Vikrant Shekhawat : Oct 03, 2019, 11:47 AM
कोलकाता | आज उस महिला की पुण्यतिथि है, जो भारत की पहली महिला स्नातक होने का गौरव रखती हैं। भारत ही नहीं दक्षिणी एशिया क्षेत्र की पहली ऐसी महिला थी, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में प्रशिक्षण प्राप्त किया। कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने यह मिथक तोड़ा कि सर्जरी सिर्फ पुरुष कर सकते हैं। आज देश में महिला चिकित्सकों की संख्या लाखों में हैं, उसकी शुरुआत कादम्बिनी गांगुली ने की।
गांधी जयंती के ठीक एक दिन बाद कादम्बिनी गांगुली को याद किया जाना इसलिए समीचीन है कि जब रंगभेद नीति के विरोधी के रूप में ख्याति बटोरकर गांधी भारत आए और कांग्रेस ने उनके सम्मान में कार्यक्रम किया तो उस अधिवेशन की अध्यक्षता कादम्बिनी गांगुली ने की थी। कादम्बिनी के नाम एक और उपलब्धि दर्ज है कांग्रेस के इतिहास में पहली ऐसी महिला होने की, जिसने सम्बोधित किया हो।
बृजकिशोर बासु के घर 18 जुलाई, 1861 बिहार के भागलपुर में जन्मीं कादम्बिनी का विवाह द्वारका प्रसाद गांगुली से हुआ। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय, ग्लासगो और ऐडिनबर्ग विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। कांग्रेस के 1889 के मद्रास अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया और भाषण दिया। संस्था के उस समय तक के इतिहास में भाषण देने वाली कादम्बिनी पहली महिला थीं।
कादम्बिनी गांगुली ने कोयला खदानों में काम करने वाली महिलाओं की लचर स्थिति पर भी काफ़ी कार्य किया। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं से कादम्बिनी बहुत प्रभावित थीं। उनमें देशभक्ति की भावना बंकिमचन्द्र की रचनाओं से ही जागृत हुई थी।
जन्म तथा शिक्षा
कादम्बिनी गांगुली का जन्म 18 जुलाई, 1861 ई. में भागलपुर, बिहार में हुआ था। उनका परिवार चन्दसी (बारीसाल, अब बांग्लादेश में) से था। इनके पिता का नाम बृजकिशोर बासु था। उदार विचारों के धनी कादम्बिनी के पिता बृजकिशोर ने पुत्री की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया। कादम्बिनी ने 1882 में 'कोलकाता विश्वविद्यालय' से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वे भारत की दो में से पहली महिला स्नातक थीं।
प्रथम महिला चिकित्सक
'कोलकाता विश्वविद्यालय' से 1886 में चिकित्साशास्त्र की डिग्री लेने वाली भी वे पहली महिला थीं।इसके बाद वे विदेश गई और ग्लासगो और ऐडिनबर्ग विश्वविद्यालयों से चिकित्सा की उच्च डिग्रियाँ प्राप्त कीं। देश में भले ही महिलाओं को उच्चतर शिक्षा पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा हो, लेकिन कादम्बिनी गांगुली के रूप में भारत को पहली महिला डॉक्टर 19वीं सदी में ही मिल गई थी। कादम्बिनी गांगुली को न सिर्फ भारत की पहला महिला फ़िजीशियन बनने का गौरव हासिल हुआ, बल्कि वे पहली साउथ एशियन महिला थीं, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में प्रशिक्षण लिया था।
महिला उत्थान कार्य
ब्रह्म समाज से जुड़े होने के चलते कादम्बिनी के पति द्वारकानाथ महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए पहले से ही प्रयत्नशील थे। कादम्बिनी इस क्षेत्र में भी उनकी सहायक सिद्ध हुईं। उन्होंने बालिकाओं के विद्यालय में गृह उद्योग स्थापित करने के कार्य को प्रश्रय दिया। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं से कादम्बिनी बहुत प्रभावित थीं। बंकिमचन्द्र की रचनाएँ उनके भीतर देशभक्ति की भावनाएँ उत्पन्न करती थीं। वे सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगी थीं।
सम्मेलन की अध्यक्षता
कांग्रेस के 1889 के मद्रास अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया और भाषण दिया। संस्था के उस समय तक के इतिहास में भाषण देने वाली कादम्बिनी पहली महिला थीं। 1906 ई. की कोलकाता कांग्रेस के अवसर पर आयोजित महिला सम्मेलन की अध्यक्षता भी कादम्बिनी जी ने ही की थी। महात्मा गाँधी उन दिनों अफ़्रीका में रंगभेद के विरुद्ध 'सत्याग्रह आन्दोलन' चला रहे थे। कादम्बिनी ने उस आन्दोलन की सहायता के लिए कोलकाता में चन्दा जमा किया। 1914 ई. में जब गाँधीजी कोलकाता आये तो उनके सम्मान में आयोजित सभा की अध्यक्षता भी कादम्बिनी ने ही की।
निधन
3 अक्टूबर, 1923 में कादम्बिनी गांगुली का देहांत कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ।
स्रोत : भारत डिस्कवरी