India TV : Sep 04, 2019, 12:24 PM
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन को एक और सफलता मिली है। बुधवार तड़के 3.42 बजे चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर ने डि-ऑर्बिट की प्रक्रिया दूसरी और आखिरी बार सफलतापूर्वक पूरी की। अब यह चांद के दक्षिणी ध्रुव की ओर अंतिम कक्षा में पहुंच गया है। विक्रम की अब चंद्रमा से न्यूनतम 35 किमी और अधिकतम 101 किमी दूरी है। विक्रम यहीं से चांद पर 7 सितंबर को उतरेगा। इसरो ने कहा कि इस ऑपरेशन के साथ ही विक्रम के चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए जरूरी कक्षा हासिल कर ली गई है। ऑर्बिटर और लैंडर सही काम कर रहे हैं।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बयान में कहा, ‘‘इस प्रक्रिया के साथ ही यान उस कक्षा में पहुंच गया, जो लैंडर ‘विक्रम’ को चंद्रमा की सतह की ओर नीचे ले जाने के लिए आवश्यक है।’’ इसरो ने बताया कि चंद्रयान को निचली कक्षा में ले जाने का कार्य बुधवार तड़के करीब पौने चार बजे किया गया। इस प्रक्रिया में नौ सेकंड का समय लगा। इसके लिए प्रणोदन प्रणाली का प्रयोग किया गया। इससे पहले यान को चंद्रमा की निचली कक्षा में उतारने का पहला चरण मंगलवार को पूरा किया गया था। यह प्रक्रिया चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर ‘विक्रम’ के अलग होने के एक दिन बाद संपन्न की गई। चंद्रयान दो यान चंद्रमा की कक्षा में 96 किलोमीटर पेरिजी (सबसे नजदीकी बिन्दु) और 125 किलोमीटर अपोजी (सबसे दूरस्थ बिन्दु) पर है जबकि विक्रम लैंडर 35 किलोमीटर पेरिजी और 101 किलोमीटर अपोजी की कक्षा में है। एजेंसी ने कहा, ‘‘ऑर्बिटर और लैंडर दोनों पूरी तरह ठीक हैं।’’ एजेंसी ने बताया कि ‘विक्रम’ के सात सितंबर को देर रात एक बज कर 30 मिनट से दो बज कर 30 मिनट के बीच चंद्रमा की सतह पर उतरने की उम्मीद है। इसरो के अध्यक्ष के.सिवन ने कहा कि चंद्रमा पर लैंडर के उतरने का क्षण ‘दिल की धड़कनों को रोकने वाला’ होगा क्योंकि एजेंसी ने पहले ऐसा कभी नहीं किया है। चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद ‘विक्रम’ से रोवर ‘प्रज्ञान’ सात सितंबर की सुबह पांच बज कर 30 मिनट से छह बज कर 30 मिनट के बीच निकलेगा और एक चंद्र दिवस की अवधि के दौरान चंद्रमा की सतह पर रहकर परीक्षण करेगा। चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर है। लैंडर का भी मिशन जीवनकाल एक चंद्र दिवस ही होगा जबकि ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। उल्लेखनीय है कि 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को जीएसएलवी मैक-3 एम1 रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया था। इस योजना पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है। चंद्रयान-2 उपग्रह ने धरती की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की तरफ अपनी यात्रा 14 अगस्त को इसरो द्वारा ‘ट्रांस लूनर इन्सर्शन’ नाम की प्रक्रिया को अंजाम दिये जाने के बाद शुरू की थी। यह प्रक्रिया अंतरिक्ष यान को ‘लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्ट्री’ में पहुंचाने के लिये अपनाई गई। अंतरिक्ष यान 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक अहम मील का पत्थर बन गया। इसरो ने बताया कि यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से ‘ऑर्बिटर’ और ‘लैंडर’ की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। इस काम में ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद ली जा रही है।चंद्रयान-2 के ‘ऑर्बिटर’ में आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करेंगे और पृथ्वी के इकलौते उपग्रह के बाह्य परिमंडल का अध्ययन करेंगे। ‘लैंडर’ के साथ तीन उपकरण हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। वहीं, ‘रोवर’ के साथ दो उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह के बारे में जानकारी जुटाएंगे। इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-2 मिशन का उद्देश्य ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ और चंद्रमा की सतह पर घूमने सहित शुरू से अंत तक चंद्र मिशन क्षमता के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन करना है। इस सफल लैंडिंग के साथ ही भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद ऐसा चौथा देश बन जाएगा जो चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल होगा।