नॉलेज / Plasma system को समझने में खास तरंगे करेंगी मदद, बहुत काम की हो सकती है खोज

विज्ञान में आमतौर पर चीजें सरल दिखती हैं पर होती नहीं हैं। ये जटिलताएं ही इंसान को कई ऐसे काम करने से रोक जाती हैं जो सैद्धांतिक तौर पर सरल दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक काम है नाभिकीय संलयन पर नियंत्रण। इस अभिक्रिया में प्लाज्मा अवस्था की अहम भूमिका होती है। अब प्लाज्मा सिस्टम को समझने की दिशा में एक उल्लेखनीय खोज हुई है। नए शोध में प्लाज्मा में टोपोलॉजिकल तरंगों की उपस्थिति का पता चला है।

News18 : May 17, 2020, 03:26 PM
नई दिल्ली:  विज्ञान में आमतौर पर चीजें सरल दिखती हैं पर होती नहीं हैं। ये जटिलताएं ही इंसान को कई ऐसे काम करने से रोक जाती हैं जो सैद्धांतिक तौर पर सरल दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक काम है नाभिकीय संलयन (Nuclear fusion) पर नियंत्रण। इस अभिक्रिया में प्लाज्मा अवस्था (Plasma State) की अहम भूमिका होती है। अब प्लाज्मा सिस्टम को समझने की दिशा में एक उल्लेखनीय खोज हुई है। नए शोध में प्लाज्मा में टोपोलॉजिकल तरंगों (Topological Waves) की उपस्थिति का पता चला है।

प्लाज्मा और टोपोलॉजिकल तरंगें दोनों ही हैं जटिल

यह नई थ्योरी वैज्ञानिकों को प्लाज्मा की विशेषताएं समझने में मदद कर सकती हैं जो के एक मुश्किल काम माना जाता है। प्लाज्मा ट्यूबलाइट से लेकर तारों तक में पाया जाता है। वहीं टोपोलॉजिकल तरंगे भी कई जगहों पर देखने में आती हैं जिनमें भूमध्य रेखा के पास महासागरों की लहरों और उसके पास के वायुमंडल में भी।

क्या पता चला है शोध में

इस टीम ने अपने शोध में दर्शाया है कि प्लाज्मा की सतह पर टोपोलॉजिकल मूल की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की उपस्थिति होनी चाहिए। यह टोपोलॉजिकल प्रक्रिया की एक और उपस्थिति पाई गई है। इस प्रक्रिया की खोज करीब 50 साल पहले हुई थी जिसके बाद इसके शोधकर्ता को साल 2016 में नोबेल पुरस्कार भी मिला था। इस प्रक्रिया का संबंध वस्तुओं के आकार में खिंचाव या मोड़ आदि के कारण आए बदलाव से है। इसके कारण कुछ पदार्थों की दशा तक में परिवर्तन आ जाता है।

कैसे बनती हैं ये तरंगे

जेफ्री पार्की और ब्रैड मैरिस्टोन ने कुछ साथियों को साथ यह अध्ययन किया और यह शोध फिजिकल रीव्यू लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। शोध के मुताबिक ये तरंगे प्लाज्मा की सतह पर चलती हैं, सिस्टम का सामना तेज चुंबकीय क्षेत्र से होता है। इन्हें गैसीय प्लाजोन पोलरीशन कहा जाता है। इन तरंगो की खास बात यह होती है कि वे सिस्टम के अंतर ही होती हैं और इनके बिखरने की संभावना नहीं होती है क्योंकि इसमें अशुद्धता के बाद भी ये बिखराव से सुरक्षित होती हैं।


क्या है उम्मीद

शोधकर्ताओं का मानना है कि बिखराव से ऐसी सुरक्षा का एक ही मतलब होता है कि ये तरंगें लंबी दूरी तक जा सकती हैं। व्यवहारिक तौर पर इन तरंगों का उपयोग प्लाज्मा की अवस्था के अध्ययन के लिए हो सकता है। प्लाज्मा अवस्था के साथ समस्या ये होती है कि इसे बिना छेड़े इसका पता लगाना मुश्किल होता है। इसकी जांच करते समय आप इसके सिस्टम को अव्यवस्थित कर देते है। लेकिन ये तरंगें प्लाज्मा सिस्टम को समझने में एक क्रांति ला सकती हैं।


अब आगे क्या

इन तरंगों को सैद्धांतिक रूप से सिद्ध करने के बाद इस शोध का अगला कदम इसे व्यवहारिक तौर पर सिद्ध करना है। शोधकर्ताओ को उम्मीद है कि यह खोज प्लाज्मा भौतिकी के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। इससे वैज्ञानिक प्लाज्मा सिस्टम को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे और नियंत्रित भी कर पाएंगे। इससे प्लाज्मा फ्यूजन रिएक्टर्स में नाभिकीय फ्यूजन नियंत्रित किया जा सकता है जिससे हमें प्रदूषणरहीत अक्षय ऊर्जा मिल सकेगी।


यह खोज न्यूक्लियर फ्यूजन को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।

शोधकर्ता मार्सटॉन का कहना है कि यदि इन तरंगों से प्लाज्मा की अवस्था के बारे में जानकारी मिल सकी तो हो सकता है कि यह ऐसे फ्यूजन रिएक्टर का बनाने के लिए मददगार हो जो स्थायी हो क्लीन एनर्जी दे सके। शोधकर्ताओं का पूरी आशा है कि जैसे ही उन्हें अपने प्रयोग में सफलता मिलेगी। प्लाजमा का अध्ययन करने वाले लोगों का इस ओर ध्यान जरूर जाएगा जिसमें यकीनन दूरगामी नतीजे मिलेंगे।