Rajasthan Elections / वसुंधरा-गहलोत के करीबी बेटिकट, दोनों की पार्टियों को नए विकल्प की तलाश!

राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने सभी उम्मीदवार उतार दिए हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ऐसे कद्दावर नेता हैं, जिनकी धुरी पर पिछले करीब ढाई दशक से राजस्थान की सियासत चलती आ रही है. प्रदेश में परिपाटी के मुताबिक हर पांच साल पर सत्ता बदलने का रिवाज रहा है, लेकिन गहलोत और वसंधरा का विकल्प कोई नहीं बन पाया. इस बार दोनों का सियासी वर्चस्व टूटता हुआ दिख रहा है, जिसके कई संकेत

Vikrant Shekhawat : Nov 06, 2023, 08:45 PM
Rajasthan Elections: राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने सभी उम्मीदवार उतार दिए हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ऐसे कद्दावर नेता हैं, जिनकी धुरी पर पिछले करीब ढाई दशक से राजस्थान की सियासत चलती आ रही है. प्रदेश में परिपाटी के मुताबिक हर पांच साल पर सत्ता बदलने का रिवाज रहा है, लेकिन गहलोत और वसंधरा का विकल्प कोई नहीं बन पाया. इस बार दोनों का सियासी वर्चस्व टूटता हुआ दिख रहा है, जिसके कई संकेत देखने को मिल रहे हैं.

बीजेपी ने वसुंधरा राजे के कई करीबी नेताओं को मैदान में उतारा है तो कई मजबूत सिपहसलारों के बेटिकट कर दिया है. इसी तरह से कांग्रेस नेतृत्व ने भी सीएम गहलोत के कई विश्वस्त नेताओं के टिकट काट दिया है. इस तरह कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने यह संदेश दे दिया है कि आलाकमान ही सर्वोपरि है. ऐसे में देखना है कि चुनाव के बाद क्या वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत कैसे अपने सियासी दबदबे को बनाए रखते हैं?

गहलोत के सिपहसलारों के कतरे पर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही मंत्री शांति धारीवाल को तमाम विरोधों के बाद भी टिकट दिलवाने में कामयाब रहे हों, लेकिन महेश जोशी और महेंद्र राठौड़ जैसे मजबूत करीबी नेताओं को उम्मीदवार नहीं बनवा सके. हवामहल सीट से विधायक और गहलोत सरकार में मंत्री महेश जोशी का टिकट काटकर कांग्रेस ने जिला अध्यक्ष आरआर तिवाड़ी को प्रत्याशी बनाया है. अजमेर सीट से टिकट मांग रहे महेंद्र राठौड़ को भी कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया. यह दोनों ही नेता गहलोत की कुर्सी बचाने के लिए कांग्रेस हाईकमान के आदेशों को चुनौती देने के लिए बगावत की पर खड़े हो गए थे, जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा है.

कांग्रेस ने सीएम गहलोत के विशेषाधिकारी लोकेश शर्मा को भी टिकट नहीं दिया गया है. कृषि मंत्री लालचंद कटारिया के चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद सचिन पायलट के खास अभिषेक चौधरी को टिकट दिया गया है. इसके अलावा पूर्व विधायक अशोक तंवर को गहलोत ने चाकसू सीट से फोन करके चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी थी, लेकिन पार्टी ने पायलट गुट के वेदप्रकाश सोलंकी को दोबारा से टिकट दिया है. गहलोत के करीबी राजीव अरोड़ा मालवीय नगर से टिकट मांग रहे थे, लेकिन अर्चना शर्मा को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है.

जोधपुर के सूरसागर सीट से सूर्यकांता व्यास बीजेपी से है, लेकिन पार्टी इस बार उन्हें टिकट नही दिया. गहलोत तक कांग्रेस से व्यास को प्रत्याशी बनाने की वकालत कर रहे थे, लेकिन टिकट नहीं दिला सके. इतना ही नहीं सूरसागर सीट से गहलोत के एक और करीबी पूर्व महापौर रामेश्वर दाधीच टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी उन्हें भी प्रत्याशी नहीं बनाया. इसके अलावा गहलोत चाहते थे कि निर्दलीय और बसपा से आए विधायकों के टिकट दिया जाए, लेकिन पार्टी ने उसमें से भी कई नेताओं के प्रत्याशी नहीं बनाया है.

