Vikrant Shekhawat : Jun 19, 2020, 09:25 PM
नई दिल्ली | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज आचार्य महाप्रज्ञ की जन्म शताब्दी के अवसर पर इस महान संत को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अपना समस्त जीवन मानवता और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।
प्रधानमंत्री ने इस महान संत के साथ अपनी अनगिनत भेंट को स्मरण किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें आचार्य के साथ कई बार बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्होंने इस महान संत की यात्रा से बहुत कुछ सीखा है। मोदी ने कहा कि उन्हें भी संत महाप्रज्ञ जी की अहिंसा यात्रा और मानवता की सेवा में भाग लेने का अवसर मिला।
उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जैसे युग ऋषियों के जीवन में अपने लिए कुछ नहीं होता है, लेकिन उनका जीवन, चिंतन और कार्य, सब कुछ मानवता की सेवा के लिए समर्पित होता है।
प्रधानमंत्री ने आचार्य जी को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘यदि आप अपने जीवन में ‘मैं और मेरा' छोड़ दें, तो पूरी दुनिया आपकी हो जाएगी।’’
मोदी ने कहा कि इस महान संत ने इसे अपने जीवन का मंत्र एवं दर्शन बना दिया और अपने हर कार्य व कर्म में इसे लागू किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस संत के जीवन में एकमात्र परिग्रह हर व्यक्ति के लिए लगाव के अलावा कुछ भी नहीं था।
प्रधानमंत्री ने स्मरण किया कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहा करते थे कि आचार्य महाप्रज्ञ जी आधुनिक युग के विवेकानंद हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह दिगंबर परंपरा के महान संत आचार्य विद्यानंद ने आचार्य महाप्रज्ञ की अद्भुत साहित्य रचना को ध्यान में रखते हुए महाप्रज्ञ जी की तुलना डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन से की थी।
प्रधानमंत्री ने अटल बिहारी वाजपेयी का उल्लेख करते हुए कहा कि अटल जी, जो स्वयं भी साहित्य और ज्ञान के इतने बड़े पारखी थे, अक्सर कहा करते थे कि ‘मैं आचार्य महाप्रज्ञ जी के साहित्य का, उनके साहित्य की गहराई, उनके ज्ञान और शब्दों का बहुत बड़ा प्रेमी हूं।’
प्रधानमंत्री ने आचार्य को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित किया जिन्हें वाणी की सौम्यता, मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज, शब्दों के चयन में उत्कृष्ट संतुलन करने का ईश्वरीय वरदान प्राप्त था।प्रधानमंत्री ने कहा कि आचार्य ने अध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे विषयों पर संस्कृत, हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी में 300 से भी अधिक किताबें लिखी हैं। प्रधानमंत्री ने उनकी एक पुस्तक ‘द फैमिली एंड द नेशन’ का उल्लेख किया, जिसे महाप्रज्ञ ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जी के साथ मिलकर लिखी थी।उन्होंने कहा, ‘इन दोनों महापुरुषों ने यह विजन दिया है कि कैसे एक परिवार एक सुखी परिवार बन सकता है, कैसे एक सुखी परिवार एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।’ इन दोनों महापुरुषों के जीवन की तुलना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने दोनों महानुभावों से यह सीखा ‘एक आध्यात्मिक गुरु किस तरह वैज्ञानिक विजन रखता है और एक वैज्ञानिक किस तरह आध्यात्मिकता की व्याख्या करता है।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे एक साथ इन दोनों महापुरुषों से बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।’
उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. कलाम महाप्रज्ञ जी के बारे में कहा करते थे कि उनके जीवन का एक ही उद्देश्य है - सतत यात्रा करो, ज्ञान अर्जित करो, और जो कुछ भी जीवन में है वो समाज को दे दो। प्रधानमंत्री ने कहा कि महाप्रज्ञ जी ने अपने जीवनकाल में हजारों किलोमीटर की यात्रा की। यहां तक कि अपने अंतिम समय में भी वे अहिंसा यात्रा पर ही थे। प्रधानमंत्री ने उनके उद्धरण को स्मरण किया। वे कहते थे, ‘आत्मा मेरा ईश्वर है, त्याग मेरी प्रार्थना है, मैत्री मेरी भक्ति है, संयम मेरी शक्ति है, और अहिंसा मेरा धर्म है’। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस जीवन शैली को उन्होंने खुद भी जिया और लाखों-करोड़ों लोगों को भी सिखाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि योग के माध्यम से उन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों को अवसाद मुक्त जीवन की कला सिखाई। उन्होंने कहा, ‘यह भी एक सुखद संयोग है कि ठीक एक दिन बाद ही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। यह भी हमारे लिए एक अवसर होगा कि हम सभी महाप्रज्ञ जी के ‘सुखी परिवार और समृद्ध राष्ट्र’ के सपने को साकार करने में अपना योगदान दें और इसके साथ ही उनके विचारों को समाज तक पहुंचाएं।’ आचार्य महाप्रज्ञ जी के एक और मंत्र ‘स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज, स्वस्थ अर्थव्यवस्था’ को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका मंत्र हम सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।
उन्होंने कहा कि देश आज ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के संकल्प और उसी मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा मानना है कि समाज और राष्ट्र जिनके आदर्श हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे सामने रखे हैं, हमारा देश जल्द ही उस संकल्प को सही साबित करेगा। आप सभी इस सपने को साकार करेंगे।’
