News18 : Jul 18, 2020, 04:24 PM
असम। प्रकृति (Nature) निर्दयी रही है, इसका गुस्सा पूर्वोत्तर राज्य असम (Northeastern state of Assam) में रहने वालों के घरों और जमीन को लगातार छीन रहा और उन्हें भारत के जलवायु-शरणार्थियों (climate-refugees) में बदल रहा है। लेकिन यह सिर्फ प्रकृति की सनक नहीं है जिसने कई ऐसे भूमिहीन व्यक्तियों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है, कोरोना वायरस संक्रमण (coronavirus contagion) रोकने के लिए लगाया गया लॉकडाउन (lockdown) अधिकांश परिवारों को बेहद निराशा और असुरक्षा की भावना की ओर ले जा रहा है।
इनमें सबसे अधिक प्रभावित लोग ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के चार (नदी द्वीप या मध्य-चैनल बार) पर रहते हैं और विशेष रूप से इसमें वे लोग हैं, जिनकी पहचान लगातार संदेह के घेरे में है। और जिन्हें हाल ही में कराए गए कई नागरिकता परीक्षणों (citizenship tests) में असफल होने के चलते बांग्लादेशी मूल (Bangladeshi origin) का माना जाता है। ये उन 13 लाख से अधिक लोगों में से हैं, जो बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। इनमें से कई अपने घरों से उखाड़ दिए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद इनकी दुर्दशा की कथा दूसरों से बहुत अलग है।NRC में जगह न पाए लोगों पर लॉकडाउन और बाढ़ की दोहरी मारबरपेटा में पंपरा चार के 47 वर्षीय गजिबुर का मामला लें। वह जबरदस्त गरीबी की स्थिति में हैं। वह लोगों की दया पर जीवित रहते हैं। ब्रह्मपुत्र की बाढ़ में अपने सामान और अपने मवेशियों और बकरियों को खोने के बाद अपने वकील की फीस चुकाने और NRC की अंतिम लिस्ट तैयार होने से पहले बहुत कम समय में आयोजित की गई NRC की सुनवाई में शामिल होने के लिए यात्रा का किराया उन्हें चाहिए। वह कहते हैं, "अब सिर्फ ईश्वर ही मेरे जैसे लोगों की मदद कर सकता है।" वह असम में 20 लाख से अधिक लोगों में से एक है, जो नागरिकता के लिए अपने दावे के दस्तावेजी सबूतों को पेश कर पाने में असफल होने के बाद राज्यविहीन होने की संभावना देश रहे हैं।पहले लॉकडाउन बना बाधा, अब बाढ़ ने किया तबाहगजिबुर के परिवार के सभी सात सदस्यों को अंतिम सूची से बाहर कर दिया गया है और वह अपने मामले के बचाव के लिए अतिरिक्त "कागज" या दस्तावेजों के इस मामले में काम करने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन उसकी अचानक बीमारी परिवार के लिए एक बड़ा झटका बन गई। गजिबुर की तरह, बारपेटा में चार के निवासी ज्यादातर बंगाली भाषी मुस्लिम हैं और माना जाता है कि वे बांग्लादेश की सीमा पार कर आए अवैध प्रवासी हैं, हालांकि उनमें से ज्यादातर पीढ़ियों से यहां के निवासी हैं।कोरोना वायरस संकट और बढ़ती बाढ़ से उत्पन्न वर्तमान स्थिति ने इसे और बदतर बना दिया है, क्योंकि इन बहिष्कृत परिवारों को हर दिन एक नारकीय अनुभव जीना पड़ता है। फ़ोरहाद भुइयन, एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जिन्होंने बारपेटा में ताराबारी, कोल्टोली, झतरबीया, मोरीचाकंडी और लखीपुर जैसे विभिन्न इलाकों में स्वयंसेवी राहत कार्यों की एक श्रृंखला का नेतृत्व किया है। वे इन आधे पानी में डूबे आवासों के निवासियों के जीवन की एक साफ-साफ तस्वीर पेश करते है। भुइयन कहते हैं, "सबसे पहले, लॉकडाउन ने उन्हें अपने कृषि उत्पादन- धान, सब्जियां, गन्ना और जूट - को बाजार में ले जाने से रोका और अब बाढ़ ने सब कुछ बहा दिया है।" वे यह भी कहते हैं कि इनमें से कई परिवार पहले से ही नागरिकता परीक्षण के दबाव तले दबे हुए हैं और उन्हें इससे गुजरना ही पड़ रहा है।
