उम्मीद की मशाल / अशिक्षा के अंधेरे में ‘दीदी’ ने जलाया शिक्षा का दीया, आर्थिक सहयोग मिला तो बनाई लाइब्रेरी

शिक्षा पर हर किसी का अधिकार है, लेकिन यह उन बच्चों से काफी दूर थी जिनके माता-पिता झुग्गियों में रहकर किसी तरह परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। ‘दीदी’ के ऊपर भी गरीबी का साया था। पढ़ाई तो दूर, उनके सामने पेट भरने तक के लाले थे। बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बुलंद हौसले के साथ आगे बढ़ती चली गईं। यह उसी का नतीजा है कि आज उन्होंने अशिक्षा के अंधेरे में शिक्षा का दीया जला दिया है।

Vikrant Shekhawat : May 02, 2022, 08:59 AM
शिक्षा पर हर किसी का अधिकार है, लेकिन यह उन बच्चों से काफी दूर थी जिनके माता-पिता झुग्गियों में रहकर किसी तरह परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। ‘दीदी’ के ऊपर भी गरीबी का साया था।   


पढ़ाई तो दूर, उनके सामने पेट भरने तक के लाले थे। बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बुलंद हौसले के साथ आगे बढ़ती चली गईं। यह उसी का नतीजा है कि आज उन्होंने अशिक्षा के अंधेरे में शिक्षा का दीया जला दिया है। उन्होंने देश का भविष्य उज्ज्वल करने की ठानी है। बात हो रही है झुग्गियों में पली-बढ़ी नीतू सिंह की, जिन्हें कुछ बच्चे ‘टीचर जी’ कहते हैं तो कुछ ‘दीदी’। 


उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर की मूल निवासी नीतू सिंह बताती हैं कि वे झुग्गी में ही पली-बढ़ी हैं। माता-पिता मजदूरी करते थे और पूरा बचपन गरीबी में गुजरा। कई बार खाने को भी नहीं मिलता था, तो भीख मांगने की नौबत आ गई, लेकिन जब देखा कि भीख मांगने वाले बच्चों को गलत प्रवृति की तरफ ढकेला जाता है, उनसे गलत काम कराया जाता है तो उसी दिन ठान लिया कि अब कुछ अलग करना है। झुग्गी के बच्चों को गलत प्रवृति की तरफ धकेलने वाले लोगों के चंगुल से बचाऊंगी।


 इस दौरान नीतू ने पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से एमए और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से बीएड किया। इसके बाद वह झुग्गियों में पढ़ाने पहुंचीं और सबकी पाठशाला के नाम से झुग्गी बच्चों को समर्पित कर दी, लेकिन स्थानीय लोगों ने सबकी पाठशाला को हटाने की चेतावनी दी। यहां तक कहा कि हिंदू-मुस्लिम के बच्चों को साथ में नहीं पढ़ाना है।


आर्थिक सहयोग मिला तो बनाई लाइब्रेरी

नीतू सिंह कहती हैं कि एक बार हिम्मत करके बच्चों के माता-पिता से बात की। किसी के पास आधार कार्ड नहीं था। परेशानी यह भी थी कि बच्चे स्कूल जाना चाहते थे, लेकिन माहौल नहीं मिल पा रहा था। बच्चों को शिक्षक से डर लगता है कि उन्हें कुछ आता नहीं है। फिर उन्हें जागरूक किया और 250 से ज्यादा बच्चों को सबकी पाठशाला में निशुल्क पढ़ाया। 


रोटरी क्लब ने सबकी पाठशाला चलाने के लिए एक लाख रुपया पुरस्कार दिया, तो दिल्ली महिला आयोग ने 25 हजार रुपये दिए। सेवानिवृत्त उषा चथरथ का भी सहयोग मिला। आर्थिक सहयोग मिलने के बाद झुग्गी में ही छोटा सा कॉटेज बनाकर उसी में लाइब्रेरी की व्यवस्था की गई है। इस पाठशाला के बच्चे तिलक मार्ग स्थित अटल आदर्श विद्यालय, बापा नगर कन्या विद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं, जो बच्चे स्कूल नहीं जाते थे उनका भी दाखिला कराने का प्रयास किया जाता है।