प्रधानमंत्री ने इस महान संत के साथ अपनी अनगिनत भेंट को स्मरण किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें आचार्य के साथ कई बार बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्होंने इस महान संत की यात्रा से बहुत कुछ सीखा है। मोदी ने कहा कि उन्हें भी संत महाप्रज्ञ जी की अहिंसा यात्रा और मानवता की सेवा में भाग लेने का अवसर मिला।
उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जैसे युग ऋषियों के जीवन में अपने लिए कुछ नहीं होता है, लेकिन उनका जीवन, चिंतन और कार्य, सब कुछ मानवता की सेवा के लिए समर्पित होता है।
प्रधानमंत्री ने आचार्य जी को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘यदि आप अपने जीवन में ‘मैं और मेरा' छोड़ दें, तो पूरी दुनिया आपकी हो जाएगी।’’
मोदी ने कहा कि इस महान संत ने इसे अपने जीवन का मंत्र एवं दर्शन बना दिया और अपने हर कार्य व कर्म में इसे लागू किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस संत के जीवन में एकमात्र परिग्रह हर व्यक्ति के लिए लगाव के अलावा कुछ भी नहीं था।
प्रधानमंत्री ने स्मरण किया कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहा करते थे कि आचार्य महाप्रज्ञ जी आधुनिक युग के विवेकानंद हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह दिगंबर परंपरा के महान संत आचार्य विद्यानंद ने आचार्य महाप्रज्ञ की अद्भुत साहित्य रचना को ध्यान में रखते हुए महाप्रज्ञ जी की तुलना डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन से की थी।
प्रधानमंत्री ने अटल बिहारी वाजपेयी का उल्लेख करते हुए कहा कि अटल जी, जो स्वयं भी साहित्य और ज्ञान के इतने बड़े पारखी थे, अक्सर कहा करते थे कि ‘मैं आचार्य महाप्रज्ञ जी के साहित्य का, उनके साहित्य की गहराई, उनके ज्ञान और शब्दों का बहुत बड़ा प्रेमी हूं।’
प्रधानमंत्री ने आचार्य को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित किया जिन्हें वाणी की सौम्यता, मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज, शब्दों के चयन में उत्कृष्ट संतुलन करने का ईश्वरीय वरदान प्राप्त था।प्रधानमंत्री ने कहा कि आचार्य ने अध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे विषयों पर संस्कृत, हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी में 300 से भी अधिक किताबें लिखी हैं। प्रधानमंत्री ने उनकी एक पुस्तक ‘द फैमिली एंड द नेशन’ का उल्लेख किया, जिसे महाप्रज्ञ ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जी के साथ मिलकर लिखी थी।उन्होंने कहा, ‘इन दोनों महापुरुषों ने यह विजन दिया है कि कैसे एक परिवार एक सुखी परिवार बन सकता है, कैसे एक सुखी परिवार एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।’ इन दोनों महापुरुषों के जीवन की तुलना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने दोनों महानुभावों से यह सीखा ‘एक आध्यात्मिक गुरु किस तरह वैज्ञानिक विजन रखता है और एक वैज्ञानिक किस तरह आध्यात्मिकता की व्याख्या करता है।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे एक साथ इन दोनों महापुरुषों से बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।’
उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. कलाम महाप्रज्ञ जी के बारे में कहा करते थे कि उनके जीवन का एक ही उद्देश्य है - सतत यात्रा करो, ज्ञान अर्जित करो, और जो कुछ भी जीवन में है वो समाज को दे दो। प्रधानमंत्री ने कहा कि महाप्रज्ञ जी ने अपने जीवनकाल में हजारों किलोमीटर की यात्रा की। यहां तक कि अपने अंतिम समय में भी वे अहिंसा यात्रा पर ही थे। प्रधानमंत्री ने उनके उद्धरण को स्मरण किया। वे कहते थे, ‘आत्मा मेरा ईश्वर है, त्याग मेरी प्रार्थना है, मैत्री मेरी भक्ति है, संयम मेरी शक्ति है, और अहिंसा मेरा धर्म है’। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस जीवन शैली को उन्होंने खुद भी जिया और लाखों-करोड़ों लोगों को भी सिखाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि योग के माध्यम से उन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों को अवसाद मुक्त जीवन की कला सिखाई। उन्होंने कहा, ‘यह भी एक सुखद संयोग है कि ठीक एक दिन बाद ही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। यह भी हमारे लिए एक अवसर होगा कि हम सभी महाप्रज्ञ जी के ‘सुखी परिवार और समृद्ध राष्ट्र’ के सपने को साकार करने में अपना योगदान दें और इसके साथ ही उनके विचारों को समाज तक पहुंचाएं।’ आचार्य महाप्रज्ञ जी के एक और मंत्र ‘स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज, स्वस्थ अर्थव्यवस्था’ को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका मंत्र हम सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।
उन्होंने कहा कि देश आज ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के संकल्प और उसी मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा मानना है कि समाज और राष्ट्र जिनके आदर्श हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे सामने रखे हैं, हमारा देश जल्द ही उस संकल्प को सही साबित करेगा। आप सभी इस सपने को साकार करेंगे।’