इनमें सबसे अधिक प्रभावित लोग ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के चार (नदी द्वीप या मध्य-चैनल बार) पर रहते हैं और विशेष रूप से इसमें वे लोग हैं, जिनकी पहचान लगातार संदेह के घेरे में है। और जिन्हें हाल ही में कराए गए कई नागरिकता परीक्षणों (citizenship tests) में असफल होने के चलते बांग्लादेशी मूल (Bangladeshi origin) का माना जाता है। ये उन 13 लाख से अधिक लोगों में से हैं, जो बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। इनमें से कई अपने घरों से उखाड़ दिए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद इनकी दुर्दशा की कथा दूसरों से बहुत अलग है।NRC में जगह न पाए लोगों पर लॉकडाउन और बाढ़ की दोहरी मारबरपेटा में पंपरा चार के 47 वर्षीय गजिबुर का मामला लें। वह जबरदस्त गरीबी की स्थिति में हैं। वह लोगों की दया पर जीवित रहते हैं। ब्रह्मपुत्र की बाढ़ में अपने सामान और अपने मवेशियों और बकरियों को खोने के बाद अपने वकील की फीस चुकाने और NRC की अंतिम लिस्ट तैयार होने से पहले बहुत कम समय में आयोजित की गई NRC की सुनवाई में शामिल होने के लिए यात्रा का किराया उन्हें चाहिए। वह कहते हैं, "अब सिर्फ ईश्वर ही मेरे जैसे लोगों की मदद कर सकता है।" वह असम में 20 लाख से अधिक लोगों में से एक है, जो नागरिकता के लिए अपने दावे के दस्तावेजी सबूतों को पेश कर पाने में असफल होने के बाद राज्यविहीन होने की संभावना देश रहे हैं।पहले लॉकडाउन बना बाधा, अब बाढ़ ने किया तबाहगजिबुर के परिवार के सभी सात सदस्यों को अंतिम सूची से बाहर कर दिया गया है और वह अपने मामले के बचाव के लिए अतिरिक्त "कागज" या दस्तावेजों के इस मामले में काम करने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन उसकी अचानक बीमारी परिवार के लिए एक बड़ा झटका बन गई। गजिबुर की तरह, बारपेटा में चार के निवासी ज्यादातर बंगाली भाषी मुस्लिम हैं और माना जाता है कि वे बांग्लादेश की सीमा पार कर आए अवैध प्रवासी हैं, हालांकि उनमें से ज्यादातर पीढ़ियों से यहां के निवासी हैं।कोरोना वायरस संकट और बढ़ती बाढ़ से उत्पन्न वर्तमान स्थिति ने इसे और बदतर बना दिया है, क्योंकि इन बहिष्कृत परिवारों को हर दिन एक नारकीय अनुभव जीना पड़ता है। फ़ोरहाद भुइयन, एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जिन्होंने बारपेटा में ताराबारी, कोल्टोली, झतरबीया, मोरीचाकंडी और लखीपुर जैसे विभिन्न इलाकों में स्वयंसेवी राहत कार्यों की एक श्रृंखला का नेतृत्व किया है। वे इन आधे पानी में डूबे आवासों के निवासियों के जीवन की एक साफ-साफ तस्वीर पेश करते है। भुइयन कहते हैं, "सबसे पहले, लॉकडाउन ने उन्हें अपने कृषि उत्पादन- धान, सब्जियां, गन्ना और जूट - को बाजार में ले जाने से रोका और अब बाढ़ ने सब कुछ बहा दिया है।" वे यह भी कहते हैं कि इनमें से कई परिवार पहले से ही नागरिकता परीक्षण के दबाव तले दबे हुए हैं और उन्हें इससे गुजरना ही पड़ रहा है।