Vikrant Shekhawat : Jun 23, 2022, 08:27 AM
राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा ने आदिवासी नेता और पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम तय कर बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। मुर्मू जीतने के बाद देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। इससे देशभर में लगभग नौ फीसद आदिवासी समुदाय को भाजपा सीधा संदेश देगी। अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के लिए लोकसभा में 47 और विभिन्न विधानसभाओं में 487 सीटें आरक्षित हैं। इस दांव का लाभ भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके पहले होने वाले विभिन्न विधानसभा चुनाव में भी मिल सकता है।
देश की आबादी में लगभग नौ फीसद (लगभग 10 करोड़) आदिवासी समुदाय है, जो राजनीतिक रूप से काफी सशक्त माना जाता है। इस समुदाय के लिए आरक्षित लोकसभा की सीटों की संख्या भले ही 47 हो, लेकिन उसका प्रभाव लगभग 100 सीटों पर देखा जाता है। इसके अलावा विभिन्न विधानसभाओं में आरक्षित सीटों की संख्या 487 है, लेकिन कई अन्य विधानसभा सीटों पर भी इस समुदाय का व्यापक प्रभाव है। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटें जीती थीं। उसकी कोशिश इस संख्या को और बढ़ाने की होगी।विधानसभा चुनाव पर असरलोकसभा चुनाव के पहले करीब एक दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान और गुजरात जैसे प्रमुख राज्य शामिल हैं, जहां आदिवासी समुदाय काफी प्रभावी है और उसके लिए आरक्षित सीटें काफी राजनीतिक अंतर भी पैदा करती हैं। देश को पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति देने के बाद भाजपा को आदिवासी समुदाय का और ज्यादा समर्थन मिलने की उम्मीद है। चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 128 है। इनमें भाजपा के पास अभी 37 सीट हैं। पिछली बार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को झटका लगा था। गुजरात में भी उसकी सीटें काफी कम हुई थी, हालांकि वह सरकार बनाने में सफल रही थी।गुजरात में पहली परखसबसे पहले इस साल के आखिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां लगभग 15 फीसद आदिवासी जनसंख्या है और उसके लिए आरक्षित सीटों की संख्या 27 है। 2012 के चुनाव में भाजपा ने 11 सीट जीती थीं जबकि 2017 के चुनाव में पार्टी नौ सीट ही हासिल कर सकी थी।
लोकसभा चुनाव के पहले तीन अहम राज्यइसके बाद अगले साल लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जिन राज्यों में चुनाव होंगे उनमें मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 47 है। भाजपा 2018 के चुनाव में केवल 16 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस 31 सीटें जीतने में सफल रही थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। वहीं, छत्तीसगढ़ में 29 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 2018 के चुनाव में भाजपा को महज तीन सीट मिली थी, जबकि कांग्रेस 25 सीटें जीतने में सफल रही थी। एक सीट से अजीत जोगी जीते थे। वहीं राजस्थान की 25 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में भाजपा को नौ सीट मिल पाई थीं, जबकि कांग्रेस 12 सीटें जीतने में सफल रही थी। बीटीपी और निर्दलीय के खाते में दो-दो सीट गई थीं।झारखंड और ओडिशा भी होंगे प्रभावितआदिवासी बहुल अन्य प्रमुख राज्यों में झारखंड में कुल 81 सीट हैं। पिछले चुनाव में यहां आदिवासी समुदाय की आरक्षित 28 में से तीन सीट ही भाजपा जीत पाई थी, जबकि विपक्ष के खाते में 25 सीट आई थीं। इनमें झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19, कांग्रेस को पांच और जेवीएम को एक सीट मिली थी। ओडिशा (28) और महाराष्ट्र (25) में भी आदिवासी समुदाय का गहरा प्रभाव है। पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में आदिवासी समुदाय राजनीतिक रूप से सशक्त है। ऐसे में मुर्मू के नाम का फैसला भाजपा का बड़ा राजनीतिक दांव है। ओडिशा में भाजपा पैठ जमाने की कोशिश कर रही है। इस दांव से देर-सवेर वहां भी फायदा तय है।पिछली बार दलित दांव का मिला था लाभवर्ष 2017 में भाजपा ने दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। उनकी जीत के बाद भाजपा को दलित समुदाय में खासी सफलता मिली। खासकर, उत्तर प्रदेश में उसे इस समुदाय का ज्यादा समर्थन हासिल हुआ। वहां बसपा को काफी निराश भी होना पड़ा है। हालांकि, उसकी और भी कई वजह हो सकती हैं, लेकिन उनमें एक यह भी मानी जाती है।
