NavBharat Times : Jul 30, 2020, 10:42 AM
Health: वायरल हेपेटाइटिस पूरी दुनिया में होनेवाली बीमारी है और यह सामुहिक रूप से पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती है। क्योंकि हेपेटाइटिस के कारण दुनियाभर में हर साल लगभग 1.40 मिलियन मौतें होती हैं और यह आंकड़ा टीबी (तपेदिक) के बाद संक्रमण से होनेवाली मौतों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। यानी टीबी के बाद अगर किसी बीमारी से दुनिया में सबसे अधिक लोगों की मृत्यु होती है तो वह वायरल हेपेटाइटिस है...
कैसे काम करता है हेपेटाइटिस वायरस?-हर वायरस शरीर के अलग-अलग अंगों को प्रभावित करता है। जैसे कोरोना वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले हमारे फेफड़ों पर असर डालता है। इसी प्रकार हेपेटाइटिस वायरस का मुख्य प्रभाव लिवर पर देखने को मिलता है।
इन कारणों से फैलता है हेपेटाइटिस वायरस-वायरल इंफेक्शन: ये इंफेक्शन लिवर की सेल्स को किल करने का काम करता है। इससे लिवर में सूजन बढ़ने लगती है। इसका असर हमारे पाचन तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता, ब्लड सर्कुलेशन आदि पर दिखने लगता है। इससे शरीर में पीलापन बढ़ने लगता है।कई प्रकार की होती है हेपेटाइटिस की बीमारी
-एल्कोहॉल: एल्कोहॉल के कारण होनेवाली हेपेटाइटिस का असर सीधे तौर पर लिवर कोशिकाओं पर होता है। इन्हें मेडिकल की भाषा में हेपेटिक्स सेल कहते हैं।-गॉलब्लेडर स्टोन: गॉलब्लेडर स्टोन के कारण भी हेपेटाइटिस होता है। यह लिवर से पित्त निकलनेवाले रास्ते को बंद कर देता है, इससे लिवर में पित्त की मात्र बढ़ने लगती है और वह लिवर को नुकसान पहुंचाता है।वायरल हेपेटाइटिस-लिवर इंफ्लेमेशन होने की वजह जब वायरल होता है तो इसे वायरल हेपेटाइटिस कहते हैं। लिवर पर इसका असर एक्यूट भी हो सकता है और क्रोनिक भी। यानी यह आपके लिवर को कम समय के लिए भी बीमार कर सकता है और लंबे समय तक भी बीमार बनाए रख सकता है।-वायरल हेपेटाइटिस के मुख्य कारणों में हेपेटाइटिस ए, बी,सी,डी, ई के अतिरिक्त साइटोमेगाइलो वायरस, येलो फीवर वायरस भी होता है। इन वायरस में वायरल हेपेटाइटिस के लिए सबसे अधिक हेपेटाइटिस-ए के केस ही ज्यादा देखने को मिलते हैं। इसके बाद हेपेटाइटिस-ई और बी देखा जाता है।कैसे फैलता है हेपेटाइटिस?-शरीर में हेपेटाइटिस का वायरस भोजन, पानी, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और असुरक्षित सेक्स के माध्यम से प्रवेश करता है। हेपेटाइटिस-ए और हेपेटाइटिस-ई के वायरस आमतौर पर पानी और भोजन के साथ ही हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। यानी हमारे मुंह के द्वारा।
हेपेटाइटिस-बी, सी और डी के वायरस-हेपेटाइटिस बी, सी और डी के वायरस मुख्य रूप से ब्लड के माध्यम से या शरीर के फ्लूइड के माध्यम से प्रवेश करते हैं। जिसमें ब्लड ट्रांसफ्यूजन, अनप्रोटेक्टेड सेक्स, सर्जरी, शेविंग, कट्स के माध्यम से भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।रोकथाम के उपाय-हेपेटाइटिस के ज्यादातर वायरस के संक्रमण से धोड़ी सी सावधानी बरतकर बचा जा सकता है। जैसे, हेपेटाइटिस-ए और ई के वायरस से बचने के लिए साफ पानी और स्वच्छ भोजन का उपयोग करें।-हेपेटाइटिस-ए और बी की वैक्सीन बहुत प्रभावी होती है। इसके वैक्सीन बच्चों और बड़ों दोनों में लगते हैं। इसके बाद इन वैक्सीन्स के बूस्टर डोज भी लगवाए जा सकते हैं। अगर आप हर पांचवे साल पर इसका बूस्टर लगवा रहे हैं तब भी इस बीमारी से संक्रमण काफी हद तक बचा जा सकता है।
क्या कहती हैं डॉक्टर...नई दिल्ली स्थित मेडियॉर हॉस्पिटल की कंसल्टेंट पैथॉलजिस्ट ऐंड लैब इंचार्ज डॉक्टर निधि पालीवाल का कहना है कि 'टेस्ट और डाइग्नॉसिस के जरिए वायरल हेपेटाइटिस के कारणों और इसके उपचार के बारे में पता किया जा सकता है। वायरल हेपेटाइटिस हेपेटाइटिस का एक ऐसा प्रकार है, जिसके बारे में व्यापक जानकारी बहुत ही आसान लैब टेस्ट के माध्यम से पता की जा सकती है। वायरल हैपेटाइटिस का पता लगाने के लिए हम लैब में सीरॉलजिकल ब्लड टेस्ट करते हैं, जिसकी प्रक्रिया बहुत ही आसान है। साथ ही इसके टेस्ट बहुत महंगे भी नहीं होते हैं।'
