कर्नाटक / अब गगनयान मिशन हमारी प्राथमिकता लैंडर से नहीं हो पा रहा है संपर्क: के.सिवन

इसरो चीफ के सिवन ने कहा कि चंद्रयान-2 के लैंडर से संपर्क नहीं हो पा रहा है। ऑर्बिटर काम कर रहा है। ऑर्बिटर में 8 इंस्ट्रूमेंट्स हैं और प्रत्येक इंस्ट्रूमेंट अपना काम कर रहा है। अब हमारी अगली प्राथमिकता गगनयान मिशन है। गौरतलब है, शनिवार से चांद पर रात शुरू हो जाएगी और अंधकार छाने के साथ ही 'चंद्रयान-2 के लैंडर 'विक्रम से सपंर्क की सभी संभावनाएं अब लगभग खत्म हो गई।

ANI : Sep 21, 2019, 11:22 AM
इसरो प्रमुख के सिवन ने कहा कि चंद्रयान -2 ऑर्बिटर बहुत अच्छा कर रहा है। ऑर्बिटर में 8 इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं और प्रत्येक इंस्ट्रूमेंट वही करता है जो उसको करना होता है। लैंडर के साथ हम संचार स्थापित करने में सक्षम नहीं हैं। हमारी अगली प्राथमिकता गगनयान मिशन है।

चांद को रात लेगी आगोश में, 'विक्रम से संपर्क की संभावना लगभग खत्म

शनिवार से चांद पर रात शुरू हो जाएगी और अंधकार छाने के साथ ही 'चंद्रयान-2 के लैंडर 'विक्रम से सपंर्क की सभी संभावनाएं अब लगभग खत्म हो गई। लैंडर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर को तड़के 'सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहने पर चांद पर गिरे लैंडर का जीवनकाल कल खत्म हो जाएगा क्योंकि सात सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक चांद का एक दिन पूरा होने के बाद शनिवार तड़के पृथ्वी के इस प्राकृतिक उपग्रह को रात अपने आगोश में ले लेगी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन सात सितंबर (शनिवार) से ही लैंडर से संपर्क करने के लिए सभी प्रयास करता रहा है, लेकिन अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिल पाई है और कल चांद पर रात शुरू होने के साथ ही 'विक्रम की कार्य अवधि पूरी हो जाएगी। ऐसा कहा गया था कि 'विक्रम की हार्ड लैंडिंग के कारण जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया।

इसरो ने आठ सितंबर को कहा था कि 'चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल तस्वीर ली है, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद इससे अब तक संपर्क नहीं हो पाया। 'विक्रम के भीतर ही रोवर 'प्रज्ञान बंद है जिसे चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग को अंजाम देना था, लेकिन लैंडर के गिरने और संपर्क टूट जाने के कारण ऐसा नहीं हो पाया।

कुल 978 करोड़ रुपये की लागत वाला 3,840 किलोग्राम वजनी 'चंद्रयान-2 गत 22 जुलाई को भारत के सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क ।।।-एम 1 के जरिए धरती से चांद के लिए रवाना हुआ था। इसमें उपग्रह की लागत 603 करोड़ रुपये और प्रक्षेपण यान की लागत 375 करोड़ रुपये थी।

भारत को भले ही चांद पर लैंडर की 'सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता नहीं मिल पाई, लेकिन ऑर्बिटर शान से चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है। इसका जीवनकाल एक साल निर्धारित किया गया था, लेकिन बाद में इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि इसमें इतना अतिरिक्त ईंधन है कि यह लगभग सात साल तक काम कर सकता है।

यदि 'सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलती तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता।