News18 : Aug 15, 2020, 12:48 PM
बेंगलुरु। भारतीय वैज्ञानिकों और रिसर्चर ने चांद (Moon) पर बिल्डिंग तैयार करने के लिए खास किस्म की ईंट (Brics) तैयार की है। इस स्पेशल ईंट को कुछ खास चीज़ों के इस्तेमाल से बनाया गया है। ये है-चांद की सतह से ली गई मिट्टी (lunar soil), बैक्टीरिया और गुआर बिन्स। इसे तैयार किया है बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ( IISc) और इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (ISRO) की टीम ने।
मानव मूत्र का भी इस्तेमालIISc और ISRO की टीम द्वारा विकसित इस प्रोसेस में यूरिया का इस्तेमाल भी किया गया है, जिसे चंद्रमा पर मानव मूत्र से लिया जाएगा। IISc के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के सहायक प्रोफेसर अलोक कुमार कहते हैं कि ये वास्तव में रोमांचक चीज़ है, क्योंकि ये दो अलग-अलग क्षेत्रों जीव विज्ञान और मैकेनिकल इंजीनियरिंग को एक साथ लाता है।
ऐसे हुआ तैयारकुमार के मुताबिक IISc, ISRO की टीम और वैज्ञानिक अर्जुन डे तथा वेणुगोपाल ने सबसे पहले बैक्टीरिया के साथ चांद की सतह की मिट्टी को मिलाया। इसके बाद इसमें यूरिया और गुआर बीन्स डाला गया। इसके बाद इसे कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया गया। वैज्ञानिकों का दावा है कि उनके इस मैटेरियल को किसी भी रूप में गढ़ा जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में वो और भी बड़ी ईंट बनाने की कोशिश करेंगे।
सिमेंट का इस्तेमाल नहींपृथ्वी के संसाधनों के तेजी से घटने के साथ, वैज्ञानिकों ने सिर्फ चंद्रमा और संभवतः अन्य ग्रहों के निवासियों के लिए अपने प्रयासों को तेज किया है। बयान के अनुसार, बाहरी अंतरिक्ष में एक पाउंड सामग्री भेजने की लागत लगभग 7.5 लाख रुपये है। इस पूरे प्रोसेस में सिमेंट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
मानव मूत्र का भी इस्तेमालIISc और ISRO की टीम द्वारा विकसित इस प्रोसेस में यूरिया का इस्तेमाल भी किया गया है, जिसे चंद्रमा पर मानव मूत्र से लिया जाएगा। IISc के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के सहायक प्रोफेसर अलोक कुमार कहते हैं कि ये वास्तव में रोमांचक चीज़ है, क्योंकि ये दो अलग-अलग क्षेत्रों जीव विज्ञान और मैकेनिकल इंजीनियरिंग को एक साथ लाता है।
ऐसे हुआ तैयारकुमार के मुताबिक IISc, ISRO की टीम और वैज्ञानिक अर्जुन डे तथा वेणुगोपाल ने सबसे पहले बैक्टीरिया के साथ चांद की सतह की मिट्टी को मिलाया। इसके बाद इसमें यूरिया और गुआर बीन्स डाला गया। इसके बाद इसे कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया गया। वैज्ञानिकों का दावा है कि उनके इस मैटेरियल को किसी भी रूप में गढ़ा जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में वो और भी बड़ी ईंट बनाने की कोशिश करेंगे।
सिमेंट का इस्तेमाल नहींपृथ्वी के संसाधनों के तेजी से घटने के साथ, वैज्ञानिकों ने सिर्फ चंद्रमा और संभवतः अन्य ग्रहों के निवासियों के लिए अपने प्रयासों को तेज किया है। बयान के अनुसार, बाहरी अंतरिक्ष में एक पाउंड सामग्री भेजने की लागत लगभग 7.5 लाख रुपये है। इस पूरे प्रोसेस में सिमेंट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।