जयपुर / एक दशक तक सुर्खियों में रही कल्याण-कलराज की जोड़ी, मिश्र अब राजस्थान के नए राज्यपाल बने

राज्यपाल कल्याण सिंह का कार्यकाल पूरा होने के बाद प्रदेश के नए राज्यपाल के तौर पर कलराज मिश्र कमान संभालेंगे। यह भी एक संयोग है कि जब राजस्थान के राज्यपाल पद से कल्याण सिंह का कार्यकाल पूरा हो रहा है तो उनके उत्तराधिकारी के तौर पर कलराज मिश्र ही कामकाज संभालेंगे। उत्तर प्रदेश में 1990 के दशक में कल्याण सिंह और कलराज मिश्र की जोड़ी सुर्खियों में रहती थी।

Dainik Bhaskar : Sep 02, 2019, 07:48 AM
जयपुर. राज्यपाल कल्याण सिंह का कार्यकाल पूरा होने के बाद प्रदेश के नए राज्यपाल के तौर पर कलराज मिश्र कमान संभालेंगे। यह भी एक संयोग है कि जब राजस्थान के राज्यपाल पद से कल्याण सिंह का कार्यकाल पूरा हो रहा है तो उनके उत्तराधिकारी के तौर पर कलराज मिश्र ही कामकाज संभालेंगे।  

उत्तर प्रदेश में 1990 के दशक में कल्याण सिंह और कलराज मिश्र की जोड़ी सुर्खियों में रहती थी। पहली बार जून 1991 में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने थे, उस समय कलराज मिश्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे। दूसरी बार कल्याण सिंह 1997 में जब मुख्यमंत्री बने तो कलराज मिश्र उनके मंत्रिमंडल में लोक निर्माण, पर्यटन, चिकित्सा शिक्षा मंत्री बने। उत्तर प्रदेश में राममंदिर आंदोलन से लेकर समाजवादी पार्टी के खिलाफ मोर्चा लेने में ये दोनाें आगे रहते थे।

उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन को खड़ा करने में कलराज मिश्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही। वह 1991, 1993, 1995 और 2000 में भाजपा के चार बार प्रदेश अध्यक्ष रहे। एक जुलाई 1941 को गाजीपुर के मलिकपुर गांव में मिश्र का जन्म हुआ। 1975 में आपातकाल में कलराज मिश्र भी 18 माह जेल में रहे।

1977 के चुनाव में पूर्व उप्र के जनता पार्टी के चुनाव संयोजक बने। 1978 में उन्हें पहली बार राज्य सभा का सदस्य बनाया। उसके बाद वह 2001 और 2006 में भी राज्यसभा सदस्य रहे। एक जनवरी 1979 को राष्ट्रीय युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। 11 अगस्त 1979 को राष्ट्रीय युवा समन्वयक समिति के संयोजक बने।

1980 में भाजपा के गठन के बाद भाजयुमो के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। 1986 में उप्र विधान परिषद सदस्य बनाए गए। 1991 तक भाजपा के उप्र के महामंत्री संगठन रहे। 1991 में ही उन्हें उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। 21 मार्च 1997 से 17 अगस्त 2000 तक उत्तर प्रदेश सरकार के लोक निर्माण, पर्यटन, चिकित्सा शिक्षा मंत्री रहे।

2004 में राजस्थान और दिल्ली के भाजपा के प्रभारी थे। 2010 में भाजपा में उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। 2012 में उत्तर प्रदेश विधायक चुने गए। 2014 में उत्तर प्रदेश की देवरिया लोकसभा सीट से सांसद बने और नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में सूक्ष्‍म, लघु और उद्यम मंत्री (एमएसएमई) बनाया गया। 75 साल की आयु पूरी होने के बाद मंत्री पद से 2017 में मिश्र ने इस्तीफा दे दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा के प्रभारी बनाये गये। 16 जुलाई 2019 से वह हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर सेवाएं दे रहे थे।

महामहिम शब्द हटाकर चर्चा में रहे राज्यपाल कल्याण सिंह 

राज्यपाल कल्याण सिंह पिछले 52 साल में पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरे करने वाले प्रदेश के एकमात्र राज्यपाल हैं। उनके पांच साल में 12 एेसे फैसले है जाे हमेशा राजस्थान के इतिहास में याद रखे जाएंगे। इनमें विश्वविद्यालयाें की भर्तियों में धांधली के सबूत मिलने पर उनके द्वारा लोकायुक्त व एसीबी जांच का फैसला लिया जाना। दीक्षांत समारोह में ब्लेक गाउन पर ये कहते हुए राेक लगाना कि ये विदेशी संस्कृति का हिस्सा है। खुद के नाम के अागे से महामहिम शब्द हटाना और राजभवन में गार्ड अाॅफ अाॅनर तक पर राेक लगा देने जैसे उनके निर्णय हमेशा याद रहेंगे।

महत्वपूर्ण फैसले   

पहली बार किसी राज्यपाल ने विश्वविद्यालयाें में हुई भर्तियाें की पड़ताल कराई। माेहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी अाैर राजस्थान यूनिवर्सिटी अादि से जुड़ी भर्तियाें में लाेकायुक्त अाैर एसीबी स्तर पर जांच की सिफारिश तक कर दी। संस्कृत विश्वविद्यालय में भर्तियाें की गड़बड़ी मिलने पर  भर्ती ही खत्म कर दी। 

भारतीय पाेशाक में डिग्री लेने की परम्परा पर फाेकस हाेते हुए ब्लेक गाउन में डिग्री देने पर राेक लगाई। विश्वविद्यालयाें में कुलगीत तैयार कराने, 100  फीट तिरंगा लगाने की अनिवार्यता, स्वामी विवेकांनद की मूर्ति अनिवार्यता । 

खुद के नाम के अागे महामहिम शब्द पर राेक लगाना। राज्यपाल जब जिला छाेड़कर जाते है अाैर फिर वापस लाैटते है ताे उन्हें राजभवन में गार्ड अाॅफ अाॅनर दिया जाता है। इस परिपाटी काे भी खत्म कराया। 

विश्वविद्यालयों द्वारा गांव गाेद लिए जाने की शुरुआत सबसे पहले इन्होंने कराई । इसके बाद ये सांसद स्तर पर भी देखने काे मिली। विश्वविद्यालयाें में लंबित डिग्रियां दिलाना, हर साल दीक्षांत समाराेह की अनिवार्यता के फैसले। 

विश्वविद्यालय टीचर क्या पढाएंगे उसकाे पूर्व में वेबसाइट पर प्रदर्शित कराना। 

नकल पर सख्ती पर टीचरों काे सस्पैंड कराना । उदाहरण के ताैर पद दाैसा में अाठ टीचराें काे एकसाथ सस्पेंड करके नकल की राेकथाम के लिए बड़ा कदम उठाया था। 

दीक्षांत समाराेह के कार्यक्रम में शामिल हाेने से पहले विश्वविद्यालय की अाेर से गाेद लिए गांवाें काे देखना।  तीन दिन तक रूकना, गांवाें में खुद निरीक्षण करते अाैर चाैपाल लगाकर ग्रामीणाें से फीडबेक लेना अाैर माैके पर माैजूद जिला कलेक्टर से तत्काल समस्या का निराकरण कराना जैसे काम यादगार रहे।