Vikrant Shekhawat : Feb 12, 2023, 09:47 PM
BJP Vs JDU-RJD: बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव काफी अहम है. विश्लेषकों का कहना है कि हर जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों, बढ़ती बेरोजगारी, किसानों के अनसुलझे मुद्दों और हर शख्स के बैंक खाते में 15 लाख रुपये, प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियों, 'अच्छे दिन' और अन्य पुराने चुनावी वादों को पूरा न किए जाने के कारण सत्तारूढ़ दल को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है.बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति के आधार पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में जबकि 'ऑपरेशन लोटस' नाम देते हुए सरकार तोड़कर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में राजनीतिक जमीन हासिल करने में कामयाब रही है. महाराष्ट्र सरकार तोड़ने का उदाहरण है. हालांकि बीजेपी ने भी इसी तरह से सत्ता गंवाई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले साल अगस्त में यही रणनीति अपनाई और बिहार में भगवा पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया.भाजपा थिंक टैंक का मानना है कि जाति आधारित जनगणना से बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को बढ़त मिलेगी. इसलिए, वह जेडीयू और आरजेडी के जातीय गठबंधन में शामिल होने और उनके मूल मतदाताओं में विभाजन पैदा करने की हर संभव कोशिश कर रही है.कुर्मी-कुशवाहा जेडीयू के मूल वोटरबिहार में कुर्मी और कोइरी (कुशवाहा) के बीच जेडीयू के अपने मूल मतदाता हैं. पिछले 17 सालों से नीतीश कुमार की सरकार की बदौलत इन दोनों जातियों के लोग आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हैं. वे नीतीश कुमार के प्रति वफादार हैं. उपेंद्र कुशवाहा के हालिया विद्रोही कदम भगवा पार्टी की ओर से कुर्मी वोट बैंक में भ्रम पैदा करने की एक कोशिश हो सकती है. उपेंद्र कुशवाहा ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व का खुलकर विरोध किया और नीतीश कुमार से उन्हें प्रचार करने से बचने को कहा. साल 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव को बढ़ावा नहीं देने की सीएम नीतीश कुमार को उपेंद्र कुशवाहा की सलाह स्पष्ट संकेत था कि वह भाजपा की भाषा बोल रहे हैं.तिवारी ने बीजेपी पर बोला हमलाराजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "फिलहाल चाचा-भतीजे एकजुट हैं और बिहार में मजबूत हो रहे हैं. वहीं, भाजपा उनमें मतभेद पैदा करना चाहती है. भाजपा वास्तव में उपेंद्र कुशवाहा के माध्यम से कोइरी समुदाय के मतदाताओं को लुभाना चाहती है और जद-यू के वोट बैंक को चोट पहुंचाना चाहती है."उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जेडीयू कमजोर पड़ रही है. इसके अलावा, 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए सीएम नीतीश कुमार द्वारा तेजस्वी यादव को बढ़ावा दिए जाने से कुर्मी और कोइरी मतदाताओं को गलत संदेश जा रहा है, जो मानते हैं कि तेजस्वी यादव के बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद यादव और मुस्लिम प्रमुख समूह बन जाएंगे.कुशवाहा पर बोले नीतीश कुमारउपेंद्र कुशवाहा के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए नीतीश कुमार ने उनका नाम लिए बिना शुक्रवार को कहा था, 'वह हर दिन मीडिया में मेरे खिलाफ बयान देते हैं और मुझे अखबारों के माध्यम से पता चलता है. उनके बयान का क्या मतलब है? मेरा मानना है कि वह किसी और (बीजेपी) के साथ हैं, इसलिए उसकी भाषा बोल रहे हैं. वह कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं, हमें परवाह नहीं है."राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा, "कुर्मी और कोइरी मतदाता बिहार में वर्षों से यादव विरोधी रहे हैं. यह सच है कि कुर्मी और कोइरी अपना वोट नीतीश कुमार के नाम पर देते हैं. इसी तरह यादव मतदाता लालू प्रसाद यादव और अब तेजस्वी यादव के नाम पर अपना वोट देते हैं. अब, नीतीश कुमार 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव का प्रचार कर रहे हैं."25 फरवरी को पूर्णियां में रैली'महागठबंधन गठबंधन के सहयोगियों ने 25 फरवरी को पूर्णिया रैली की घोषणा की है, जिसमें नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव सहित सभी 7 दलों के नेता मौजूद रहेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि कुर्मी-कोइरी मतदाता मुसलमानों और यादवों के साथ समान स्थान कैसे साझा करेंगे. पूर्णिया रैली की सफलता बिहार में भाजपा को कड़ा संदेश देगी.'उन्होंने कहा, "उपेंद्र कुशवाहा प्रकरण कोइरी जाति में भ्रम पैदा कर सकता है, लेकिन हमें यह देखना होगा कि वह मतदाताओं को नीतीश कुमार से दूर करने में कैसे सक्षम हैं. उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं की प्रासंगिकता का परीक्षण तभी होगा, जब वह व्यक्तिगत रूप से उन्हें जनता से दूर करने में सक्षम होंगे. मुझे यकीन नहीं है कि वह अपनी जाति में पर्याप्त लोकप्रिय हैं या नहीं. यदि हम विश्लेषण करें, तो कुशवाहा नेताओं की संख्या हर पार्टी में मौजूद है और वे अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं. उपेंद्र कुशवाहा अपनी जाति के कुछ मतदाताओं के मन में अनिश्चितता पैदा कर सकते हैं, लेकिन सभी के लिए नहीं."'नीतीश के पास तेज दिमाग'उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के पास देश का सबसे तेज राजनीतिक दिमाग है, जो अपनी पार्टी के भीतर 'जयचंदों' का पता लगाता है और उन्हें निशाने पर लेता है. उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह इसके उदाहरण हैं.नीतीश कुमार इस समय बिहार में समाधान यात्रा कर रहे हैं और ईबीसी वोट बैंक को आकर्षित करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. ईबीसी मतदाता बिहार में राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. बिहार में उनकी अनुमानित ताकत 23 प्रतिशत है. इसलिए जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं की भूमिका और अहम हो जाती है. मांझी ने महादलित समुदाय का प्रतिनिधित्व किया, जबकि मुकेश सहनी ने खुद को 'मल्लाह का बेटा' (मछुआरा) कहा. ये दोनों नीतीश के वफादार हैं.