BRICS Summit 2024 / इंडियन EV कंपनियों की भारत-चीन की नजदीकी से अटकी सांस! क्या है खतरा?

रूस के कजान में ब्रिक्स 2024 समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई। यह बैठक चीन द्वारा लद्दाख में भारत के गश्ती अधिकारों की स्वीकृति के बीच हुई। हालांकि, इससे भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों को खतरा हो सकता है, क्योंकि चीन की ईवी कंपनियों का भारत में प्रवेश हो सकता है।

Vikrant Shekhawat : Oct 24, 2024, 06:00 AM
BRICS Summit 2024: रूस का कज़ान शहर 2024 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वपूर्ण मुलाकात हुई। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब चीन ने लद्दाख में भारत के गश्त करने के अधिकार पर सहमति जताई है। इस बैठक से भारत और चीन के संबंधों को मजबूती मिलने की संभावना है, लेकिन इन दोनों देशों की बढ़ती निकटता ने भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) कंपनियों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। भारतीय EV सेक्टर को अब चीन की सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली इलेक्ट्रिक गाड़ियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।

भारतीय EV उद्योग पर चीन का प्रभाव

भारत और चीन के संबंध सुधरने का भारतीय EV उद्योग पर बड़ा असर हो सकता है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों का चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर, महंगे दाम, कम रेंज और चार्जिंग की समस्या पहले ही इस सेक्टर के लिए बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं। इसके अलावा, हाइब्रिड और सीएनजी कारों से भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों को कड़ा मुकाबला मिलता है, जिससे उनकी लोकप्रियता को और भी धक्का लग रहा है।

इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में गिरावट

भारत में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री हाल ही में गिरावट का सामना कर रही है। टाटा मोटर्स, जो भारत में EV मार्केट का 62% हिस्सा रखता है, ने सितंबर 2024 में साल दर साल 16.28% की गिरावट दर्ज की। टाटा की नई कार "कर्व ईवी" की लॉन्चिंग के बावजूद कंपनी की बिक्री सिर्फ 3,621 यूनिट्स तक सीमित रही। यह गिरावट बताती है कि भारतीय ईवी बाजार को बढ़ावा देने के लिए और भी प्रयासों की आवश्यकता है।

चाइनीज EV कंपनियों का भारत में प्रवेश

प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद चीन की इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों के लिए भारत के दरवाजे खुल सकते हैं। चीनी कंपनियां कम लागत में गुणवत्तापूर्ण और लंबी रेंज वाली इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने में माहिर हैं। भारत के बाजार में प्रवेश करने से, ये कंपनियां यहां की बड़ी और तेजी से बढ़ती मांग का फायदा उठा सकती हैं।

वर्तमान में, चाइनीज ईवी कंपनियां मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरोप में अपनी गाड़ियों का निर्यात करती हैं। लेकिन वहां के महंगे टैरिफ से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहीं, भारत में सस्ती गाड़ियां पेश करके वे अच्छा मुनाफा कमा सकती हैं। एमजी मोटर, जो भारतीय कंपनी JSW के साथ मिलकर काम कर रही है, इसका एक प्रमुख उदाहरण है। इसके अलावा, चीनी कंपनी BYD भी भारतीय बाजार में सक्रिय है।

भारतीय EV कंपनियों के सामने चुनौती

अगर चीन की ईवी कंपनियों को भारत में प्रवेश की अनुमति मिलती है, तो भारतीय कंपनियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। चीनी कंपनियां सस्ती कीमतों में बेहतर तकनीक और लंबी रेंज वाली गाड़ियां पेश कर सकती हैं, जिससे भारतीय कंपनियों को उनके साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल होगा। चीनी कंपनियों को न केवल इलेक्ट्रिक, बल्कि हाइब्रिड कारों के निर्माण में भी महारत हासिल है। ऐसे में भारतीय EV कंपनियों को अपने उत्पादों में सुधार और नवीन तकनीकों को अपनाना होगा, ताकि वे इस प्रतिस्पर्धा में टिक सकें।

भारतीय नीति और चीनी कंपनियों की मुश्किलें

हालांकि, भारतीय सरकार की ईवी नीति और चीन के प्रति सख्त रुख के चलते चीनी कंपनियों के लिए भारत में निवेश करना आसान नहीं होगा। भारत में निवेश करने से पहले उन्हें भारी पूंजी लगानी होगी और स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापित करनी होंगी। इस सख्ती के कारण, कुछ चीनी कंपनियों ने भारत में अपने बड़े निवेश योजनाओं को फिलहाल टाल दिया है।

निष्कर्ष

भारत और चीन के बढ़ते संबंध भारतीय ईवी सेक्टर के लिए एक दोधारी तलवार की तरह हैं। एक ओर, चीन से सस्ती और बेहतर तकनीक वाले वाहनों का आगमन भारतीय बाजार को गति दे सकता है, लेकिन दूसरी ओर, यह भारतीय ईवी कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। भारतीय कंपनियों को अपनी तकनीक और उत्पादन क्षमता में सुधार लाकर इस चुनौती का सामना करना होगा, ताकि वे घरेलू बाजार में अपना प्रभुत्व बनाए रख सकें।