देश की आबादी में लगभग नौ फीसद (लगभग 10 करोड़) आदिवासी समुदाय है, जो राजनीतिक रूप से काफी सशक्त माना जाता है। इस समुदाय के लिए आरक्षित लोकसभा की सीटों की संख्या भले ही 47 हो, लेकिन उसका प्रभाव लगभग 100 सीटों पर देखा जाता है। इसके अलावा विभिन्न विधानसभाओं में आरक्षित सीटों की संख्या 487 है, लेकिन कई अन्य विधानसभा सीटों पर भी इस समुदाय का व्यापक प्रभाव है। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटें जीती थीं। उसकी कोशिश इस संख्या को और बढ़ाने की होगी।विधानसभा चुनाव पर असरलोकसभा चुनाव के पहले करीब एक दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान और गुजरात जैसे प्रमुख राज्य शामिल हैं, जहां आदिवासी समुदाय काफी प्रभावी है और उसके लिए आरक्षित सीटें काफी राजनीतिक अंतर भी पैदा करती हैं। देश को पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति देने के बाद भाजपा को आदिवासी समुदाय का और ज्यादा समर्थन मिलने की उम्मीद है। चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 128 है। इनमें भाजपा के पास अभी 37 सीट हैं। पिछली बार मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को झटका लगा था। गुजरात में भी उसकी सीटें काफी कम हुई थी, हालांकि वह सरकार बनाने में सफल रही थी।गुजरात में पहली परखसबसे पहले इस साल के आखिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां लगभग 15 फीसद आदिवासी जनसंख्या है और उसके लिए आरक्षित सीटों की संख्या 27 है। 2012 के चुनाव में भाजपा ने 11 सीट जीती थीं जबकि 2017 के चुनाव में पार्टी नौ सीट ही हासिल कर सकी थी।
लोकसभा चुनाव के पहले तीन अहम राज्यइसके बाद अगले साल लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जिन राज्यों में चुनाव होंगे उनमें मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 47 है। भाजपा 2018 के चुनाव में केवल 16 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस 31 सीटें जीतने में सफल रही थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। वहीं, छत्तीसगढ़ में 29 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 2018 के चुनाव में भाजपा को महज तीन सीट मिली थी, जबकि कांग्रेस 25 सीटें जीतने में सफल रही थी। एक सीट से अजीत जोगी जीते थे। वहीं राजस्थान की 25 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में भाजपा को नौ सीट मिल पाई थीं, जबकि कांग्रेस 12 सीटें जीतने में सफल रही थी। बीटीपी और निर्दलीय के खाते में दो-दो सीट गई थीं।झारखंड और ओडिशा भी होंगे प्रभावितआदिवासी बहुल अन्य प्रमुख राज्यों में झारखंड में कुल 81 सीट हैं। पिछले चुनाव में यहां आदिवासी समुदाय की आरक्षित 28 में से तीन सीट ही भाजपा जीत पाई थी, जबकि विपक्ष के खाते में 25 सीट आई थीं। इनमें झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19, कांग्रेस को पांच और जेवीएम को एक सीट मिली थी। ओडिशा (28) और महाराष्ट्र (25) में भी आदिवासी समुदाय का गहरा प्रभाव है। पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में आदिवासी समुदाय राजनीतिक रूप से सशक्त है। ऐसे में मुर्मू के नाम का फैसला भाजपा का बड़ा राजनीतिक दांव है। ओडिशा में भाजपा पैठ जमाने की कोशिश कर रही है। इस दांव से देर-सवेर वहां भी फायदा तय है।पिछली बार दलित दांव का मिला था लाभवर्ष 2017 में भाजपा ने दलित समुदाय से आने वाले रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। उनकी जीत के बाद भाजपा को दलित समुदाय में खासी सफलता मिली। खासकर, उत्तर प्रदेश में उसे इस समुदाय का ज्यादा समर्थन हासिल हुआ। वहां बसपा को काफी निराश भी होना पड़ा है। हालांकि, उसकी और भी कई वजह हो सकती हैं, लेकिन उनमें एक यह भी मानी जाती है।