देश / क्यों सितंबर आते ही बढ़ने लगते हैं प्याज के दाम और नवंबर में आसमान छूते हैं

प्याज की कीमतें फिर बढ़ने लगी हैं। हर साल इसी समय प्याज की कीमतों में तेजी आने लगती है। हालांकि उसकी वजहें भी होती हैं। फिर ये कीमतें नवंबर में आसमान छूने लगती है। तब इसकी कीमतों को लेकर हाहाकार मचने लगता है। फिलहाल प्याज की कीमत बाजार में 50-60 रुपए किलो तक हो गई है। चूंकि इस सीजन में हर साल ही ऐसा होता है, लिहाजा सरकार ने सतर्कता दिखाते हुए देश से किसी भी तरह की प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी।

News18 : Sep 15, 2020, 03:26 PM
Delhi: प्याज (onion) की कीमतें (price) फिर बढ़ने लगी हैं। हर साल इसी समय प्याज की कीमतों में तेजी आने लगती है। हालांकि उसकी वजहें भी होती हैं। फिर ये कीमतें नवंबर में आसमान छूने लगती है।  तब इसकी कीमतों को लेकर हाहाकार मचने लगता है। फिलहाल प्याज की कीमत बाजार में 50-60 रुपए किलो तक हो गई है। चूंकि इस सीजन में हर साल ही ऐसा होता है, लिहाजा सरकार ने सतर्कता दिखाते हुए देश से किसी भी तरह की प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। वैसे ये सवाल लाजिमी है कि आखिर हर साल इस सीजन में प्याज क्यों महंगा होने लगता है।

प्याज का मसला ऐसा है कि सरकारें तक चिंताग्रस्त हो जाती हैं। अक्सर प्याज की कीमतें राजनीतिक मुद्दा बन जाती हैं। लिहाजा सरकार तक कोशिश में रहती है कि उनकी कीमतों को काबू में रखा जाए। इस बार मोटे तौर पर प्याज की कीमतों में बढोतरी का रिश्ता जुलाई-अगस्त में प्याज उत्पादन वाले राज्यों में हुई भारी बारिश और फसल खराब हो जाने है।

वैसे आपको यहां ये भी बता दें कि देशभर में जिस तरह से प्याज पैदा होती है, उसमें इसकी फसल लगातार ही बाजार में उपलब्ध होती रहती है। सितंबर में अक्सर इसकी फसल पर सूखे या बारिश की मार का असर नजर के साथ आवक पर प्रभाव नजर आता है।

कंट्रोल नहीं हो पातीं कीमतें

हर साल प्याज की कीमतें बढ़ने से रोकने के उपाय किए जाते हैं। प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया जाता है, प्याज के स्टॉक पर रोक लग जाती है, सरकारी एजेंसियां सस्ते दामों पर प्याज की बिक्री शुरू कर देती है। लेकिन इसके बावजूद प्याज आम जनता का रुलाता रहता है। कुछ इस बार भी ऐसा ही होता लग रहा है।


इस बार प्याज के दाम बढ़ने की वजह

दरअसल कर्नाटक, आंध्र, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से इस समय खरीफ के प्याज की उपज बाजार में आती है। लेकिन इन सभी राज्यों में भारी बारिश के चलते 50 फीसदी फसल खराब हो गई। साथ ही भारी बारिश ने महाराष्ट्र में प्याज के पुराने स्टाक की क्वालिटी पर भी असर डाला। इसके इनकी कीमतों में बढोतरी शुरू हो गई है।


15 दिनों में दोगुनी से ज्यादा हो गईं कीमतें

महाराष्ट्र के नासिक में लासलगांव में देश की सबसे प्याज की मंडी है। यहां पिछले 15 दिनों में प्याज के दामों में दोगुने से ज्यादा की बढोतरी हुई है। जो प्यार अगस्त के आखिर तक 1200 रुपए प्रति क्विंटल था। वो अब 3200 रुपए प्रति क्विंटल हो चुका है। इसका असर खुदरा बाजार में भी नजर आ रहा है।


अब नई फसल कब आएगी

प्याज की नई फसल अब नवंबर में बाजार में आएगी। ये महाराष्ट्र में पैदा होने वाले प्याज की होगी लेकिन इस पर भी बारिश का असर पड़ा है लेकिन इस फसल के आने से बाजार में प्याज की कीमतों में कमी आ सकती है।


