Share Market Crash: डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए नए टैरिफ के असर से वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मची हुई है। अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट के बाद अब इसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी दिखने लगा है। शुक्रवार को भारतीय बाजारों ने कारोबारी हफ्ते का अंत बड़ी गिरावट के साथ किया, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
भारतीय शेयर बाजार में गिरावट
लगातार दूसरे दिन भारतीय शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिली। सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में ही 800 अंक से ज्यादा लुढ़क गया, जबकि निफ्टी में भी करीब 300 अंकों की गिरावट आई। इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया कमजोर हुआ और 84.99 पर पहुंच गया।
अमेरिकी बाजारों में बड़ी गिरावट
गुरुवार को अमेरिकी शेयर बाजार ने मार्च 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की। इस गिरावट से निवेशकों को करीब 2.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। बीएसई सेंसेक्स 674 अंकों की गिरावट के साथ 75,614 पर पहुंच गया, जबकि निफ्टी50 इंडेक्स 304 अंक गिरकर 22,946 पर कारोबार कर रहा था।
सबसे ज्यादा प्रभावित शेयर
इस गिरावट में कई दिग्गज कंपनियों के शेयर भारी नुकसान में रहे। टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, इन्फोसिस, लार्सन एंड टुब्रो, मारुति और टेक महिंद्रा के शेयरों में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई। वहीं, एचडीएफसी बैंक, भारती एयरटेल, बजाज फाइनेंस और महिंद्रा एंड महिंद्रा के शेयरों में हल्की बढ़त देखने को मिली। टाटा स्टील के शेयरों में 4.5% की गिरावट रही, जबकि ओएनजीसी के शेयर 6% से अधिक गिरकर 228.25 रुपये पर आ गए।
एशियाई बाजारों में भी गिरावट
अमेरिका से लेकर जापान और कोरिया तक शेयर बाजारों में मंदी का माहौल है। जापान का निक्केई इंडेक्स 3.14% गिर गया, जबकि कोरिया का कॉस्पी इंडेक्स 0.8% तक गिरा। चीन का बाजार शुक्रवार को बंद था, लेकिन इससे पहले Nasdaq Composite Index में 5.97% की गिरावट आई थी, जो कोरोना महामारी के बाद एक दिन में सबसे बड़ी गिरावटों में से एक थी। S&P 500 और Dow Jones Industrial Average भी जून 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट के शिकार हुए।
विदेशी निवेशकों का बाजार से पलायन
इस भारी गिरावट के बीच विदेशी निवेशकों ने भी भारतीय बाजार से पैसा निकालना शुरू कर दिया है। गुरुवार को विदेशी निवेशकों (FII) ने 2,806 करोड़ रुपये के शेयर बेच दिए, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) ने केवल 221 करोड़ रुपये की खरीदारी की।
क्या आगे भी जारी रहेगा दबाव?विश्लेषकों का मानना है कि जब तक अमेरिकी और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में स्थिरता नहीं आती, तब तक बाजारों में दबाव बना रह सकता है। वैश्विक आर्थिक माहौल, ब्याज दरों में संभावित बढ़ोतरी और भू-राजनीतिक तनाव भी निवेशकों की धारणा को प्रभावित कर सकते हैं।