पायलट का बना पावर बैलेंस

पायलट के करीबी नेताओं के जिस तरह से कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया है तो दूसरी पर मुख्यमंत्री के खिलाफ बयानबाजी करने वाले पायलट के करीबी वेदप्रकाश सोलंकी को टिकट देकर संदेश दिया कि सचिन पायलट पार्टी नेतृत्व की गुड बुक में है. इतना ही नहीं पायलट के समर्थकों के जिस तरह से सियासी अहमियत दी गई है और उसके लिए गहलोत के करीबी नेताओं को टिकट के लिए मायूस होना पड़ा है, उसके राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. कांग्रेस हाईकमान राजस्थान की सियासत को पूरी तरह से गहलोत के ऊपर नहीं छोड़ रही है बल्कि उनके समर्थकों को टिकट न देकर पायलट के साथ पावर बैलेंस बनाने की रणनीति अपनाई है.

वसुंधरा राजे के कई करीबी बेटिकट

राजस्थान में बीजेपी की सियासत में वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द पिछले ढाई दशक से सिमटी हुई, लेकिन पहली बार है कि जब बीजेपी ने तो उनको मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है और न ही उनके सभी करीबी नेताओं को टिकट मिल सका है. वसुंधरा राजे अपने कई करीबी विधायकों को टिकट दिलाने में जरूर सफल रही है, लेकिन खास सिपहसालार को बेटिकट कर दिया है. पूर्व मंत्री युनूस खान, अशोक परनामी, राजपाल सिंह शेखावत और अशोक लाहोटी जैसे वसुंधरा राजे के राइट हैंड माने जाने वाले नेताओं को बीजेपी ने टिकट इस बार नहीं दिया है.

वसुंधरा राजे के लिए सियासी तौर पर यह बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह वो नेता हैं जो खुलकर उनकी पैरवी करते रहे हैं. ऐसे में पार्टी ने उनके टिकट काटकर यह संदेश दे दिया है कि हाईकमान ही सर्वोपरि है. हालांकि, युनूस खान डीडवाना सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जबकि अशोक लाहोटी ने सांगानेर से भाजपा प्रत्याशी भजनलाल शर्मा के नामांकन दाखिल के दौरान मौजूद रहकर यह बता दिया है कि अब पार्टी के साथ है. ऐसे में सभी की निगाहे राजपाल सिंह शेखावत और अशोक परनामी पर टिकी है.

हालांकि, यह कहना गलत हो कि सिर्फ इन चार नेताओं के टिकट कटने से वसुंधरा राजे गुट को धक्का लगा है. बीजेपी की लिस्ट में पार्टी नेतृत्व ने वसुंधरा राजे के उन समर्थकों को तवज्जों दी है, तो वसुंधरा के साथ-साथ पार्टी संगठन के साथ बैलेंस बनाए हुए थे. इसके अलावा वसुंधरा के समर्थक विधायकों में एक लंबी फेहरिश्त है, जिन्हें पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है. बीजेपी ने उन नेताओं को टिकट नहीं दिया है, जो सिर्फ वसुंधरा के प्रति निष्ठा रखते थे और पार्टी संगठन को तवज्जे नहीं देते थे. ऐसे में बीजेपी ने हाईकमान ने उन्हें बेटिकट किया है तो दूसरी तरफ सीएम चेहरे को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं की है.

बीजेपी क्या नया विकल्प तलाश रही

राजस्थान की सियासत में बीजेपी ने वसुंधरा राजे को तो कांग्रेस ने वसुंधरा राजे को उनकी परंपरागत सीट से प्रत्याशी बनाया है, लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. राजस्थान की सियासी हालत को देखते हुए कांग्रेस जिस तरह से मौजूदा राजनीति को गहलोत के नजरिए से देख रही है तो भविष्य का नेता सचिन पायलट को मान रही है. इसी तरह से बीजेपी भी मौजूदा समय में वसुंधरा राजे को इग्नोर करके आगे नहीं बढ़ना चाहती, जिसके चलते उन्हें एक हद तक खुली छूटी दी है. वसुंधरा राजे के कुछ करीबी नेताओं को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन मजबूत सिपहसलारों का टिकट कर सियासी संदेश देने की कवायद की है. इस तरह कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही भविष्य की राजनीति को देखते हुए उनके विकल्प को भी तलाशने की कोशिश में जुटी हैं?