Vikrant Shekhawat : Mar 27, 2021, 06:04 PM
नई दिल्ली: धरती के अंदर कुछ ऐसी चट्टानें हैं जो प्राचीन ग्रह थिया (Theia ) के होने के संकेत देती हैं। एक अध्ययन में ये दावा किया गया है कि अरबों साल पहले धरती से टकराया यह ग्रह अब पृथ्वी का हिस्सा बन चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि सौर मंडल के शुरुआती दिनों में धरती से मंगल के आकार का 'थिया' ग्रह टकराया था जिससे चांद बना था। धरती के अंदर बड़ी संख्या में आज भी कई अनजान, विशाल चट्टानें पाई गई हैं जिन्हें लो-शियर-वेलॉसिटी प्रोविन्सेज (LLSVP) कहा जाता है। ऐरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की टीम का मानना है कि ये उसी प्राचीन दुनिया का हिस्सा हो सकते हैं।
इनमें से ही एक LLSVP अफ्रीका के नीचे है और एक प्रशांत महासागर के नीचे। दोनों इतने विशाल हैं कि इनका संबंध धरती के चुंबकीय क्षेत्र के कमजोर होने के साथ माना जाता है। इस रिसर्च के लेखक कियान युआन (Qian Yuan) का कहना है कि ये चट्टानें आसपास की दूसरी चट्टानों से ज्यादा घनी हैं और इनकी केमिकल बनावट भी अलग है। युआन का कहना है कि थिआ का मैंटल धरती से भी ज्यादा गहरा था। इसलिए जब दोनों की टक्कर हुई तो धरती में उसका एक हिस्सा हमेशा के लिए बस गया।
दरअसल यह मैंटल धरती का मोटा अंदरूनी भाग है जो ज्यादातर सॉलिड है और 1800 मील तक फैला है। यह कोर और क्रस्ट के बीच में आता है। धरती की वॉल्यूम का 84% भाग इसी का है। और सबसे बड़ी बात यह है कि 'ग्रेट इंपैक्ट' थिअरी चांद-धरती के सिस्टम से काफी मिलती है। हालांकि, थिया का अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि यह घटना 2-10 करोड़ साल पहले हुई थी। इस थिअरी के कुछ समर्थकों का मानना है कि दोनों ग्रहों की कोर मर्ज हो गईं और तब ऐसे केमिकल का निर्माण हुआ होगा जिससे धरती पर जीवन संभव हो सका।
ऐरिजोना स्टेट के पीएचडी स्टूडेंट युआन की हालिया थिअरी के मुताबिक LLSVP इस टक्कर से संबंधित हैं। अब तक कई बार इन चट्टानों को प्रमाणित करने की कोशिश की जाती रही है। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि ये धरती के मैग्मा से निकलकर क्रिस्टल में तब्दील हो गईं। युआन का कहना है कि थिआ के लोहे से भरे हिस्से धरती के मैंटल में मिल गए जब दोनों आपस में टकराए। थिआ के आकार के इंपैक्टर से ऐसी चट्टानें मिल सकती हैं। इसके अलावा पहले के रिसर्च में पाया गया है कि LLSVP से आने वाले केमिकल सिग्नेचर थिआ इंपैक्ट के वक्त के हो सकते हैं। ऐसे में दोनों को जोड़ा जा सकता है।
इनमें से ही एक LLSVP अफ्रीका के नीचे है और एक प्रशांत महासागर के नीचे। दोनों इतने विशाल हैं कि इनका संबंध धरती के चुंबकीय क्षेत्र के कमजोर होने के साथ माना जाता है। इस रिसर्च के लेखक कियान युआन (Qian Yuan) का कहना है कि ये चट्टानें आसपास की दूसरी चट्टानों से ज्यादा घनी हैं और इनकी केमिकल बनावट भी अलग है। युआन का कहना है कि थिआ का मैंटल धरती से भी ज्यादा गहरा था। इसलिए जब दोनों की टक्कर हुई तो धरती में उसका एक हिस्सा हमेशा के लिए बस गया।
दरअसल यह मैंटल धरती का मोटा अंदरूनी भाग है जो ज्यादातर सॉलिड है और 1800 मील तक फैला है। यह कोर और क्रस्ट के बीच में आता है। धरती की वॉल्यूम का 84% भाग इसी का है। और सबसे बड़ी बात यह है कि 'ग्रेट इंपैक्ट' थिअरी चांद-धरती के सिस्टम से काफी मिलती है। हालांकि, थिया का अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि यह घटना 2-10 करोड़ साल पहले हुई थी। इस थिअरी के कुछ समर्थकों का मानना है कि दोनों ग्रहों की कोर मर्ज हो गईं और तब ऐसे केमिकल का निर्माण हुआ होगा जिससे धरती पर जीवन संभव हो सका।
ऐरिजोना स्टेट के पीएचडी स्टूडेंट युआन की हालिया थिअरी के मुताबिक LLSVP इस टक्कर से संबंधित हैं। अब तक कई बार इन चट्टानों को प्रमाणित करने की कोशिश की जाती रही है। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि ये धरती के मैग्मा से निकलकर क्रिस्टल में तब्दील हो गईं। युआन का कहना है कि थिआ के लोहे से भरे हिस्से धरती के मैंटल में मिल गए जब दोनों आपस में टकराए। थिआ के आकार के इंपैक्टर से ऐसी चट्टानें मिल सकती हैं। इसके अलावा पहले के रिसर्च में पाया गया है कि LLSVP से आने वाले केमिकल सिग्नेचर थिआ इंपैक्ट के वक्त के हो सकते हैं। ऐसे में दोनों को जोड़ा जा सकता है।