Vikrant Shekhawat : Jun 25, 2020, 12:26 PM
नई दिल्ली | भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति के काले अध्याय के रूप में याद की जाने वाली इमरजेंसी (Emergency in India) को आज 45 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस मौके पर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) ने कांग्रेस (Congress) और गांधी परिवार (Gandhi Family) पर निशाना साधा है। शाह ने कहा कि एक परिवार ने सत्ता के लालच में देश को इमरजेंसी में डाल दिया था। रातों रात पूरे देश को जेल बना दिया गया। शाह का कहना है कि कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिए कि एक वंश को छोड़ बाकी नेताओं को क्यों नहीं बोलने दिया जाता। कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिए कि एक वंश को छोड़ बाकी नेताओं को क्यों नहीं बोलने दिया जाता। आपको याद रहे कि इंदिरा गांधी के वक्त 1975 में आज के ही दिन इमरजेंसी लगाई गई थी।
अमित शाह ने इस मुद्दे पर चार ट्वीट किए और तीन सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि शाह ने कहा कि लाखों लोगों की कोशिशों के बाद इमरजेंसी हटी और लोकतंत्र की बहाली हुई थी, लेकिन कांग्रेस का रवैया नहीं बदला। एक परिवार के हित, पार्टी और देश हित से भी ऊपर रखे गए। कांग्रेस में आज भी यही हो रहा है। कांग्रेस के नेता घुट रहे हैं
शाह ने एक मीडिया रिपोर्ट को शेयर करते हुए कहा कि पिछले दिनों हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में पार्टी के सीनियर नेताओं ने कुछ मुद्दे उठाए, लेकिन उनकी बात दबा दी गई। पार्टी के एक प्रवक्ता को बाहर निकाल दिया गया। सच्चाई यह है कि कांग्रेस के नेता घुटन महसूस कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है।शाह ने कहा कि विपक्ष के नाते कांग्रेस को खुद से ही पूछने की जरूरत है कि-
1. इमरजेंसी की मानसिकता क्यों रहती है?2. एक राजवंश के लोगों को छोड़ बाकी नेताओं को क्यों नहीं बोलने दिया जाता?3. कांग्रेस में नेता हताश क्यों हो रहे हैं?जेल में ठूंस दिए गए थे नेता
देश के इतिहास में 25 जून की तारीख एक विवादास्पद फैसले के लिए याद की जाती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को ही देश में आपातकाल (Imposition of the Emergency) लागू किया था, इसके तहत सरकार का विरोध करने वाले तमाम नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था और सख्त कानून लागू करते हुए आम लोगों के अधिकार का सीमित किया गया था। आपातकाल यानी इमरजेंसी को स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे विवादास्पद और गैर लोकत्रांतिक फैसला माना जाता है और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को इसकी कीमत बाद में लोकसभा चुनाव में मिली हार के साथ चुकानी पड़ी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी।नड्डा ने भी कांग्रेस पर साधा निशाना, सत्याग्रहियों को किया नमन
वहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने देश पर थोपे गए आपातकाल के 45 साल पूरे होने पर गुरुवार को कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा और इसे उसकी ‘अधिनायकवादी’ मानसिकता का परिचायक करार दिया। नड्डा ने एक ट्वीट में कहा, ‘भारत उन सभी महानुभावों को नमन करता है, जिन्होंने भीषण यातनाएं सहने के बाद भी आपातकाल का जमकर विरोध किया। ये हमारे सत्याग्रहियों का तप ही था जिससे भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों ने एक अधिनायकवादी मानसिकता पर सफलतापूर्वक जीत प्राप्त की।’ देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच 21 महीने की अवधि तक आपातकाल लागू रहा. इंदिरा गांधी उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं।
अमित शाह ने इस मुद्दे पर चार ट्वीट किए और तीन सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि शाह ने कहा कि लाखों लोगों की कोशिशों के बाद इमरजेंसी हटी और लोकतंत्र की बहाली हुई थी, लेकिन कांग्रेस का रवैया नहीं बदला। एक परिवार के हित, पार्टी और देश हित से भी ऊपर रखे गए। कांग्रेस में आज भी यही हो रहा है। कांग्रेस के नेता घुट रहे हैं
शाह ने एक मीडिया रिपोर्ट को शेयर करते हुए कहा कि पिछले दिनों हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में पार्टी के सीनियर नेताओं ने कुछ मुद्दे उठाए, लेकिन उनकी बात दबा दी गई। पार्टी के एक प्रवक्ता को बाहर निकाल दिया गया। सच्चाई यह है कि कांग्रेस के नेता घुटन महसूस कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है।शाह ने कहा कि विपक्ष के नाते कांग्रेस को खुद से ही पूछने की जरूरत है कि-
1. इमरजेंसी की मानसिकता क्यों रहती है?2. एक राजवंश के लोगों को छोड़ बाकी नेताओं को क्यों नहीं बोलने दिया जाता?3. कांग्रेस में नेता हताश क्यों हो रहे हैं?जेल में ठूंस दिए गए थे नेता
देश के इतिहास में 25 जून की तारीख एक विवादास्पद फैसले के लिए याद की जाती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को ही देश में आपातकाल (Imposition of the Emergency) लागू किया था, इसके तहत सरकार का विरोध करने वाले तमाम नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था और सख्त कानून लागू करते हुए आम लोगों के अधिकार का सीमित किया गया था। आपातकाल यानी इमरजेंसी को स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे विवादास्पद और गैर लोकत्रांतिक फैसला माना जाता है और तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को इसकी कीमत बाद में लोकसभा चुनाव में मिली हार के साथ चुकानी पड़ी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी।नड्डा ने भी कांग्रेस पर साधा निशाना, सत्याग्रहियों को किया नमन
वहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने देश पर थोपे गए आपातकाल के 45 साल पूरे होने पर गुरुवार को कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा और इसे उसकी ‘अधिनायकवादी’ मानसिकता का परिचायक करार दिया। नड्डा ने एक ट्वीट में कहा, ‘भारत उन सभी महानुभावों को नमन करता है, जिन्होंने भीषण यातनाएं सहने के बाद भी आपातकाल का जमकर विरोध किया। ये हमारे सत्याग्रहियों का तप ही था जिससे भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों ने एक अधिनायकवादी मानसिकता पर सफलतापूर्वक जीत प्राप्त की।’ देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच 21 महीने की अवधि तक आपातकाल लागू रहा. इंदिरा गांधी उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं।