दुनिया / क्या है पेरिस समझौता, जिसके कारण चीन और भारत दोनों कटघरे में हैं?

अब चीन और रूस के साथ-साथ भारत पर भी डोनाल्ड ट्रंप ने निशाना साधा है। हाल ही में प्रेसिडेंट ट्रंप ने तीनों ही देशों पर पेरिस समझौते के तहत काम नहीं करने का आरोप लगाया। ट्रंप का कहना है कि भारत, चीन और रूस अपने देशों में वायु की गुणवत्ता बनाए रखने पर ध्यान नहीं देते, इसका असर अमेरिका पर हो रहा है। बता दें कि इससे पहले भी ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर आधारित पेरिस समझौते को एकतरफा बताया है

News18 : Aug 02, 2020, 09:34 AM
Delhi: अब चीन और रूस के साथ-साथ भारत पर भी डोनाल्ड ट्रंप ने निशाना साधा है। हाल ही में प्रेसिडेंट ट्रंप ने तीनों ही देशों पर पेरिस समझौते के तहत काम नहीं करने का आरोप लगाया। ट्रंप का कहना है कि भारत, चीन और रूस अपने देशों में वायु की गुणवत्ता बनाए रखने पर ध्यान नहीं देते, इसका असर अमेरिका पर हो रहा है। बता दें कि इससे पहले भी ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर आधारित पेरिस समझौते को एकतरफा बताया है और ट्रंप के आने के साथ ही अमेरिका इससे समझौते को तोड़ चुका है। जानिए, क्या है पेरिस समझौता, जिसकी वजह से ट्रंप भारत पर भी भड़के हुए हैं।


समझें पूरा मामला

ट्रंप ने टेक्सास में ऊर्जा पर एक संबोधन के दौरान तीन देशों पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि भारत, चीन और रूस धड़ल्ले से प्रदूषण कर रहे हैं, जबकि अमेरिका ने खुद को पूरी तरह से संतुलित रखा हुआ था। ओबामा के शासनकाल में हुए पेरिस समझौते के तहत अमेरिका ने कई फैक्टियां बंद कर दीं। नौकरियां छूट गईं। ट्रंप के मुताबिक कुल मिलाकर अमेरिका अकेला था, जो पेरिस समझौते के तहत काम कर रहा था और इसकी वजह से वो गैर-प्रतिस्पर्धी देश बन रहा था।यही आरोप लगाते हुए ट्रंप ने साल 2019 में ही अमेरिका के पेरिस समझौते से बाहर जाने का एलान कर दिया। ट्रंप का कहना है कि इससे बाहर होने के बाद अमेरिका 70 सालों में पहली बार तेल और प्राकृतिक गैस का नंबर एक उत्पादक बन गया।

क्या है पेरिस समझौता

क्लाइमेट चेंज पर लगातार बढ़ती चिंता के बीच साल 2015 के नवंबर-दिसंबर में पेरिस में 195 देश जमा हुए। वहां ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के मकसद से ग्लोबल समझौता हुआ। इसे ही पेरिस समझौते के नाम से जाना जाता है। इसके तहत तय हुआ कि ग्लोबल तापमान में बढ़ोत्तरी 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित रहे। जमा हुए ज्यादातर देशों ने इसके लिए लिखित अनुमति दे दी। बता दें कि पेरिस संधि पर शुरुआत में ही 177 सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए थे।

काफी ढील बरती गई

ये पहली बार हुआ जब किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते के पहले ही दिन इतनी बड़ी संख्या में सदस्यों ने सहमति जताई थी। हालांकि पेरिस समझौता उतने प्रभावी तरीके से लागू नहीं हो सका क्योंकि इसमें सदस्य देशों पर निर्भर था कि वे कार्बन कटौती के लिए क्या तरीके अपनाते हैं। साथ ही टारगेट पूरा न हो पाने पर यानी जरूरत से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन पर किसी तरह के जुर्माने का भी कोई प्रावधान नहीं था। सभी देशों द्वारा स्वेच्छा से इस ओर ध्यान देने की बात की गई। यही वजह है कि सभी देशों ने अपने-अपने तरीके से ये किया। सभी देश आर्थिक उन्नति के लिए लगातार उद्योग बढ़ाते गए और उत्सर्जन बढ़ता ही गया।

कौन-सा देश कितना प्रदूषण कर रहा

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में खुद भारत की भी भागादारी सात से आठ प्रतिशत है। चीन प्रदूषण के मामले में 26 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर है। वहीं अमेरिका भी 15 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर है। तीसरे नंबर पर यूरोपियन यूनियन आता है। कुल मिलाकर पूरी दुनिया के प्रदूषण में इन्हीं चार देशों की लगभग 58 फीसदी हिस्सेदारी है। भारत में प्रदूषण स्तर ज्यादा रहने की वजह यहां उद्योगों की कोयले पर ज्यादा निर्भरता है। यही कारण चीन में भी है। जबकि दूसरे विकसित देश सोलर और हवा से पैदा एनर्जी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।

अब ये समझते हैं कि पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका क्यों बाहर हुआ। ये प्रक्रिया साल 2017 में ट्रंप के प्रेसिडेंट बनने के साथ ही शुरू हो गई थी। ट्रंप का कहना था कि अमेरिका अकेला ही जलवायु परिवर्तन को कंट्रोल करने की कोशिश करता रहा, जिसके कारण वहां कई रोजगार बंद हो गए।


क्यों हुआ अमेरिका अलग

ट्रंप के मुताबिक वॉशिंगटन ने दूसरे देशों के फायदे के लिए अमरीका के हितों को नुकसान पहुंचाया। उद्योग घाटे में जाने के कारण बंद हो गए, लोग बेरोजगार हो गए। जबकि दूसरे देशों का आर्थिक लाभ बढ़ने लगा। बता दें कि दूसरे देशों को क्लाइमेट चेंज रोकने के लिए काम करने को अमेरिका ने काफी सारी फंडिंग भी की।

ट्रंप ने आरोप लगाया कि चीन और भारत तक अरबों डॉलर मदद लेकर समझौते में आए और वैसे रिजल्ट नहीं दे रहे। दोनों देशों में कोयले से बिजली कारखाने चल रहे हैं और इसी तरह से वे अमेरिका से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह बताते हुए ट्रंप ने अमेरिका के पेरिस समझौते से बाहर आने की बात की।