US-China Tariff War / अमेरिका टैरिफ के आगे झुका ड्रैगन, कहा- ट्रंप रिस्पेक्ट दिखाएं तो बातचीत के लिए हैं तैयार

डोनाल्ड ट्रंप के तीखे रुख के बाद चीन ने नरमी के संकेत दिए हैं। अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर 245% टैरिफ लगाया, जबकि चीन ने दुर्लभ खनिजों का निर्यात रोका। अब बातचीत की संभावना दिखी है, लेकिन अमेरिका की प्राथमिकता फिलहाल अन्य 14 देशों से समझौता है।

US-China Tariff War: अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे टैरिफ युद्ध में अब एक नई करवट देखने को मिल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आक्रामक रुख के सामने चीन ने कुछ नरमी दिखाई है। इसके चलते दोनों आर्थिक महाशक्तियों के बीच जमी बर्फ पिघलने के संकेत मिल रहे हैं। ताजा घटनाक्रम में अमेरिका ने जहां चीनी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर 245 फीसदी कर दिया, वहीं चीन ने प्रतिक्रिया में बातचीत की इच्छा जताई है—हालांकि अपनी कुछ शर्तों के साथ।

चीन की शर्तें: सम्मान और स्पष्टता जरूरी

न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के अनुसार, चीन ने अमेरिका के साथ फिर से व्यापार वार्ता शुरू करने की संभावनाएं जताई हैं, लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्तें रखी हैं। इन शर्तों में सबसे अहम है—अमेरिका द्वारा चीन के प्रति सम्मानपूर्ण रवैया अपनाना। इसके अलावा, चीन ने अमेरिकी नीति में अधिक स्थिरता, ताइवान से जुड़े मुद्दों पर स्पष्टता और प्रतिबंधों में नरमी की मांग की है।

एक सूत्र के अनुसार, चीन ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि यदि ट्रंप बातचीत को समर्थन देते हैं, तो अमेरिका को एक विशेष संपर्क व्यक्ति नियुक्त करना चाहिए जो वार्ताओं का नेतृत्व करे और शी जिनपिंग तथा ट्रंप के बीच संभावित समझौते की रूपरेखा तय कर सके।

दुर्लभ खनिजों पर चीन की रणनीतिक चाल

वहीं ट्रंप सरकार की टैरिफ नीति के जवाब में चीन ने भी रणनीतिक रूप से पलटवार किया है। चीन ने अमेरिका पर 125 फीसदी टैरिफ तो लगाया ही, साथ ही दुर्लभ खनिजों और चुम्बकों के निर्यात पर रोक भी लगा दी है। ये वे खनिज हैं जिनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और रक्षा उत्पादों के निर्माण में व्यापक रूप से होता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन खनिजों की आपूर्ति पर चीन का लगभग एकाधिकार है, इसलिए इसका असर अमेरिका और अन्य देशों की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर गंभीर हो सकता है। यदि टैरिफ वॉर लंबा खिंचता है, तो वैश्विक उत्पादन श्रृंखला पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।

बातचीत के लिए तैयार नहीं अमेरिका?

हालांकि, चीन की नरमी के संकेतों के बावजूद अमेरिका की ओर से फिलहाल कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका चीन से अलग होकर अन्य 14 देशों के साथ व्यापार वार्ताओं को प्राथमिकता दे रहा है। उन्होंने दो टूक कहा, “आइए चीन को अलग रखें”।

वहीं व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि चीन को अमेरिका के साथ डील करने की जरूरत है, अमेरिका पर कोई दबाव नहीं है। उन्होंने कहा, “गेंद अब चीन के पाले में है”।

क्या बदलेगा समीकरण?

इन बयानों से यह तो साफ हो जाता है कि अमेरिका फिलहाल चीन पर दबाव बनाए रखने की रणनीति पर कायम है, लेकिन चीन की तरफ से आई संवाद की पहल इस टैरिफ युद्ध को नया मोड़ दे सकती है। यदि दोनों देशों के बीच वार्ता शुरू होती है, तो यह न केवल वैश्विक बाजारों को स्थिरता देगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी नई दिशा मिल सकती है।

आने वाले सप्ताहों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप प्रशासन चीन की पहल को किस रूप में लेता है—एक अवसर के रूप में या फिर एक और रणनीतिक चाल के रूप में।