सालभर में कितनी बार होती है प्याज 

रबी और खरीफ दोनों में प्याज को बोया जाता है। महाराष्ट्र, गुजराज, कर्नाटक में ये फसल मई और नवंबर तक तैयार हो जाती है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, आंध्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बंगाल में ये फसल इसके आगे-पीछे तैयार होती है।


कब-कब प्याज की कीमतों ने रुलाया

1980 में पहली बार प्याज की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखी गई। प्याज आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गया था। 1998 में एक बार फिर प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी। दिल्ली में इसकी कीमतें राजनीतिक मुद्दा बन गई।

2010 में प्याज की कीमतें फिर बढ़ी। 3 साल बाद 2013 में प्याज कई जगहों पर 150 रुपए किलो तक बिका। 2015 में प्याज की कीमतों ने एक बार फिर लोगों को रुलाया। इसके अलावा तकरीबन हर साल सितंबर अक्टूबर में प्याज की कीमतें बढ़ जाती हैं।

और भी वजहें हो जाती हैं दाम बढ़ने की

बारिश और सूखा अगर वजह होती है तो बाढ़ से असर पड़ता है लेकिन बड़ा असर प्याज की गैरकानूनी तरीके से होर्डिंग होती है। हर साल त्योहारी सीजन से पहले जमाखोर प्याज की जमाखोरी करने लगते हैं। जिसकी वजह से प्याज की कीमतें बढ़ जाती हैं।


कैसे चलता है प्याज की बुआई और बाजार में आने का साइकल

भारत में प्याज की खेती के तीन सीजन है। पहला खरीफ, दूसरा खरीफ के बाद और तीसरा रबी सीजन। खरीफ सीजन में प्याज की बुआई जुलाई-अगस्त महीने में की जाती है। खरीफ सीजन में बोई गई प्याज की फसल अक्टूबर दिसंबर में मार्केट में आती है।

प्याज का दूसरे सीजन में बुआई अक्टूबर नवंबर में की जाती है। इनकी कटाई जनवरी मार्च में होती है। प्याज की तीसरी फसल रबी फसल है। इसमें दिसंबर जनवरी में बुआई होती है और फसल की कटाई मार्च से लेकर मई तक होती है। एक आंकड़े के मुताबिक प्याज के कुल उत्पादन का 65 फीसदी रबी सीजन में होती है।

प्याज की बुआई और उसके मार्केट में आने के इस चक्र में मई के बाद प्याज की अगली फसल अक्टूबर में आती है। इस बीच अगस्त सितंबर महीने में प्याज की आवक काफी कम हो जाती है। इन महीनों में प्याज के आवक में कमी की वजह से कीमतें बढ़ जाती हैं। नई फसल आने में नवंबर महीने तक का टाइम लग जाता है। इस दौरान प्याज की कीमतें आसमान छून लगती हैं।

स्टोरेज में मुश्किल से भी बढ़ती हैं कीमतें

प्याज के उचित स्टोरेज से उसकी कीमतों पर अंकुश रखा जा सकता है। लेकिन भारत में प्याज के भंडारण में दिक्कते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में सिर्फ 2 फीसदी प्याज के भंडारण की ही क्षमता है। 98 फीसदी प्याज खुले में रखा जाता है। बारिश के मौसम में नमी की वजह से प्याज सड़ने लगता है। भंडारण की समस्या की वजह से करीब 30 से 40 फीसदी प्याज सड़ जाता है। प्याज की बर्बादी की वजह से भी इसकी कीमतें बढ़ती हैं।

मांग के हिसाब से प्याज की खपत भी ज्यादा

भारत में प्याज की खपत भी ज्यादा है। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के खानों में प्याज का इस्तेमाल होता है। भारत सरकार के एक आंकड़े के मुताबिक भारत में प्रति हजार व्यक्ति में से 908 लोग प्याज खाते हैं। करीब 100 करोड़ से ज्यादा लोग प्याज खाते हैं। इस लिहाज से भारत में प्याज का उत्पादन कम है।


भारत में 2.3 करोड़ टन प्याज का उत्पादन होता है। इसमें 36 फीसदी प्याज महाराष्ट्र से आता है। इसके बाद मध्य प्रदेश में करीब 16 फीसदी, कर्नाटक में करीब 13 फीसदी, बिहार में 6 फीसदी और राजस्थान में 5 फीसदी प्याज का उत्पादन होता है।