कैसे काम करता है हेपेटाइटिस वायरस?-हर वायरस शरीर के अलग-अलग अंगों को प्रभावित करता है। जैसे कोरोना वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले हमारे फेफड़ों पर असर डालता है। इसी प्रकार हेपेटाइटिस वायरस का मुख्य प्रभाव लिवर पर देखने को मिलता है।
इन कारणों से फैलता है हेपेटाइटिस वायरस-वायरल इंफेक्शन: ये इंफेक्शन लिवर की सेल्स को किल करने का काम करता है। इससे लिवर में सूजन बढ़ने लगती है। इसका असर हमारे पाचन तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता, ब्लड सर्कुलेशन आदि पर दिखने लगता है। इससे शरीर में पीलापन बढ़ने लगता है।कई प्रकार की होती है हेपेटाइटिस की बीमारी
-एल्कोहॉल: एल्कोहॉल के कारण होनेवाली हेपेटाइटिस का असर सीधे तौर पर लिवर कोशिकाओं पर होता है। इन्हें मेडिकल की भाषा में हेपेटिक्स सेल कहते हैं।-गॉलब्लेडर स्टोन: गॉलब्लेडर स्टोन के कारण भी हेपेटाइटिस होता है। यह लिवर से पित्त निकलनेवाले रास्ते को बंद कर देता है, इससे लिवर में पित्त की मात्र बढ़ने लगती है और वह लिवर को नुकसान पहुंचाता है।वायरल हेपेटाइटिस-लिवर इंफ्लेमेशन होने की वजह जब वायरल होता है तो इसे वायरल हेपेटाइटिस कहते हैं। लिवर पर इसका असर एक्यूट भी हो सकता है और क्रोनिक भी। यानी यह आपके लिवर को कम समय के लिए भी बीमार कर सकता है और लंबे समय तक भी बीमार बनाए रख सकता है।-वायरल हेपेटाइटिस के मुख्य कारणों में हेपेटाइटिस ए, बी,सी,डी, ई के अतिरिक्त साइटोमेगाइलो वायरस, येलो फीवर वायरस भी होता है। इन वायरस में वायरल हेपेटाइटिस के लिए सबसे अधिक हेपेटाइटिस-ए के केस ही ज्यादा देखने को मिलते हैं। इसके बाद हेपेटाइटिस-ई और बी देखा जाता है।कैसे फैलता है हेपेटाइटिस?-शरीर में हेपेटाइटिस का वायरस भोजन, पानी, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और असुरक्षित सेक्स के माध्यम से प्रवेश करता है। हेपेटाइटिस-ए और हेपेटाइटिस-ई के वायरस आमतौर पर पानी और भोजन के साथ ही हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। यानी हमारे मुंह के द्वारा।
हेपेटाइटिस-बी, सी और डी के वायरस-हेपेटाइटिस बी, सी और डी के वायरस मुख्य रूप से ब्लड के माध्यम से या शरीर के फ्लूइड के माध्यम से प्रवेश करते हैं। जिसमें ब्लड ट्रांसफ्यूजन, अनप्रोटेक्टेड सेक्स, सर्जरी, शेविंग, कट्स के माध्यम से भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।रोकथाम के उपाय-हेपेटाइटिस के ज्यादातर वायरस के संक्रमण से धोड़ी सी सावधानी बरतकर बचा जा सकता है। जैसे, हेपेटाइटिस-ए और ई के वायरस से बचने के लिए साफ पानी और स्वच्छ भोजन का उपयोग करें।-हेपेटाइटिस-ए और बी की वैक्सीन बहुत प्रभावी होती है। इसके वैक्सीन बच्चों और बड़ों दोनों में लगते हैं। इसके बाद इन वैक्सीन्स के बूस्टर डोज भी लगवाए जा सकते हैं। अगर आप हर पांचवे साल पर इसका बूस्टर लगवा रहे हैं तब भी इस बीमारी से संक्रमण काफी हद तक बचा जा सकता है।
क्या कहती हैं डॉक्टर...नई दिल्ली स्थित मेडियॉर हॉस्पिटल की कंसल्टेंट पैथॉलजिस्ट ऐंड लैब इंचार्ज डॉक्टर निधि पालीवाल का कहना है कि 'टेस्ट और डाइग्नॉसिस के जरिए वायरल हेपेटाइटिस के कारणों और इसके उपचार के बारे में पता किया जा सकता है। वायरल हेपेटाइटिस हेपेटाइटिस का एक ऐसा प्रकार है, जिसके बारे में व्यापक जानकारी बहुत ही आसान लैब टेस्ट के माध्यम से पता की जा सकती है। वायरल हैपेटाइटिस का पता लगाने के लिए हम लैब में सीरॉलजिकल ब्लड टेस्ट करते हैं, जिसकी प्रक्रिया बहुत ही आसान है। साथ ही इसके टेस्ट बहुत महंगे भी नहीं होते हैं।'