AMAR UJALA : Sep 07, 2020, 09:05 AM
Delhi: धारा 377 निरस्त होने के दो साल बाद भी एलजीबीटीक्यू समुदाय पूर्वाग्रह से जूझ रहा है। छह सितंबर, 2018 को ही सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देने वाली धारा 377 को निरस्त कर दिया था। ऋषभ सिंह आज भी उस दिन को याद करते हैं, जिन्होंने उनके जीवन को बदल दिया। इसी दिन ऋषभ ने अपने परिजनों को अपने समलैंगिक होने की जानकारी दी थी। ऋषभ ने कहा, उस दिन यह लगा कि सुप्रीम कोर्ट भी मानता है हम अपराधी नहीं है। इससे मुझे अपने परिजनों को बताने का आत्मविश्वास आया। यह मेरे लिए दूसरा जन्म होने जैसा था।हालांकि ऋषभ का कहना है कि दो साल बाद भी समाज में उनके जैसे लोगों को लेकर समानता नहीं है। समाज की मानसिकता में हमारे लिए नहीं बदली है। चाहे फिर विरासत के कानून मामले में हो या फिर सरोगेसी कानून हो। अभी हमें बहुत लंबा रास्ता तय करना है।वहीं, पेशे से इंटीरियर डिजाइनर सुनैना कहती हैं कि फैसले के बाद भी उनके जीवन में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। आज भी वह अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहती क्योंकि समाज में उन्हें स्वीकार करना काफी मुश्किल है।सुनैना ने कहा, मैं मध्यम वर्गीय परिवार से आती हूं, जहां समलैंगिकता पर बात करने की भी मनाही है। बस इस फैसले ने हमारे लिए इतना किया है कि हम अब अपराधी नहीं माने जाते, लेकिन समाज की मानसिकता नहीं बदली है।
एलजीबीटी समुदाय को मिले सभी अधिकारबंगलूरू के रहने वाले लेखक शुभांकर चक्रवर्ती कहते हैं कि अगले चरण में एलजीबीटी समुदाय को भी उसी तरह के नागरिक अधिकार दिए जाने चाहिए जैसा सामान्य आबादी को हासिल हैं। एलजीबीटी समुदाय के लोग भी टैक्स देते हैं। वे भी कानून का पालन करते हैं और उन्हें भी सभी अधिकारों का हक है। निश्चिततौर पर स्थितियां बदली हैं। समुदाय से जुड़े लोग आत्मविश्वास के साथ खुद को व्यक्त कर रहे हैं।
एलजीबीटी समुदाय को मिले सभी अधिकारबंगलूरू के रहने वाले लेखक शुभांकर चक्रवर्ती कहते हैं कि अगले चरण में एलजीबीटी समुदाय को भी उसी तरह के नागरिक अधिकार दिए जाने चाहिए जैसा सामान्य आबादी को हासिल हैं। एलजीबीटी समुदाय के लोग भी टैक्स देते हैं। वे भी कानून का पालन करते हैं और उन्हें भी सभी अधिकारों का हक है। निश्चिततौर पर स्थितियां बदली हैं। समुदाय से जुड़े लोग आत्मविश्वास के साथ खुद को व्यक्त कर रहे हैं।