हैं। जो इस बार कम है।

ये क्यों कहा जाता है जापान में बीमार होना दिक्कत पैदा करता है

- हां, इसे लेकर मीडिया और ब्लॉग्स में काफी कुछ कहा जाता रहा है लेकिन कुछ इससे इनकार भी करते हैं। मसलन ये कहा जाता है कि जापान में जब हेंसन नाम की बीमारी फैली तो जापानियों ने अपने ही परिजनों को अलग-थलग कर दिया। यहां तक जब वो ठीक भी हो गए तो भी मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाए। इसी तरह अगर कोई टीबी का मरीज है तो उसके लिए सामाजिक दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही हाल उन लोगों का भी हुआ था, जो 1945 में बम विस्फोट के बाद बच गए थे। लेकिन जापान में फुकुशिमा परमाणु रिसाव के बाद काम करने वाली संस्था सेफकास्ट ने कहा है कि इस तरह की बातें पूरी तरह सच नहीं कही जा सकतीं।