Vikrant Shekhawat : Dec 12, 2021, 07:29 AM
New Delhi : अंतरिक्ष के बाद भारत समुद्र में भी बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है। 2023 में अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने के बाद 2024 में भारत गहरे समुद्र में भी मानव मिशन भेजेगा। विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि समुद्र के अंदर छिपे खनिज भंडारों की खोज के लिए समुद्रयान से तीन वैज्ञानिकों को पांच हजार मीटर गहरे समुद्र में भेजा जाएगा।यहां शनिवार को अंतरराष्ट्रीय भारत विज्ञान उत्सव (आईआईएसएफ) के शुभारंभ के बाद सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार ने हाल में ‘डीप ओसियन मिशन’ को मंजूरी प्रदान की है। इस मिशन के तहत कुछ दिन पहले समुद्रयान को 500 मीटर की गहराई में शोध के लिए उतारा गया है। लेकिन इस समुद्रयान को नए सिरे से मानव मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है। इसमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की प्रयोगशालाओं के अलावा इसरो भी कार्य कर रहा है। लक्ष्य यह है कि 2024 तक तीन यात्रियों को लेकर समुद्रयान पांच किलोमीटर की गहराई तक समुद्र में उतरे। गहरे समुद्र की तलहटी में अपार खनिजों के भंडार छुपे होने की संभावना है जो या तो धरती पर उपलब्ध नहीं हैं या फिर धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसियन (सीएसआईआर-एनआईओ) के निदेशक प्रोफेसर सुनील कुमार सिंह के अनुसार, हिन्द महासागर में तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में गहन अध्ययन करने के बाद उन स्थानों की पहचान की गई है, जहां बड़े पैमाने पर पालिमैटालिक सामग्री समुद्र की तलहटी मौजूद है। इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ने 18 हजार किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में भारत को शोधकार्य की अनुमति दी है। इस क्षेत्र में 10 करोड़ मीट्रिक टन पोलिमैटालिक सामग्री होने का अनुमान है। इसे प्रोसेस करके बड़ी मात्रा में कोबाल्ट, आयरन, मैगनीज, कापर एवं निकल प्राप्त किया जा सकता है। कोबाल्ट की देश में भारी कमी है।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन के अनुसार, समुद्रयान पर दो स्तरों पर कार्य हो रहा है। एक इसे पांच-छह हजार किलोमीटर गहराई तक मानव को ले जाने के लिए तैयार किया जा रहा है। दूसरे, गहरे समुद्र से खनिजों को निकालने के लिए तकनीक विकसित करने पर भी कार्य हो रहा है। कोशिश यह है कि जो खनिज वहां मिलें, उन्हें वहीं प्रोसेस करके निकाला जाए। दरअसल, अभी दुनिया में कहीं भी इतने गहरे समुद्र से खनिजों को निकालने की तकनीक नहीं है।समुद्रयान के निर्माण पर 350 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। जबकि ‘डीप ओसियन मिशन’ के लिए कैबिनेट ने छह हजार करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। समुद्र में इतने बड़े स्तर के मिशन शुरू करने वाले देशों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और चीन हैं।