Vikrant Shekhawat : Dec 05, 2020, 09:25 AM
नई दिल्ली। आईपीसी और शरिया कानून की धारा मुस्लिम पुरुषों को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति देती है जिसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि एक समुदाय को शादी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जबकि अन्य धर्मों में, बहुविवाह पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसके साथ ही याचिका में अनुरोध किया गया है कि आईपीसी की धारा -494 और शरिया कानून की धारा -2 के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित किया जाए जिसके तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने अर्जी दाखिल करते हुए कहा कि मुस्लिम पर्नसल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट 1937 और आईपीसी की धारा 494 में मुस्लिम पुरुषों को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति है, जो असंवैधानिक है । याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि इन प्रावधानों को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित किया जाए।याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि अगर एक हिंदू, पारसी और ईसाई व्यक्ति, मुस्लिम समुदाय को छोड़कर, एक दूसरी पत्नी के रूप में शादी करते हैं, तो उन्हें आईपीसी की धारा 494 के तहत दोषी माना जाता है। याचिका में कहा गया है कि अगर इस तरह से देखा जाए तो धर्म के नाम पर दूसरी शादी की अनुमति देना आईपीसी के प्रावधानों में भेदभाव है। साथ ही, ऐसा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, समानता का अधिकार और अनुच्छेद 15 (धर्म और जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं) का सीधा उल्लंघन है।सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आईपीसी की धारा 494 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति पत्नी होने के बावजूद दूसरी शादी करता है, तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को सात साल की कैद होती है। सजा दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने अर्जी दाखिल करते हुए कहा कि मुस्लिम पर्नसल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट 1937 और आईपीसी की धारा 494 में मुस्लिम पुरुषों को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति है, जो असंवैधानिक है । याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि इन प्रावधानों को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित किया जाए।याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि अगर एक हिंदू, पारसी और ईसाई व्यक्ति, मुस्लिम समुदाय को छोड़कर, एक दूसरी पत्नी के रूप में शादी करते हैं, तो उन्हें आईपीसी की धारा 494 के तहत दोषी माना जाता है। याचिका में कहा गया है कि अगर इस तरह से देखा जाए तो धर्म के नाम पर दूसरी शादी की अनुमति देना आईपीसी के प्रावधानों में भेदभाव है। साथ ही, ऐसा प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, समानता का अधिकार और अनुच्छेद 15 (धर्म और जाति आदि के आधार पर भेदभाव नहीं) का सीधा उल्लंघन है।सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आईपीसी की धारा 494 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति पत्नी होने के बावजूद दूसरी शादी करता है, तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को सात साल की कैद होती है। सजा दी जा सकती है।