Doval China Visit / NSA अजीत डोभाल का क्यों अहम है चीन दौरा, 5 साल बाद होने जा रही अहम बैठक

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की बीजिंग यात्रा सीमा विवाद सुलझाने और आपसी संबंध सुधारने के प्रयासों का हिस्सा है। पांच वर्षों बाद हो रही इस उच्चस्तरीय वार्ता में डेमचोक-देपसांग समझौते के बाद विश्वास बढ़ाने पर जोर है। चीन ने मतभेदों को ईमानदारी से हल करने और संवाद बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।

Vikrant Shekhawat : Dec 18, 2024, 08:57 AM
Doval China Visit: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल इस समय बीजिंग की यात्रा पर हैं, और यह दौरा भारत-चीन संबंधों को एक नई दिशा देने के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। डोभाल की यह यात्रा 24 अक्टूबर को रूस में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक की आम सहमति के आधार पर हो रही है।

सीमा विवाद सुलझाने पर जोर

इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चल रहे विवादों को पूरी तरह सुलझाना और दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में ठोस कदम उठाना है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में हुए सीमा समझौतों और डेमचोक व देपसांग क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी के बाद इस वार्ता को खास महत्व दिया जा रहा है।

डोभाल बुधवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात करेंगे। यह बैठक लगभग पांच वर्षों बाद हो रही है, क्योंकि दिसंबर 2019 में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच आखिरी बार औपचारिक बातचीत हुई थी।

2020 के बाद तनावपूर्ण हुए संबंध

2020 में गलवान घाटी में हुए विवाद ने भारत-चीन संबंधों को बुरी तरह प्रभावित किया था। हालांकि, उसके बाद से कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हो चुकी हैं। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में बताया कि सीमा विवाद के 75% मुद्दे हल हो चुके हैं और पूरी तरह समाधान की उम्मीद जल्द ही की जा सकती है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि डोभाल की इस यात्रा का समय बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि दोनों देशों ने हाल ही में डेमचोक और देपसांग से सेना हटाने के समझौते पर सहमति बनाई है। इसके अलावा, समन्वित गश्त (को-ऑर्डिनेटेड पेट्रोलिंग) भी शुरू हो चुकी है।

चीन की प्रतिक्रिया

चीनी विदेश मंत्रालय ने डोभाल के दौरे का स्वागत करते हुए कहा कि वह भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को फिर से पटरी पर लाने के लिए काम करने को तैयार है। बीजिंग ने दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी आम सहमति को लागू करने और संवाद व सहयोग के जरिए आपसी विश्वास को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

चीन ने एक-दूसरे के "मूल हितों" और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने और मतभेदों को ईमानदारी और सद्भावना के साथ हल करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की।

भारत की अहम भूमिका

भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि अप्रैल 2020 की स्थिति पर लौटना ही दोनों देशों के संबंध सुधारने की दिशा में पहला कदम होगा। इसके अलावा, G20, ब्रिक्स, SCO और क्वाड जैसे मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका ने भी चीन पर दबाव बनाया है।

भविष्य की उम्मीदें

डोभाल की इस यात्रा से भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक प्रगति की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली और सीमा विवाद के स्थायी समाधान में कितनी सफलता मिलती है।

भारत और चीन, दोनों ही आर्थिक और क्षेत्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण देश हैं। ऐसे में आपसी संबंधों में सुधार न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे एशिया और विश्व के लिए सकारात्मक संकेत हो सकता है।