नई स्टडी / आधुनिक इंसान सिर्फ 1.5% होमो सैंपियंस, बाकी 98.5% आज भी 'आदिमानव'

वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि आज का इंसान 100 फीसदी होमो सैपियंस (Homo Sapiens) नहीं है। वह सिर्फ 1.5 फीसदी से लेकर 7 फीसदी तक ही होमो सैपियंस है। बाकी का ज्यादातर हिस्सा आज भी 'आदिमानव' है। इस नई स्टडी में यह खुलासा इंसानों की जीनोम का अध्ययन करके बताया गया है। आइए जानते हैं कि वैज्ञानिक किस आधार पर यह दावा कर रहे हैं? क्या इससे इंसानों के इवोल्यूशन की कहानी बदल जाएगी?

Vikrant Shekhawat : Jul 19, 2021, 04:24 PM
Delhi: वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि आज का इंसान 100 फीसदी होमो सैपियंस (Homo Sapiens) नहीं है। वह सिर्फ 1.5 फीसदी से लेकर 7 फीसदी तक ही होमो सैपियंस है। बाकी का ज्यादातर हिस्सा आज भी 'आदिमानव' है। इस नई स्टडी में यह खुलासा इंसानों की जीनोम का अध्ययन करके बताया गया है। आइए जानते हैं कि वैज्ञानिक किस आधार पर यह दावा कर रहे हैं? क्या इससे इंसानों के इवोल्यूशन की कहानी बदल जाएगी? 

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में बायोमॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और इस स्टडी के प्रमुख लेखक रिचर्ड ई। ग्रीन ने बताया कि स्टडी के मुताबिक 1.5 से 7 फीसदी जीनोम ही होमो सैपियंस का है। डीएनए का बाकी 98.5 से लेकर 93.0 फीसदी तक निएंडरथल मानव (Neanderthals) से संबंधित है।

प्रो। रिचर्ड ने बताया कि वर्तमान इंसान के डीएनए में बेहद कम जीनोम में बदलाव आया है। ये बदलाव खास है। इसी बदलाव की वजह से आज के इंसानों का दिमाग और उसकी कार्य प्रणाली विकसित हुई है। इसी एक बदलाव की वजह से आज का इंसान अपने पूर्वजों की तुलना में ज्यादा बुद्धिमान है, अलग है। 

हालांकि, इस स्टडी से यह बात स्पष्ट नहीं होती कि वर्तमान इंसान और निएंडरथल मानव के बीच किस तरह के बायोलॉजिकल अंतर हैं। प्रो। रिचर्ड कहते हैं कि यह एक बड़ा सवाल है, जिसके लिए भविष्य में हमें काफी काम करना होगा। लेकिन फिलहाल हमें ये पता चल गया है कि भविष्य में हमें ये अंतर पता करने के लिए किस दिशा में काम करना होगा। 

प्रो। रिचर्ड ई। ग्रीन की यह स्टडी हाल ही में साइंस एडवांसेस जर्नल में प्रकाशित हुई है। इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने आधुनिक मानवों के डीएनए के अलग-अलग हिस्सों का अध्ययन करके यह पता लगाने की कोशिश की है कि निएंडरथल मानवों का कितना हिस्सा आज के डीएनए में है। या हमें वह जैविक वंश में मिला है। 

प्रो। रिचर्ड कहते हैं कि हम जिस प्राचीन समय की बात कर रहे हैं उस समय दो इंसानी प्रजातियों ने आपस में क्रॉसब्रीड किया था। ये दोनों प्रजातियां थी विकसित हो रहे नए होमो सैपियंस और निएंडरथल। इसलिए यह जानना जरूरी था कि वर्तमान इंसानों में निएंडरथल मानवों का जेनेटिक वैरिएंट कितना है। या होमो सैपिंयस का जीनोम ज्यादा प्रभावी है। 

इसके लिए प्रोफेसर रिचर्ड की टीम ने एक एल्गोरिदम बनाया। इसका नाम दिया गया - स्पीडी एन्सेस्ट्रल रीकॉम्बिनेशन ग्राफ एस्टीमेटर (speedy ancestral recombination graph estimator)। इसी की बदौलत वैज्ञानिकों की टीम को यह पता चल पाया है कि आखिरकार वर्तमान इंसानों में होमो सैपिंयस और निएंडरथल मानव के जेनेटिक वैरिएंट कितने हैं। क्योंकि आधुनिक मानवों और निएंडरथल में जेनेटिक अलगाव करीब 5000 साल पहले शुरु हो गया था

प्रो। रिचर्ड ने 279 आधुनिक इंसानी जीनोम का अध्ययन किया। इसके अलावा दो निएंडरथल जीनोम, डेनिसोवैन्स (Denisovans) का एक जीनोम और आर्केइक (Archaic) इंसान का जीनोम लिया। इन सभी मानवों के बीच जेनेटिक अंतर और समानता पता करने के लिए उन्होंने स्पीडी एन्सेस्ट्रल रीकॉम्बिनेशन ग्राफ एस्टीमेटर की मदद ली। तब यह खुलासा हुआ कि आधुनिक इंसान में होमो सैपियंस के 1।5 से 7 फीसदी यूनीक जीनोम हैं। 

प्रो। रिचर्ड ई। ग्रीन कहते हैं कि 1।5 फीसदी वैल्यू यह बताती है कि आज के इंसानों में निएंडरथल और डेनिसोवैन्स के जेनेटिक अंश नहीं है। जो अधिकतम 7 फीसदी की वैल्यू तक जा रहा है। रिचर्ड और उनकी साथी इस स्टडी से खुद भी हैरान थे। क्योंकि सिर्फ 1।5 फीसदी जीनोम ही आधुनिक इंसान के हैं। 1।5 फीसदी से 7 फीसदी जीनोम ऐसे हैं, जिन्हें हम जानते हैं। हम उनका काम भी जानते हैं। ये खासतौर से दिमाग के विकास और उसके काम को लेकर संबंधित हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि इंसानों में जेनेटिक म्यूटेशन दो बार हुए। पहला 6 लाख साल पहले और दूसरा 2 लाख साल पहले। ये जेनेटिक म्यूटेशन एडॉप्टिव थे यानी ये नए बदलावों को ला रहे थे, नए बुद्धिमान इंसान का दिमाग बना रहे थे। हालांकि, यह पता नहीं चल पाया कि इन बदलावों का पर्यावरण से भी कोई संबंध था या नहीं। या पर्यावरण की वजह से यह जेनेटिक बदलाव आए हैं। 

प्रो। रिचर्ड ने कहा कि अगर आज के वैज्ञानिक और रिसर्चर्स इंसानों के इन जेनेटिक म्यूटेशन की स्टडी करें तो वो पता कर सकते हैं कि इससे दिमाग पर क्या असर पड़ा। हो सकता है कि इस स्टडी से यह पता चल पाए कि निएंडरथल और आधुनिक मानवों के बीच तार्किक और जैविक कितना अंतर था। यानी दिमाग और शरीर में कितना बदलाव आया। 

प्रो। रिचर्ड ने कहा कि हो सकता है कि वैज्ञानिक आज के इंसान की कोशिका लेकर उन्हें लैब में जेनेटिकली एडिट करके वापस निएंडरथल मानव के जीन को हासिल कर सकें। हो सकता है कि ये एकदम निएंडरथल मानव के जीनोम जैसा न हो लेकिन इतना करीब पहुंच सकता है कि हम अपने पूर्वजों का अध्ययन कर सकते हैं। इससे यह पता चल सकता है कि उस समय के आदिमानवों और आज के आधुनिक मानवों में कितना अंतर है।